खट्वांग: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''खट्वांग''' सूर्यवंशी महाप्रतापी, धर्म परायण, सत्य का परीपालन करता राजा है। इसका नाम [[दिलीप]] भी था। | |||
*खट्वांग ने देवासुर संग्राम में [[देवता|देवताओं]] की बड़ी सहायता की थी। | *खट्वांग ने देवासुर संग्राम में [[देवता|देवताओं]] की बड़ी सहायता की थी। | ||
*दानवों का संहार किया और उन्हें युद्ध से भगा दिया। तब देवताओं ने उससे वर मांगने को कहा। | *दानवों का संहार किया और उन्हें युद्ध से भगा दिया। तब देवताओं ने उससे वर मांगने को कहा। | ||
*कुतूहल वंश खट्वांग (दिलीप) ने पूछा कि उसकी कितनी आयु शेष है। | *कुतूहल वंश खट्वांग (दिलीप) ने पूछा कि उसकी कितनी आयु शेष है। देवज्ञ देवता बोले ‘मात्र एक घंटा’। | ||
*खट्वांग वायु वेग से [[पृथ्वी]] पर आया और [[विष्णु-वन्दना|विष्णु स्तुति]] की और [[वैकुण्ठ|बैकुण्ठ]] में गया। | *खट्वांग वायु वेग से [[पृथ्वी]] पर आया और [[विष्णु-वन्दना|विष्णु स्तुति]] की और [[वैकुण्ठ|बैकुण्ठ]] में गया। | ||
*[[महाभारत]] में उसका उल्लेख आता है। | *[[महाभारत]] में उसका उल्लेख आता है। | ||
Line 13: | Line 11: | ||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== |
Revision as of 10:39, 31 May 2012
खट्वांग सूर्यवंशी महाप्रतापी, धर्म परायण, सत्य का परीपालन करता राजा है। इसका नाम दिलीप भी था।
- खट्वांग ने देवासुर संग्राम में देवताओं की बड़ी सहायता की थी।
- दानवों का संहार किया और उन्हें युद्ध से भगा दिया। तब देवताओं ने उससे वर मांगने को कहा।
- कुतूहल वंश खट्वांग (दिलीप) ने पूछा कि उसकी कितनी आयु शेष है। देवज्ञ देवता बोले ‘मात्र एक घंटा’।
- खट्वांग वायु वेग से पृथ्वी पर आया और विष्णु स्तुति की और बैकुण्ठ में गया।
- महाभारत में उसका उल्लेख आता है।
- विष्णु पुराण का कथन है कि दिलीप जैसा पृथ्वी पर कोई नहीं हुआ, जिसने मात्र कुछ क्षण पृथ्वी लोक पर रहकर मनुष्यों में अपनी दानवृत्ति, सत्य, ज्ञान का आचरण करके अमरता प्राप्त की हो।
- तीनों लोकों में उसने अपना यश स्थापित किया।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, आदि पर्व, अध्याय 55, द्रोणपर्व एवं विष्णु पुराण