कासिमशाह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 31: | Line 31: | ||
[[Category:कवि]] | [[Category:कवि]] | ||
[[Category:निर्गुण भक्ति]] | [[Category:निर्गुण भक्ति]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:भक्ति काल]] | [[Category:भक्ति काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 14:23, 10 September 2012
कासिमशाह दरियाबाद, बाराबंकी के रहने वाले थे और संवत् 1788 के लगभग वर्तमान थे। कासिमशाह ने 'हंस जवाहिर' नाम की कहानी लिखी, जिसमें राजा हंस और रानी जवाहिर की कथा है।
- फारसी अक्षरों में छपी[1] इस पुस्तक की एक प्रति उपलब्ध है। उसमें कवि ने शाहे वक्त का इस प्रकार उल्लेख किया है -
मुहमदसाह दिल्ली सुलतानू । का मन गुन ओहि केर बखानू॥
छाजै पाट छत्रा सिर ताजू । नावहिं सीस जगत के राजू॥
रूपवंत दरसन मुँह राता । भागवंत ओहि कीन्ह बिधाता॥
दरबवंत धरम महँपूरा । ज्ञानवंत खड्ग महँ सूरा॥
- कासिमशाह ने अपना परिचय इन शब्दों में दिया है -
दरियाबाद माँझ मम ठाऊँ । अमानउल्ला पिता कर नाऊँ॥
तहवाँ मोहिं जनम बिधि दीन्हा । कासिम नाँव जाति कर हीना॥
तेहूँ बीच विधि कीन्ह कमीना । ऊँच सभा बैठे चित दीना॥
ऊँच संग ऊँच मन भावा । तब भा ऊँच ज्ञान बुधि पावा॥
ऊँचा पंथ प्रेम का होई । तेहि महँ ऊँच भए सब कोई॥
- कथा का सार कवि ने यह दिया है -
कथा जो एक गुपुत महँ रहा । सो परगट उघारि मैं कहा॥
हंस जवाहिर बिधि औतारा । निरमल रूप सो दई सवारा॥
बलख नगर बुरहान सुलतानू । तेहि घर हंस भए जस भानू॥
आलमशाह चीनपति भारी । तेहि घर जनमी जवाहिर बारी॥
तेहि कारनवह भएउ वियोगी । गएउ सो छाँड़ि देस होइ जोगी॥
अंत जवाहिर हंस घर आनी । सो जग महँ यह गयउ बखानी॥
सो सुनि ज्ञान कथा मैं कीन्हा । लिखेउँ सो प्रेम रहै जग चीन्हा॥
- कासिमशाह की रचना बहुत निम्न कोटि की है। इन्होंने जगह जगह जायसी की पदावली तक ली है।
- कासिमशाह की रचना में प्रौढ़ता नहीं है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नामी प्रेस, लखनऊ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 85।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख