कौन जतन बिनती करिये -तुलसीदास: Difference between revisions
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जात बिपति जाल निसि दिन दुख, तेहि पथ अनुसरिये॥2॥ | जात बिपति जाल निसि दिन दुख, तेहि पथ अनुसरिये॥2॥ | ||
जानत हुँ मन बचन करम परहित कीन्हें तरिये। | जानत हुँ मन बचन करम परहित कीन्हें तरिये। | ||
सो बिपरित, देखि परसुख बिनु कारन ही | सो बिपरित, देखि परसुख बिनु कारन ही ज़रिये॥3॥ | ||
स्त्रुति पुरान सबको मत यह सतसंग सुदृढ़ धरिये। | स्त्रुति पुरान सबको मत यह सतसंग सुदृढ़ धरिये। | ||
निज अभिमान मोह ईर्षा बस, तिनहि न आदरिये॥4॥ | निज अभिमान मोह ईर्षा बस, तिनहि न आदरिये॥4॥ |
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कौन जतन बिनती करिये। |
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