जानकी जीवन की बलि जैहों -तुलसीदास: Difference between revisions
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चित कहै, राम सीय पद परिहरि अब न कहूँ चलि | चित कहै, राम सीय पद परिहरि अब न कहूँ चलि जैहों॥1॥ | ||
उपजी उर प्रतीति सपनेहुँ सुख, प्रभु-पद-बिमुख न पैहों। | उपजी उर प्रतीति सपनेहुँ सुख, प्रभु-पद-बिमुख न पैहों। | ||
मन समेत या तनुके बासिन्ह, इहै सिखावन दैहों॥२॥ | मन समेत या तनुके बासिन्ह, इहै सिखावन दैहों॥२॥ |
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