लाभ कहा मानुष-तनु पाये -तुलसीदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "१" to "1") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "२" to "2") |
||
Line 34: | Line 34: | ||
काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥1॥ | काय-बचन-मन सपनेहु कबहुँक घटत न काज पराये॥1॥ | ||
जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये। | जो सुख सुरपुर नरक गेह बन आवत बिनहि बुलाये। | ||
तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं | तेहि सुख कहँ बहु जतन करत मन समुझत नहिं समुझाये॥2॥ | ||
पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये। | पर-दारा परद्रोह, मोह-बस किये मूढ़ मन भाये। | ||
गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥३॥ | गरभबास दुखरासि जातना तीब्र बिपति बिसराये॥३॥ |
Revision as of 10:04, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||
|
लाभ कहा मानुष-तनु पाये। |
संबंधित लेख |