बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "२" to "2") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "३" to "3") |
||
Line 36: | Line 36: | ||
इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥2॥ | इहै जानि पहिचानि प्रीति छमिये अघ औगुन मेरे॥2॥ | ||
यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | यों कहि सीय-राम-पाँयन परि लखन लाइ उर लीन्हें। | ||
पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन | पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥3॥ | ||
तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | ||
तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥४॥ | तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥४॥ |
Revision as of 10:10, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||
|
बिनती भरत करत कर जोरे। |
संबंधित लेख |