भरोसो जाहि दूसरो सो करो -तुलसीदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "२" to "2") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "३" to "3") |
||
Line 36: | Line 36: | ||
मोहिं तो सावनके अंधहि ज्यों, सूझत हरो-हरो॥2॥ | मोहिं तो सावनके अंधहि ज्यों, सूझत हरो-हरो॥2॥ | ||
चाटत रहेउँ स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो। | चाटत रहेउँ स्वान पातरि ज्यों कबहुँ न पेट भरो। | ||
सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस, पेखत परुसि | सो हौं सुमिरत नाम-सुधारस, पेखत परुसि धरो॥3॥ | ||
स्वारथ औ परमारथहूको, नहिं कुञ्जरो नरो। | स्वारथ औ परमारथहूको, नहिं कुञ्जरो नरो। | ||
सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥४॥ | सुनियत सेतु पयोधि पषनन्हि, करि कपि कटक तरो॥४॥ |
Revision as of 10:10, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||
|
भरोसो जाहि दूसरो सो करो। |
संबंधित लेख |