लाज न आवत दास कहावत -तुलसीदास: Difference between revisions
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मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | मो सम मंद महाखल पाँवर, कौन जतन तेहि पावत॥2॥ | ||
हरि निरमल, मल ग्रसित ह्रदय, असंजस मोहि जनावत। | हरि निरमल, मल ग्रसित ह्रदय, असंजस मोहि जनावत। | ||
जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ | जेहि सर काक बंक बक-सूकर, क्यों मराल तहँ आवत॥3॥ | ||
जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | जाकी सरन जाइ कोबिद, दारुन त्रयताप बुझावत। | ||
तहूँ गये मद मोह लोभ अति, सरगहुँ मिटत न सावत॥४॥ | तहूँ गये मद मोह लोभ अति, सरगहुँ मिटत न सावत॥४॥ |
Revision as of 10:11, 1 November 2014
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लाज न आवत दास कहावत। |
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