बिनती भरत करत कर जोरे -तुलसीदास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "३" to "3") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "४" to "4") |
||
Line 38: | Line 38: | ||
पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥3॥ | पुलक सरीर नीर भरि लोचन कहत प्रेम पन कीन्हें॥3॥ | ||
तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | तुलसी बीते अवधि प्रथम दिन जो रघुबीर न ऐहौ। | ||
तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न | तो प्रभु-चरन-सरोज-सपथ जीवत परिजनहि न पैहौ॥4॥ | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 10:45, 1 November 2014
| ||||||||||||||||||
|
बिनती भरत करत कर जोरे। |
संबंधित लेख |