हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों -तुलसीदास: Difference between revisions

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ताते सहौं बिपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक॥3॥
ताते सहौं बिपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक॥3॥
कृपा डोरि बनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु चारो।
कृपा डोरि बनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु चारो।
एहि बिधि बेगि हरहु मेरो दुख कौतुक राम तिहारो॥4॥
एहि बिधि बेगि हरहु मेरो दु:ख कौतुक राम तिहारो॥4॥
हैं स्त्रुति बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै।
हैं स्त्रुति बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै।
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु, जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥5॥  
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु, जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥5॥  

Latest revision as of 14:06, 2 June 2017

हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों -तुलसीदास
कवि तुलसीदास
जन्म 1532 सन
जन्म स्थान राजापुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1623 सन
मुख्य रचनाएँ रामचरितमानस, दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
तुलसीदास की रचनाएँ

हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।
साधन-नाम बिबुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों॥1॥
कोटिहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार।
तदपि नाथ कछु और माँगिहौं, दीजै परम उदार॥2॥
बिषय-बारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
ताते सहौं बिपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक॥3॥
कृपा डोरि बनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु चारो।
एहि बिधि बेगि हरहु मेरो दु:ख कौतुक राम तिहारो॥4॥
हैं स्त्रुति बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै।
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु, जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥5॥

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