अथर्ववेद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - " महान " to " महान् ")
m (Text replacement - "समृद्वि" to "समृद्धि")
Line 16: Line 16:
*टोना-टोटका आदि।
*टोना-टोटका आदि।
==विवरण==
==विवरण==
अथर्ववेद में [[परीक्षित]] को [[कुरु|कुरुओं]] का राजा कहा गया है तथा इसमें कुरू देश की समृद्वि का अच्छा विवरण मिलता है। इस [[वेद]] में [[आर्य]] एवं [[अनार्य]] विचार-धाराओं का समन्वय है। [[उत्तर वैदिक काल]] में इस वेद का विशेष महत्त्व है। [[ऋग्वेद]] के दार्शनिक विचारों का प्रौढ़रूप इसी वेद से प्राप्त हुआ है। शान्ति और पौष्टिक कर्मा का सम्पादन भी इसी वेद में मिलता है। अथर्ववेद में सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय '[[आयुर्विज्ञान]]' है। इसके अतिरिक्त 'जीवाणु विज्ञान' तथा 'औषधियों' आदि के विषय में जानकारी इसी वेद से होती है। भूमि सूक्त के द्वारा राष्ट्रीय भावना का सुदृढ़ प्रतिपादन सर्वप्रथम इसी वेद में हुआ है। इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं-
अथर्ववेद में [[परीक्षित]] को [[कुरु|कुरुओं]] का राजा कहा गया है तथा इसमें कुरू देश की समृद्धि का अच्छा विवरण मिलता है। इस [[वेद]] में [[आर्य]] एवं [[अनार्य]] विचार-धाराओं का समन्वय है। [[उत्तर वैदिक काल]] में इस वेद का विशेष महत्त्व है। [[ऋग्वेद]] के दार्शनिक विचारों का प्रौढ़रूप इसी वेद से प्राप्त हुआ है। शान्ति और पौष्टिक कर्मा का सम्पादन भी इसी वेद में मिलता है। अथर्ववेद में सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय '[[आयुर्विज्ञान]]' है। इसके अतिरिक्त 'जीवाणु विज्ञान' तथा 'औषधियों' आदि के विषय में जानकारी इसी वेद से होती है। भूमि सूक्त के द्वारा राष्ट्रीय भावना का सुदृढ़ प्रतिपादन सर्वप्रथम इसी वेद में हुआ है। इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं-
#पिप्पलाद  
#पिप्पलाद  
#शौनक
#शौनक

Revision as of 14:11, 17 September 2017

thumb|250px|अथर्ववेद का आवरण पृष्ठ अथर्ववेद की भाषा और स्वरूप के आधार पर ऐसा माना जाता है कि इस वेद की रचना सबसे बाद में हुई थी। अथर्ववेद के दो पाठों, शौनक और पैप्पलद, में संचरित हुए लगभग सभी स्तोत्र ऋग्वेद के स्तोत्रों के छदों में रचित हैं। दोनो वेदों में इसके अतिरिक्त अन्य कोई समानता नहीं है। अथर्ववेद दैनिक जीवन से जुड़े तांत्रिक धार्मिक सरोकारों को व्यक्त करता है, इसका स्वर ऋग्वेद के उस अधिक पुरोहिती स्वर से भिन्न है, जो महान् देवों को महिमामंडित करता है और सोम के प्रभाव में कवियों की उत्प्रेरित दृष्टि का वर्णन करता है।

रचना काल

यज्ञों व देवों को अनदेखा करने के कारण वैदिक पुरोहित वर्ग इसे अन्य तीन वेदों के बराबर नहीं मानता था। इसे यह दर्जा बहुत बाद में मिला। इसकी भाषा ऋग्वेद की भाषा की तुलना में स्पष्टतः बाद की है और कई स्थानों पर ब्राह्मण ग्रंथों से मिलती है। अतः इसे लगभग 1000 ई.पू. का माना जा सकता है। इसकी रचना 'अथवर्ण' तथा 'आंगिरस' ऋषियों द्वारा की गयी है। इसीलिए अथर्ववेद को 'अथर्वांगिरस वेद' भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अथर्ववेद को अन्य नामों से भी जाना जाता है-

  1. गोपथ ब्राह्मण में इसे 'अथर्वांगिरस' वेद कहा गया है।
  2. ब्रह्म विषय होने के कारण इसे 'ब्रह्मवेद' भी कहा गया है।
  3. आयुर्वेद, चिकित्सा, औषधियों आदि के वर्णन होने के कारण 'भैषज्य वेद' भी कहा जाता है ।
  4. 'पृथ्वीसूक्त' इस वेद का अति महत्त्वपूर्ण सूक्त है। इस कारण इसे 'महीवेद' भी कहते हैं।

विषय

अथर्ववेद में कुल 20 काण्ड, 730 सूक्त एवं 5987 मंत्र हैं। इस वेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं-

  • ब्रह्मज्ञान
  • औषधि प्रयोग
  • रोग निवारण
  • जन्त्र-तन्त्र
  • टोना-टोटका आदि।

विवरण

अथर्ववेद में परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है तथा इसमें कुरू देश की समृद्धि का अच्छा विवरण मिलता है। इस वेद में आर्य एवं अनार्य विचार-धाराओं का समन्वय है। उत्तर वैदिक काल में इस वेद का विशेष महत्त्व है। ऋग्वेद के दार्शनिक विचारों का प्रौढ़रूप इसी वेद से प्राप्त हुआ है। शान्ति और पौष्टिक कर्मा का सम्पादन भी इसी वेद में मिलता है। अथर्ववेद में सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय 'आयुर्विज्ञान' है। इसके अतिरिक्त 'जीवाणु विज्ञान' तथा 'औषधियों' आदि के विषय में जानकारी इसी वेद से होती है। भूमि सूक्त के द्वारा राष्ट्रीय भावना का सुदृढ़ प्रतिपादन सर्वप्रथम इसी वेद में हुआ है। इस वेद की दो अन्य शाखायें हैं-

  1. पिप्पलाद
  2. शौनक

अथर्ववेद में 20 कांड हैं, जिनमें 598 सूक्त और गद्य परिच्छेद हैं। जिनका विवरण निम्न हैः-

  • पहले से लेकर सातवें कांड में विशिष्ट उद्देश्यों के लिए तंत्र-मंत्र संबंधी प्राथनाएं हैं- लंबे जीवन के लिए मंत्र, उपचार, श्राप, प्रेम मंत्र, समृद्धि के लिए प्रार्थना, ब्राह्मण के ज्ञाताओं से घनिष्ठता, वेद अध्ययन में सफलता, राजा बनने के लिए मंत्र और पाप का प्रायश्चित।
  • आठवें से बारहवें कांड में इसी तरह के पाठ हैं, लेकिन इसमें ब्रह्मांडीय सूक्त भी शामिल हैं, जो ऋग्वेद के सूक्तों को ही जारी रखते हैं और उपनिषदों के अधिक जटिल चिंतन की ओर ले जाते हैं। उदाहरण के लिए, उपनिषदों के लिए अत्यंत अर्थवान श्वास या प्राणवायु के महत्त्व की संकल्पना और सार्वभौम अस्तित्व से जुड़े आत्म पर चिंतन सबसे पहले अथर्ववेद में ही पाए गए थे।
  • 13 से 20 तक कांड में ब्रह्मांडीय सिद्धांत (13 कांड), विवाह प्राथनाएं (कांड 14), अंतिम संस्कार के मंत्र (कांड 18) और अन्य जादुई व अनुष्ठानिक मंत्र हैं।
    • 15 वां कांड रोचक है, जिसमें व्रत्य का महिमामंडन किया गया है, जो वेदपाठ न करने वाला एक अरूढ़िबद्ध आर्य समूह था, लेकिन इसके बावजूद सम्मानजनक आनुष्ठानिक व चिंतन परंपराएं रखता था। यही नहीं, व्रत्य स्वामिस्वरूप हैं और एक राजा का आतिथ्य ग्रहण करने की स्थति में उन्हें राजा को आशीर्वाद देने योग्य माना गया है। अथर्ववेद के इस भाग के साथ-साथ अन्य यजुर्वेद परिच्छेदों में वैदिक रचना के प्राथमिक संगठनात्मक सिद्धांतों और बाद के भारतीय अनुष्ठानों में से एक, अतिथि सत्कार के मह्त्व का वर्णन किया गया है।

अन्य सूक्त

अथर्ववेद का एक अन्य सूक्त मानव शरीर की रचना का वर्णन व प्रशंसा करता है। इस सूक्त व उपचार से जुड़े सामन्य अथर्ववेदी चिंतन के कारण शास्त्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली, आयुर्वेद अपनी उत्पत्ति अथर्ववेद से मानता है। किंतु शास्त्रों द्वारा इस दावें को समर्थन नहीं मिलता और न तो आयुर्वेद के सिद्धांत वेदों में और न ही अथर्ववेद के तांत्रिक या आनुष्ठानिक उपचार आयुर्वेद में पाए जाते हैं। फिर भी चिकित्सकीय उपचारों को प्रणालीबद्ध करने व उन्हें वर्गीकृत किए जाने के काम की शुरुआत अथर्ववेद से मानी जा सकती है।

विशेषताएँ

  1. इसमें ऋग्वेद और सामवेद से भी मन्त्र लिये गये हैं।
  2. जादू से सम्बन्धित मन्त्र-तन्त्र, राक्षस, पिशाच, आदि भयानक शक्तियाँ अथर्ववेद के महत्त्वपूर्ण विषय हैं।
  3. इसमें भूत-प्रेत, जादू-टोने आदि के मन्त्र हैं।
  4. ऋग्वेद के उच्च कोटि के देवताओं को इस वेद में गौण स्थान प्राप्त हुआ है।
  5. धर्म के इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद और अथर्ववेद दोनों का बड़ा ही मूल्य है।
  6. अथर्ववेद से स्पष्ट है कि कालान्तर में आर्यों में प्रकृति की पूजा की उपेक्षा हो गयी थी और प्रेत-आत्माओं व तन्त्र-मन्त्र में विश्वास किया जाने लगा था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

श्रुतियाँ