बजरंग बाण -तुलसीदास: Difference between revisions
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जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। | जय हनुमंत संत हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। | ||
जन के काज | जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।। | ||
जैसे कूदि सिंधु महि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।। | जैसे कूदि सिंधु महि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।। | ||
आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहुं लात गई सुरलोका ।। | आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहुं लात गई सुरलोका ।। |
Latest revision as of 09:08, 10 February 2021
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निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान । |
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