माधव! मो समान जग माहीं। सब बिधि हीन मलीन दीन अति बिषय कोउ नाहीं॥1॥ तुम सम हेतु रहित, कृपालु, आरतहित ईसहि त्यागी। मैं दुखसोक बिकल, कृपालु केहि कारन दया न लागी॥2॥ नाहिन कछु अवगुन तुम्हार, अपराध मोर मैं माना। ग्यान भवन तनु दियहु नाथ सोउ पा न मैं प्रभु जाना॥3॥ बेनु करील, श्रीखण्ड बसंतहि दूषन मृषा लगावै। साररहित हतभाग्य सुरभि पल्लव सो कहँ कहु पावै॥4॥ सब प्रकार मैं कठिन मृदुल हरि दृढ़ बिचार जिय मोरे। तुलसीदास प्रभु मोह सृंखला छुटिहि तुम्हारे छोरे॥5॥