कर्कोटक

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कर्कोटक पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव के गण और नागों के राजा थे। भगवान शिव की स्तुति के कारण कर्कोटक जनमेजय के नाग यज्ञ से बच निकले थे और उज्जैन में उन्होंने शिव की घोर तपस्या की थी। कर्कोटेश्वर का एक प्राचीन उपेक्षित मंदिर आज भी चौबीस खम्भा देवी के पास कोट मोहल्ले में है। वर्तमान में यह कर्कोटेश्वर मंदिर हरसिद्धि के प्रांगण में स्थित है।

कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार नागों की माँ ने उन्हें अपना वचन भंग करने के कारण शाप दिया कि वे सब जनमेजय के नाग यज्ञ में जल मरेंगे। इससे भयभीत होकर शेषनाग हिमालय पर, कम्बल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। एलापत्र ने ब्रह्म जी से पूछा- "भगवान ! माता के शाप से हमारी मुक्ति कैसे होगी?" तब ब्रह्माजी ने कहा, "आप महाकाल वन में जाकर महामाया के सामने स्थित शिवलिंग की पूजा करो। तब कर्कोटक नाग वहाँ पहुँचा और उन्होंने शिवजी की स्तुति की। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि "जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा।" इसके उपरांत कर्कोटक नाग वहीं लिंग में प्रविष्ट हो गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। यह माना जाता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार को कर्कोटेश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. प्रमुख नाग कुल (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 जनवरी, 2013।

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