देवहूति

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देवहूति (अंग्रेज़ी: Devhuti) स्वयंभुव मनु की कन्या और प्रजकी पत्नी एवं कपिल की माता थी। देवहूति की माता का नाम शतरूपा था। स्वयंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र- प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्यायें- आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ।

कथा

कर्दम ऋषि ने विवाह पूर्व सतयुग में सरस्वती नदी के किनारे विष्णु की घोर तपस्या की थी। उसी के फलस्वरूप भगवान विष्णु कपिल मुनि के रूप में कर्दम ऋषि के यहां जन्में। कर्दम ऋषि विवाह नहीं करना चाहते थे परंतु भगवान विष्णु ने उन्हें देवहूति से विवाह करने को कहा। स्वयंभुव मनु एक दिन देवहुति को लेकर कर्दम ऋषि के आश्रम गए। स्वयंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा तो आसन पर बैठ गए परंतु देवहूति नहीं बैठी तो कर्दम ऋषि ने कहा कि देवी ये आपके लिए ही आसन बिछाया है आप यहां बैठे।[1]

देवहूति ने सोचा कि मैं अपने होने वाले पति के सामने उनके बिछाए आसन पर कैसे बैठ सकती हूं और नहीं बैठूंगी तो उनका अपमान होगा। यह सोचकर वह आसन पर अपना दाहिना हाथ रखकर आसन के पास बैठ गईं। यह देखकर कर्दम ऋषि ने सोचा कन्या विवाह योग्य है। इससे विवाह किया जा सकता है। इस तरह उनका विवाह हुआ। परंतु कर्दम ऋषि ने शर्त रखी थी कि पुत्र होने के बाद मैं ब्रह्मचर्य धारण करके संन्यास ले लूंगा। यह सुनकर भी देवहूति ने विवाह के लिए हां भर दी थी क्योंकि वह जानती थीं कि जिन ऋषि को भगवान विष्णु ने दर्शन दिए हैं, उनके साथ कुछ समय रहना भी सौभाग्य है।

कर्दम ऋषि की नौ कन्याओं का जन्म और एक पुत्र का जन्म भी बड़ी विचित्र परिस्थिति में हुआ। कहते हैं कि कर्दम ऋषि भूल ही गए थे कि उन्होंने विवाह किया है। वे आश्रम में रहकर संन्यासियों जैसा ही जी‍वन यापन करते थे। देवहूति उनकी सेवा करती थी। एक दिन कर्दम ऋषि ने कहा कि देवी मैं आपकी सेवा से प्रसन्न हूं, मांगों क्या मांगना चाहती हो। देवहूति ने कहा कि स्वामी! आप भूल गए कि आपने मुझे वचन दिया था पुत्र रत्न की प्राप्ति का। यह सुनकर कर्दम ऋषि ने योगबल से एक विमान का निर्माण किया जिसमें कई कमरे थे। सेवा करने के लिए कई दासियां भी थीं। दोनों उसमें सवार होकर चल पड़े। विमान धरती का भ्रमण करता रहा। विमान में ही नौ कन्याओं का जन्म हुआ।[1]

तब कर्दम ऋषि ने कहा कि अब मैं संन्यास ले लूं। देवहूति ने कहा कि स्वामी! आपको संन्यास लेने से कौन रोक सकता है परंतु अभी भी आपका वचन पूरा नहीं हुआ है आपने पुत्र प्राप्त के बाद संन्यास लेने का कहा था और अब इन कन्याओं के विवाह भी तो करना है। इस तरह कर्दम ऋषि पुन: संसार में उलझ गए। कहते हैं कि कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति का विवाह क्रमश: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, भृगु, वसिष्ठ तथा अथर्वा से सम्पन्न हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कर्दम ऋषि की 9 कन्याओं के जन्म की कथा (हिंदी) webdunia.com। अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2021।

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