Difference between revisions of "दीन-ए-इलाही"

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'''दीन-ए-इलाही / Deen-E-Elahi'''<br />
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'''दीन-ए-इलाही''' एक नया [[धर्म]] था जिसका आरंभ 1582 ई. में [[अकबर|बादशाह अकबर]] ने किया था। इस धर्म में [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]], [[मुस्लिम]], [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]], [[जैन धर्म|जैन]], [[पारसी धर्म|पारसी]] तथा [[ईसाई धर्म]] की मुख्य-मुख्य बातों का समावेश किया गया था। अद्यपि इसका मूल आधार [[एकेश्वरवाद]] था, परंतु बहुदेववाद की झलक भी इसमें थी। तर्क पर आधारित यह धर्म धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर सहिष्णुता की शिक्षा देता था। अकबर के शासन काल में इस धर्म के बहुत से अनुयायी हो गए थे। परंतु उसकी मृत्यु के बाद इसका लोप हो गया।
 
   
 
   
[[फतेहपुर सीकरी]] के इबादत खाने में विभिन्न धर्मों के आचार्य और संत−महात्माओं के साथ विचार−विमर्श करते रहने से [[अकबर]] के धार्मिक विचारों में बड़ी क्रांति हुई थी। उस समय इस्लाम से उसकी अरूचि थी और [[हिन्दू धर्म]] स्वीकार करना उसके लिए संभव नहीं था, अत: सन् 1582 में उसने एक नये धार्मिक संप्रदाय को प्रचलित किया । उसने अपने दृष्टिकोण से इस्लाम, हिन्दू, [[जैन]], ईसाई सभी धर्मों की अच्छाइयों को लेकर एक नये संप्रदाय की स्थापना की और उसका नाम दीन इलाही (भगवान का धर्म )रखा था । इस संप्रदाय का संस्थापक होने से अकबर का स्थान स्वतः ही सर्वोच्च था । वह सम्राट के साथ ही पैगंबर भी बन गया और [[अबुलफज़ल]] उस नये संप्रदाय का खलीफ़ा हुआ । इस धर्म के अनुयायी मुसलमान और हिन्दू दोनों ही थे, लेकिन उनकी संख्या उँगलियों पर गिनने लायक थी । अधिकांश मुसलमानों और हिन्दुओं ने नये संप्रदाय की उपेक्षा की । प्रमुख दरबारियों में, मुसलमानों में शेख मुबारक, फैजी, अबुलफज़ल आदि थे । हिन्दुओं में केवल एक बीरबल ने उसे स्वीकार किया था । अकबर ने निकट संबंधी और प्रमुख दरबारी राजा भगवानदास तथा मानसिंह ने उसके प्रति कोई रूचि नहीं दिखलाई थी । अकबर के अंत:पुर में  किसी रानी या बेगम ने भी इस धर्म को स्वीकार नहीं किया था ।
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[[फ़तेहपुर सीकरी]] के इबादत खाने में विभिन्न धर्मों के आचार्य और संत−महात्माओं के साथ विचार−विमर्श करते रहने से [[अकबर]] के धार्मिक विचारों में बड़ी क्रांति हुई थी। उस समय [[इस्लाम]] से उसकी अरुचि थी और [[हिन्दू धर्म]] स्वीकार करना उसके लिए संभव नहीं था, अत: सन् 1582 में उसने एक नये धार्मिक संप्रदाय को प्रचलित किया। उसने अपने दृष्टिकोण से इस्लाम, हिन्दू, [[जैन]], ईसाई सभी धर्मों की अच्छाइयों को लेकर एक नये संप्रदाय की स्थापना की और उसका नाम दीन इलाही (भगवान का धर्म) रखा था। इस संप्रदाय का संस्थापक होने से अकबर का स्थान स्वतः ही सर्वोच्च था। वह सम्राट के साथ ही पैगंबर भी बन गया और [[अबुलफज़ल]] उस नये संप्रदाय का [[खलीफ़ा]] हुआ। इस धर्म के अनुयायी मुसलमान और हिन्दू दोनों ही थे, लेकिन उनकी संख्या उँगलियों पर गिनने लायक़ थी। अधिकांश मुसलमानों और हिन्दुओं ने नये संप्रदाय की उपेक्षा की। प्रमुख दरबारियों में, मुसलमानों में शेख मुबारक, फैजी, अबुलफज़ल आदि थे। हिन्दुओं में केवल एक बीरबल ने उसे स्वीकार किया था। अकबर ने निकट संबंधी और प्रमुख दरबारी [[भगवानदास|राजा भगवानदास]] तथा [[मानसिंह]] ने उसके प्रति कोई रुचि नहीं दिखलाई थी। अकबर के [[अंत:पुर]] में  किसी रानी या बेगम ने भी इस धर्म को स्वीकार नहीं किया था ।
 
==उपासना विधि==
 
==उपासना विधि==
*दीन इलाही में [[सूर्य देवता|सूर्य]] की उपासना को प्रधानता दी गई थी ।
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*दीन इलाही में [[सूर्य देवता|सूर्य]] की उपासना को प्रधानता दी गई थी।
*[[अग्निदेव|अग्नि]] की पूजा और दीपक को नमस्कार करने का विधान था ।
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*[[अग्निदेव|अग्नि]] की पूजा और [[दीपक]] को नमस्कार करने का विधान था।
*प्रात: दोपहर सांय और रात्रि में सूर्य की पूजा की जाती थी ।
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*प्रात: दोपहर सांय और रात्रि में सूर्य की पूजा की जाती थी।
*सूर्य सहस्रनाम का जप किया जाता था ।
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*सूर्य सहस्रनाम का जप किया जाता था।
*प्रात: और मध्य रात्रि में प्रार्थना करने की सूचना नगाड़े बजा कर दी जाती थी ।
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*प्रात: और मध्य रात्रि में प्रार्थना करने की सूचना [[नगाड़ा|नगाड़े]] बजा कर दी जाती थी।
*साल में सौ से अधिक दिन मांसाहारी भोजन वर्जित था। यह हुक्म सारे राज्य पर लागू था ।
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*साल में सौ से अधिक दिन मांसाहारी भोजन वर्जित था। यह हुक्म सारे राज्य पर लागू था।
*दीन−इलाही के अनुयायी के लिए दाढ़ी मुँडाना आवश्यक था । उसके लिये गोमांस, लहसुन−प्याज खाना वर्जित था ।
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*दीन−इलाही के अनुयायी के लिए दाढ़ी मुँडाना आवश्यक था। उसके लिये गोमांस, [[लहसुन]]−प्याज खाना वर्जित था।
*बादशाह के सामने सज़दा (दंडवत ­) करना आवश्यक था । उसे दीन के बाहर के लोग भी मानने के लिये मजबूर थे ।
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*बादशाह के सामने सज़दा (दंडवत) करना आवश्यक था। उसे दीन के बाहर के लोग भी मानने के लिये मजबूर थे।
*धार्मिक विधियों के अलावा इस संप्रदाय में कुछ सामाजिक सुधार की बातें भी थीं ।
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*धार्मिक विधियों के अलावा इस संप्रदाय में कुछ सामाजिक सुधार की बातें भी थीं।
*इस्लाम में बहुविवाह मान्य है : किंतु इस संप्रदाय में एक से अधिक विवाह करना वर्जित था ।
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*इस्लाम में बहुविवाह मान्य है : किंतु इस संप्रदाय में एक से अधिक विवाह करना वर्जित था।
 
*सती प्रथा बंद कर दी थी ।
 
*सती प्रथा बंद कर दी थी ।
 
==दीन-ए-इलाही का विरोध==
 
==दीन-ए-इलाही का विरोध==
इस नये संप्रदाय की धार्मिक क्रिया और पूजा−पद्धति की कई पुस्ताएँ लिखी गई तथा धर्मशास्त्र तैयार कराये गये थे, किंतु अकबर की मृत्यु होते ही सब समाप्त हो गया । जो लोग दीन इलाही के अनुयायी बने थे, वे सब अपने−अपने धर्मों में वापिस चले गये । हिन्दू और मुसलमान सभी ने इस नये संप्रदाय का विरोध किया था । अकबर के समय विरोध उभर नहीं सका था, किंतु उसकी मृत्यु होते ही वह फूट पड़ा । राजा से प्रजा तब सब उसके विरोधी थे । अकबर के बाद दीन इलाही का नाम केवल इतिहास में ही शेष रह गया । सम्राट अकबर को अपने अर्ध्द शताब्दी के शासन में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुई थीं । वह राजनीति और प्रशासन के साथ ही साथ वस्तु चित्र, संगीतादि के सांस्कृतिक क्षेत्र में भी सफल रहा था, किंतु धर्म के क्षेत्र में उसे सफलता नहीं मिली थी।
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इस नये संप्रदाय की धार्मिक क्रिया और पूजा−पद्धति की कई पुस्ताएँ लिखी गई तथा [[धर्मशास्त्र]] तैयार कराये गये थे, किंतु अकबर की मृत्यु होते ही सब समाप्त हो गया। जो लोग दीन इलाही के अनुयायी बने थे, वे सब अपने−अपने धर्मों में वापिस चले गये। हिन्दू और मुसलमान सभी ने इस नये संप्रदाय का विरोध किया था। अकबर के समय विरोध उभर नहीं सका था, किंतु उसकी मृत्यु होते ही वह फूट पड़ा। राजा से प्रजा तब सब उसके विरोधी थे। अकबर के बाद दीन इलाही का नाम केवल [[इतिहास]] में ही शेष रह गया । सम्राट अकबर को अपने अर्द्ध शताब्दी के शासन में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुई थीं। वह राजनीति और प्रशासन के साथ ही साथ वस्तु चित्र, संगीतादि के सांस्कृतिक क्षेत्र में भी सफल रहा था, किंतु धर्म के क्षेत्र में उसे सफलता नहीं मिली थी।
 
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[[Category:इतिहास कोश]]
 
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Latest revision as of 07:49, 3 January 2016

din-e-ilahi ek naya dharm tha jisaka aranbh 1582 ee. mean badashah akabar ne kiya tha. is dharm mean hindoo, muslim, bauddh, jain, parasi tatha eesaee dharm ki mukhy-mukhy batoan ka samavesh kiya gaya tha. adyapi isaka mool adhar ekeshvaravad tha, parantu bahudevavad ki jhalak bhi isamean thi. tark par adharit yah dharm dharmik bhedabhav se oopar uthakar sahishnuta ki shiksha deta tha. akabar ke shasan kal mean is dharm ke bahut se anuyayi ho ge the. parantu usaki mrityu ke bad isaka lop ho gaya.

fatehapur sikari ke ibadat khane mean vibhinn dharmoan ke achary aur sant−mahatmaoan ke sath vichar−vimarsh karate rahane se akabar ke dharmik vicharoan mean b di kraanti huee thi. us samay islam se usaki aruchi thi aur hindoo dharm svikar karana usake lie sanbhav nahian tha, at: sanh 1582 mean usane ek naye dharmik sanpraday ko prachalit kiya. usane apane drishtikon se islam, hindoo, jain, eesaee sabhi dharmoan ki achchhaiyoan ko lekar ek naye sanpraday ki sthapana ki aur usaka nam din ilahi (bhagavan ka dharm) rakha tha. is sanpraday ka sansthapak hone se akabar ka sthan svatah hi sarvochch tha. vah samrat ke sath hi paiganbar bhi ban gaya aur abulaphazal us naye sanpraday ka khalifa hua. is dharm ke anuyayi musalaman aur hindoo donoan hi the, lekin unaki sankhya uangaliyoan par ginane layaq thi. adhikaansh musalamanoan aur hinduoan ne naye sanpraday ki upeksha ki. pramukh darabariyoan mean, musalamanoan mean shekh mubarak, phaiji, abulaphazal adi the. hinduoan mean keval ek birabal ne use svikar kiya tha. akabar ne nikat sanbandhi aur pramukh darabari raja bhagavanadas tatha manasianh ne usake prati koee ruchi nahian dikhalaee thi. akabar ke aant:pur mean kisi rani ya begam ne bhi is dharm ko svikar nahian kiya tha .

upasana vidhi

  • din ilahi mean soory ki upasana ko pradhanata di gee thi.
  • agni ki pooja aur dipak ko namaskar karane ka vidhan tha.
  • prat: dopahar saany aur ratri mean soory ki pooja ki jati thi.
  • soory sahasranam ka jap kiya jata tha.
  • prat: aur madhy ratri mean prarthana karane ki soochana naga de baja kar di jati thi.
  • sal mean sau se adhik din maansahari bhojan varjit tha. yah hukm sare rajy par lagoo tha.
  • din−ilahi ke anuyayi ke lie dadhi muandana avashyak tha. usake liye gomaans, lahasun−pyaj khana varjit tha.
  • badashah ke samane sazada (dandavat) karana avashyak tha. use din ke bahar ke log bhi manane ke liye majaboor the.
  • dharmik vidhiyoan ke alava is sanpraday mean kuchh samajik sudhar ki batean bhi thian.
  • islam mean bahuvivah many hai : kiantu is sanpraday mean ek se adhik vivah karana varjit tha.
  • sati pratha band kar di thi .

din-e-ilahi ka virodh

is naye sanpraday ki dharmik kriya aur pooja−paddhati ki kee pustaean likhi gee tatha dharmashastr taiyar karaye gaye the, kiantu akabar ki mrityu hote hi sab samapt ho gaya. jo log din ilahi ke anuyayi bane the, ve sab apane−apane dharmoan mean vapis chale gaye. hindoo aur musalaman sabhi ne is naye sanpraday ka virodh kiya tha. akabar ke samay virodh ubhar nahian saka tha, kiantu usaki mrityu hote hi vah phoot p da. raja se praja tab sab usake virodhi the. akabar ke bad din ilahi ka nam keval itihas mean hi shesh rah gaya . samrat akabar ko apane arddh shatabdi ke shasan mean anek saphalataean prapt huee thian. vah rajaniti aur prashasan ke sath hi sath vastu chitr, sangitadi ke saanskritik kshetr mean bhi saphal raha tha, kiantu dharm ke kshetr mean use saphalata nahian mili thi.

panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh

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