Difference between revisions of "माधवजू मोसम मंद न कोऊ -तुलसीदास"
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माधवजू मोसम मंद न कोऊ। | माधवजू मोसम मंद न कोऊ। | ||
− | जद्यपि मीन पतंग हीनमति, मोहि नहिं पूजैं | + | जद्यपि मीन पतंग हीनमति, मोहि नहिं पूजैं ओऊ॥1॥ |
रुचिर रूप-आहार-बस्य उन्ह, पावक लोह न जान्यो। | रुचिर रूप-आहार-बस्य उन्ह, पावक लोह न जान्यो। | ||
− | देखत बिपति बिषय न तजत हौं ताते अधिक | + | देखत बिपति बिषय न तजत हौं ताते अधिक अयान्यो॥2॥ |
महामोह सरिता अपार महँ, संतत फिरत बह्यो। | महामोह सरिता अपार महँ, संतत फिरत बह्यो। | ||
− | श्रीहरि चरनकमल-नौका तजि फिरि फिरि फेन | + | श्रीहरि चरनकमल-नौका तजि फिरि फिरि फेन गह्यो॥3॥ |
अस्थि पुरातन छुधित स्वान अति ज्यों भरि मुख पकरै। | अस्थि पुरातन छुधित स्वान अति ज्यों भरि मुख पकरै। | ||
− | निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष | + | निज तालूगत रुधिर पान करि, मन संतोष धरै॥4॥ |
परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | परम कठिन भव ब्याल ग्रसित हौं त्रसित भयो अति भारी। | ||
− | चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ | + | चाहत अभय भेक सरनागत, खग-पति नाथ बिसारी॥5॥ |
जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | जलचर-बृंद जाल-अंतरगत होत सिमिट एक पासा। | ||
− | एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज | + | एकहि एक खात लालच-बस, नहिं देखत निज नासा॥6॥ |
मेरे अघ सारद अनेक जुग गनत पार नहिं पावै। | मेरे अघ सारद अनेक जुग गनत पार नहिं पावै। | ||
− | तुलसीदास पतित-पावन प्रभु, यह भरोस जिय | + | तुलसीदास पतित-पावन प्रभु, यह भरोस जिय आवै॥7॥ |
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Latest revision as of 11:32, 1 November 2014
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madhavajoo mosam mand n kooo. |
sanbandhit lekh |