बीर: Difference between revisions

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धूरि चाहत मिलाए दसकंधा अंधा मुख को
धूरि चाहत मिलाए दसकंधा अंधा मुख को
चमकै समरभूमि बरछी, सहस फन,
चमकै समरभूमि बरछी, सहस फन,
कहत पुकारे लंक अंक दीह दुख को।
कहत पुकारे लंक अंक दीह दु:ख को।
बलकि - बलकि बोलैं बीर रघुबीर धीर,
बलकि - बलकि बोलैं बीर रघुबीर धीर,
महि पर मीड़ि मारौं आज दसमुख को</poem></blockquote>
महि पर मीड़ि मारौं आज दसमुख को</poem></blockquote>

Latest revision as of 14:01, 2 June 2017

  • रीति काल के कवि बीर दिल्ली के रहने वाले 'श्रीवास्तव कायस्थ' थे।
  • इन्होंने 'कृष्णचंद्रिका' नामक रस और नायिका भेद का एक ग्रंथ संवत 1779 में लिखा।
  • इनकी कविता साधारण है।
  • वीर रस का कवित्त इस प्रकार है -

अरुन बदन और फरकै बिसाल बाहु,
कौन को हियौ है करै सामने जो रुख़ को।
प्रबल प्रचंड निसिचर फिरैं धाए,
धूरि चाहत मिलाए दसकंधा अंधा मुख को
चमकै समरभूमि बरछी, सहस फन,
कहत पुकारे लंक अंक दीह दु:ख को।
बलकि - बलकि बोलैं बीर रघुबीर धीर,
महि पर मीड़ि मारौं आज दसमुख को


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