घूँघट के पट -कबीर: Difference between revisions
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घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥ | घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥ | ||
धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे। | धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे। | ||
सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल | सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे॥ | ||
जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे। | जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे। | ||
कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥ | कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥ |
Latest revision as of 09:33, 24 December 2011
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घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे। |
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