बिहारी लाल: Difference between revisions

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Revision as of 12:50, 26 May 2010

  • हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में बिहारीलाल का नाम महत्वपूर्ण है। महाकवि बिहारीलाल का जन्म 1595 के लगभग ग्वालियर में हुआ। वे जाति के माथुर चौबे थे। उनके पिता का नाम केशवराय था। उनका बचपन बुंदेलखंड में कटा और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई, जैसे की निम्न दोहे से प्रकट है -

जनम ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल ।
तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल ।।

  • जयपुर-नरेश मिर्जा राजा जयसिंह अपनी नयी रानी के प्रेम में इतने डूबे रहते थे कि वे महल से बाहर भी नहीं निकलते थे और राज-काज की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। मन्त्री आदि लोग इससे बड़े चिंतित थे, किंतु राजा से कुछ कहने को शक्ति किसी में न थी। बिहारीलाल ने यह कार्य अपने ऊपर लिया। उन्होंने निम्नलिखित दोहा किसी प्रकार राजा के पास पहुंचाया-

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल ।

अली कली ही सौं बिंध्यों, आगे कौन हवाल ।।

  • इस दोहे ने राजा पर मन्त्र जैसा कार्य किया। वे रानी के प्रेम-पाश से मुक्त होकर पुनः अपना राज-काज संभालने लगे। वे बिहारीलाल की काव्य कुशलता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बिहारीलाल से और भी दोहे रचने के लिए कहा और प्रति दोहे पर एक अशर्फ़ी देने का वचन दिया। बिहारीलाल जयपुर नरेश के दरबार में रहकर काव्य-रचना करने लगे, वहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला। 1663 में उनकी मृत्यु हो गई।
  • बिहारीलाल की एकमात्र रचना 'बिहारी सतसई' है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें 719 दोहे संकलित हैं। 'बिहारी सतसई' श्रृंगार रस की अत्यंत प्रसिद्ध और अनूठी कृति है। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य का एक-एक अनमोल रत्न माना जाता है। बिहारीलाल की कविता का मुख्य विषय श्रृंगार है। उन्होंने श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन किया है। संयोग पक्ष में बिहारीलाल ने हाव-भाव और अनुभवों का बड़ा ही सूक्ष्म चित्रण किया हैं। उसमें बड़ी मार्मिकता है। संयोग का एक उदाहरण देखिए-

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करे, भौंहनु हंसे दैन कहे, नटि जाय ।।

  • बिहारीलाल का वियोग, वर्णन बड़ा अतिशयोक्ति पूर्ण है। यही कारण है कि उसमें स्वाभाविकता नहीं है, विरह में व्याकुल नायिका की दुर्बलता का चित्रण करते हुए उसे घड़ी के पेंडुलम जैसा बना दिया गया है-

इति आवत चली जात उत, चली, छःसातक हाथ ।
चढ़ी हिंडोरे सी रहे, लगी उसासनु साथ ।।

  • सूफी कवियों की अहात्मक पद्धति का भी बिहारीलाल पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। वियोग की आग से नायिका का शरीर इतना गर्म है कि उस पर डाला गया गुलाब जल बीच में ही सूख जाता है-

औंधाई सीसी सुलखि, बिरह विथा विलसात ।
बीचहिं सूखि गुलाब गो, छीटों छुयो न गात ।।


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