माघ कवि: Difference between revisions
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Revision as of 14:42, 10 September 2012
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चित्र:Disamb2.jpg माघ | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- माघ (बहुविकल्पी) |
संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवियों में 'माघ' की गणना की जाती है। उनका समय लगभग 675 ई. निर्धारित किया गया है। उनकी सुप्रसिद्ध रचना ‘शिशुपालवध’ नामक महाकाव्य है। इसकी कथा भी महाभारत से ली गई है। इस ग्रन्थ में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के अवसर पर चेदि नरेश शिशुपाल की कृष्ण द्वारा वध करने की कथा का काव्यात्मक चित्रण किया गया है। माघ वैष्णव मतानुयायी थे। इनकी इच्छा अपने वैष्णव काव्य के माध्यम से शैव मतावलम्बी भारवि से आगे बढ़ जाने की थी। इसके निमित्त इन्होंने काफ़ी प्रयत्न भी किये। उन्होंने अपने ग्रन्थ की रचना किरातार्जुनीयम् की पद्धति पर की। ‘किरात’ की भाँति 'शिशुपालवध' का आरम्भ भी ‘श्री’ शब्द से होता है।
- काव्य शैली के आचार्य
माघ अलंकृत काव्य शैली के आचार्य हैं तथा उन्होंने अलंकारों से सुसज्जित पदों का प्रयोग कुशलता से किया है। प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन करने में भी वे दक्ष थे। भारतीय आलोचक 'माघ' में कालिदास जैसी उपमा, भारवि जैसा अर्थगौरव तथा दण्डी जैसा पदलालित्य, इन तीनों गुणों को देखतें हैं।[1]
- प्रकाण्ड पण्डित
माघ नवीन चमत्कारिक उपमाओं का सृजन करते हैं। माघ व्याकरण, दर्शन, राजनीति, काव्यशास्त्र, संगीत आदि के प्रकाण्ड पण्डित थे तथा उनके ग्रन्थ में ये सभी विशेषताएँ स्थान-स्थान पर देखने को मिलती हैं। उनका व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान तो अगाध था। पदों की रचना में उन्होंने नये-नये शब्दों का चयन किया है। उनका काव्य शब्दों का विश्वकोश प्रतीत होता है। माघ के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि शिशुपाल वध का नवाँ सर्ग समाप्त होने पर कोई नया शब्द शेष नहीं बचता है।[2] उनका शब्द विन्यास विद्वतापूर्ण होने के साथ-साथ मधुर एवं सुन्दर भी है। माघ की कविता में ललित विन्यास भी देखने को मिलता है। इस प्रकार माघ बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि थे। कालान्तर के कवियों ने उनकी अलंकृत शैली का अनुकरण किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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