गरुड़ पुराण: Difference between revisions

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*सर्वाधिक प्रसिद्ध इस प्रेत कल्प के अतिरिक्त इस पुराण में 'आत्मज्ञान' के महत्त्व का भी प्रतिपादन किया गया है। परमात्मा का ध्यान ही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। उसे अपने मन और इन्द्रियों पर संयम रखना परम आवश्यक है। इस प्रकार कर्मकाण्ड पर सर्वाधिक बल देने के उपरान्त 'गरुड़ पुराण' में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकाण्ड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बताई गई है।
*सर्वाधिक प्रसिद्ध इस प्रेत कल्प के अतिरिक्त इस पुराण में 'आत्मज्ञान' के महत्त्व का भी प्रतिपादन किया गया है। परमात्मा का ध्यान ही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। उसे अपने मन और इन्द्रियों पर संयम रखना परम आवश्यक है। इस प्रकार कर्मकाण्ड पर सर्वाधिक बल देने के उपरान्त 'गरुड़ पुराण' में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकाण्ड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बताई गई है।


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[[चित्र:Cover-Garuda-Purana.jpg|thumb|गरुड़ पुराण, गीताप्रेस गोरखपुर का आवरण पृष्ठ]]


वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित 'गरुड़ पुराण' सनातन धर्म में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है। किन्तु यह भ्रम की स्थिति है। प्राय: कर्मकाण्डी ब्राह्मण इस पुराण के 'प्रेत खण्ड' को ही 'गरुड़ पुराण' मानकर यजमानों के सम्मुख प्रस्तुत कर देते हैं और उन्हें लूटते हैं।

विष्णु भक्ति

[[चित्र:Garuda.jpg|गरुड़
Garuda|thumb|220px]] वास्तविक तथ्य यह है कि इस पुराण में विष्णु भक्ति का विस्तार से वर्णन है। भगवान विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन ठीक उसी प्रकार यहाँ प्राप्त होता है, जिस प्रकार 'श्रीमद्भागवत पुराण' में उपलब्ध होता है। आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति, ध्रुव चरित्र और बारह आदित्यों की कथा प्राप्त होती है। उसके उपरान्त सूर्य और चन्द्र ग्रहों के मन्त्र, शिव-पार्वती मन्त्र, इन्द्र से सम्बन्धित मन्त्र, सरस्वती के मन्त्र और नौ शक्तियों के विषय में विस्तार से बताया गया है।

उन्नीस हज़ार श्लोक

'गरुड़ पुराण' में उन्नीस हज़ार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को दो भागों में रखकर देखना चाहिए। पहले भाग में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है तथा मृत्यु के उपरान्त प्राय: 'गरुड़ पुराण' के श्रवण का प्रावधान है। दूसरे भाग में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तान्त है। इसमें मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्त कैसे पाई जा सकती है, श्राद्ध और पितृ कर्म किस तरह करने चाहिए तथा नरकों के दारूण दुख से कैसे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। [[चित्र:Dhruva-Temple-Madhuvan.jpg|ध्रुव जी मन्दिर, मधुवन
Dhruva Ji Temple, Madhuvan|thumb|220px]]

कथा

इस पुराण में महर्षि कश्यप और तक्षक नाग को लेकर एक सुन्दर उपाख्यान दिया गया है। ऋषि शाप से जब राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने जा रहा था, तब मार्ग में उसकी भेंट कश्यप ऋषि से हुई। तक्षक ने ब्राह्मण का वेश धरकर उनसे पूछा कि वे इस तरह उतावली में कहां जा रहे हैं? इस पर कश्यप ने कहा कि तक्षक नाग महाराज परीक्षित को डसने वाला है। मैं उनका विष प्रभाव दूर करके उन्हें पुन: जीवन दे दूंगा। यह सुनकर तक्षक ने अपना परिचय दिया और उनसे लौट जाने के लिए कहा। क्योंकि उसके विष-प्रभाव से आज तक कोई भी व्यक्ति जीवित नहीं बचा था। तब कश्यप ऋषि ने कहा कि वे अपनी मन्त्र शक्ति से राज परीक्षित का विष-प्रभाव दूर कर देंगे। इस पर तक्षक ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो आप इस वृक्ष को फिर से हरा-भरा करके दिखाइए। मैं इसे डसकर अभी भस्म किए देता हूं। तक्षक ने वृक्ष को अपने विष प्रभाव से तत्काल भस्म कर दिया।

इस पर कश्यप ऋषि ने उस वृक्ष की भस्म एकत्र की और अपना मन्त्र फूंका। तभी तक्षक ने आश्चर्य से देखा कि उस भस्म में से कोंपल फूट आई और देखते ही देखते वह हरा-भरा वृक्ष हो गया। हैरान तक्षक ने ऋषि से पूछा कि वे राजा का भला करने किस कारण से जा रहे हैं? ऋषि ने उत्तर दिया कि उन्हें वहां से प्रचुर धन की प्राप्ति होगी। इस पर तक्षक ने उन्हें उनकी सम्भावना से भी अधिक धन देकर वापस भेज दिया। इस पुराण में कहा गया है कि कश्यप ऋषि का यह प्रभाव 'गरुड़ पुराण' सुनने से ही पड़ा था।

इस पुराण में नीति सम्बन्धी सार तत्त्व, आयुर्वेद, गया तीर्थ माहात्म्य श्राद्ध विधि, दशावतार चारित्र तथा सूर्य-चन्द्र वंशों का वर्णन विस्तार से प्राप्त होता है। बीच-बीच में कुछ अन्य वंशों का भी उल्लेख है। इसके अतिरिक्त गारूड़ी विद्या मन्त्र पक्षि ॐ स्वाहा और 'विष्णु पंजर स्तोत्र' आदि का वर्णन भी मिलता है।

'गरुड़ा पुराण' में विविध रत्नों और मणियों के लक्षणों का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। साथ ही ज्योतिष शास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र, सांपों के लक्षण, धर्म शास्त्र, विनायक शान्ति, वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था, विविध व्रत-उपवास, सम्पूर्ण अष्टांग योग, पतिव्रत धर्म माहात्म्य, जप-तप-कीर्तन और पूजा विधान आदि का भी सविस्तार उल्लेख हुआ है। इस पुराण के 'प्रेत कल्प' में पैतीस अध्याय हैं। जिसका प्रचलन सबसे अधिक हिन्दुओं के सनातन धर्म में है। इन पैंतीस अध्यायों में यमलोक, प्रेतलोक और प्रेत योनि क्यों प्राप्त होती है- उसके कारण, दान महिमा, प्रेत योनि से बचने के उपाय, अनुष्ठान और श्राद्ध कर्म आदि का वर्णन विस्तार से किया गया है। ये सारी बातें मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के परिवार वालों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। वे दिवंगत व्यक्ति की सद्गति और मोक्ष के लिए पुराण-विधान के अनुसार भरपूर दान-दक्षिणा देने के लिए तत्पर हो जाते हैं। इस पुराण का उद्देश्य भी यही जान पड़ता है।

मृत्यु के बाद क्या होता है

यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर जानने की इच्छा सभी को होती है। सभी अपने-अपने तरीक़े से इसका उत्तर भी देते हैं। 'गरुड़ पुराण' भी इसी प्रश्न का उत्तर देता है। जहां धर्म शुद्ध और सत्य आचरण पर बल देता है, वहीं पाप-पुण्य, नैतिकता-अनैतिकता, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य तथा इनके शुभ-अशुभ फलों पर भी विचार करता है। वह इसे तीन अवस्थाओं में विभक्त कर देता है। पहली अवस्था में समस्त अच्छे-बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है। दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है। तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है।

स्वर्ग-नरक

हिन्दू धर्म शास्त्रों में इन तीन प्रकार की अवस्थाओं का खुलकर विवेचन हुआ है। जिस प्रकार चौरासी लाख योनियां हैं, उसी प्रकार चौरासी लाख नरक भी हैं जिन्हें मनुष्य अपने कर्मफल के रूप में भोगता है। 'गरुड़ पुराण' ने इसी स्वर्ग-नरक वाली व्यवस्था को चुनकर उसका विस्तार से वर्णन किया है।

  • इसी कारण भयभीत व्यक्ति अधिक दान-पुण्य करने की ओर प्रवृत्त होता है। 'प्रेत कल्प' में कहा गया है कि नरक में जाने के पश्चात प्राणी प्रेत बनकर अपने परिजनों और सम्बन्धियों को अनेकानेक कष्टों से प्रताड़ित करता रहता है। वह परायी स्त्री और पराये धन पर दृष्टि गड़ाए व्यक्ति को भारी कष्ट पहुंचाता है।
  • जो व्यक्ति दूसरों की सम्पत्ति हड़प कर जाता है, मित्र से द्रोह करता है, विश्वासघात करता है, ब्राह्मण अथवा मन्दिर की सम्पत्ति का हरण करता है, स्त्रियों और बच्चों का संग्रहीत धन छीन लेता है, परायी स्त्री से व्यभिचार करता है, निर्बल को सताता है, ईश्वर में विश्वास नहीं करता, कन्या का विक्रय करता है; माता, बहन, पुत्री, पुत्र, स्त्री, पुत्रबधु आदि के निर्दोष होने पर भी उनका त्याग कर देता है, ऐसा व्यक्ति प्रेत योनि में अवश्य जाता है। उसे अनेकानेक नारकीय कष्ट भोगना पड़ता है। उसकी कभी मुक्ति नहीं होती ।
  • ऐसे व्यक्ति को जीते-जी अनेक रोग और कष्ट घेर लेते हैं। व्यापार में हानि, गर्भनाश, गृह कलह, ज्वर, कृषि हानि, सन्तान मृत्यु आदि से वह दुखी होता रहता है अकाल मृत्यु उसी व्यक्ति की होती है, जो धर्म का आचारण और नियमों को पालन नहीं करता तथा जिसके आचार-विचार दूषित होते हैं। उसके दुष्कर्म ही उसे 'अकाल मृत्यु' में धकेल देते हैं।

'गरुड़ पुराण' में प्रेत योनि और नरक में पड़ने से बचने के उपाय भी सुझाए गए हैं। उनमें सर्वाधिक प्रमुख उपाय दान-दक्षिणा, पिण्डदान तथा श्राद्ध कर्म आदि बताए गए हैं।

  • सर्वाधिक प्रसिद्ध इस प्रेत कल्प के अतिरिक्त इस पुराण में 'आत्मज्ञान' के महत्त्व का भी प्रतिपादन किया गया है। परमात्मा का ध्यान ही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। उसे अपने मन और इन्द्रियों पर संयम रखना परम आवश्यक है। इस प्रकार कर्मकाण्ड पर सर्वाधिक बल देने के उपरान्त 'गरुड़ पुराण' में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकाण्ड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बताई गई है।


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