कृष्णदास कविराज: Difference between revisions

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*चैतन्य साहित्यमाला में अति प्रख्यात ग्रन्थ 'चैतन्यचरितामृत' की रचना कृष्णदास कविराज ने [[वृन्दावन]] के समीप [[राधाकुण्ड गोवर्धन|राधाकुंड]] में सात वर्ष के अनवरत परिश्रम से 1582 ई. में पूरी की।  
'''कृष्णदास कविराज''' [[बांग्ला भाषा]] के वैष्णव कवि थे। [[पश्चिम बंगाल]] में उनका वही स्थान है जो [[उत्तर भारत]] में [[तुलसीदास]] का। इनका जन्म बर्दवान ज़िले के झामटपुर ग्राम में कायस्थ कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं। इन्हें बचपन में ही वैराग्य हो गया। कहते हैं कि नित्यानंद ने उन्हें स्वप्न में [[वृंदावन]] जाने का आदेश दिया। तदनुसार इन्होंने वृंदावन में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और [[संस्कृत]] में अनेक ग्रंथों की रचना की।
*इसमें सम्प्रदाय के नेता [[चैतन्य महाप्रभु|कृष्णचैतन्य]] का सम्पूर्ण जीवन बड़ी अच्छी शैली में वर्णित है।  
==रचनाएँ==
*दिनेशचन्द्र सेन के शब्दों में [[बांग्ला भाषा]] में रचित यह ग्रन्थ चैतन्य तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने वाला सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है।
कृष्णदास का ग्रंथ 'गोविंदलीलामृत' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसमें [[राधा]]-[[कृष्ण]] की [[वृंदावन]] की लीला का वर्णन है। किंतु इनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चैतन्यचरितामृत' है। इसमें [[चैतन्य महाप्रभु|महाप्रभु चैतन्य]] की लीला का गान किया है। इसमें उनकी विस्तृत जीवनी, उनके भक्तों एवं भक्तों के शिष्यों के उल्लेख के साथ-साथ गौड़ीय वैष्णवों की दार्शनिक एवं भक्ति संबंधी विचारधारा का निदर्शन है। इस [[महाकाव्य]] का बंगाल में अत्यंत आदर है और ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। इसमें सम्प्रदाय के नेता [[चैतन्य महाप्रभु|कृष्णचैतन्य]] का सम्पूर्ण जीवन बड़ी अच्छी शैली में वर्णित है। दिनेशचन्द्र सेन के शब्दों में [[बांग्ला भाषा]] में रचित यह ग्रन्थ चैतन्य तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने वाला सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है।
 


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Revision as of 08:06, 4 November 2014

कृष्णदास कविराज बांग्ला भाषा के वैष्णव कवि थे। पश्चिम बंगाल में उनका वही स्थान है जो उत्तर भारत में तुलसीदास का। इनका जन्म बर्दवान ज़िले के झामटपुर ग्राम में कायस्थ कुल में हुआ था। इनका समय कुछ लोग 1496 से 1598 ई. और कुछ लोग 1517 से 1615 ई. मानते हैं। इन्हें बचपन में ही वैराग्य हो गया। कहते हैं कि नित्यानंद ने उन्हें स्वप्न में वृंदावन जाने का आदेश दिया। तदनुसार इन्होंने वृंदावन में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया और संस्कृत में अनेक ग्रंथों की रचना की।

रचनाएँ

कृष्णदास का ग्रंथ 'गोविंदलीलामृत' सबसे अधिक प्रसिद्ध है। इसमें राधा-कृष्ण की वृंदावन की लीला का वर्णन है। किंतु इनका सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ 'चैतन्यचरितामृत' है। इसमें महाप्रभु चैतन्य की लीला का गान किया है। इसमें उनकी विस्तृत जीवनी, उनके भक्तों एवं भक्तों के शिष्यों के उल्लेख के साथ-साथ गौड़ीय वैष्णवों की दार्शनिक एवं भक्ति संबंधी विचारधारा का निदर्शन है। इस महाकाव्य का बंगाल में अत्यंत आदर है और ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। इसमें सम्प्रदाय के नेता कृष्णचैतन्य का सम्पूर्ण जीवन बड़ी अच्छी शैली में वर्णित है। दिनेशचन्द्र सेन के शब्दों में बांग्ला भाषा में रचित यह ग्रन्थ चैतन्य तथा उनके अनुयायियों की शिक्षाओं को प्रस्तुत करने वाला सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख