चांणक का अंग -कबीर: Difference between revisions
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लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ॥5॥ | लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ॥5॥ | ||
ब्राह्मण गुरु | ब्राह्मण गुरु जगत् का, साधू का गुरु नाहिं। | ||
उरझि-पुरझि करि मरि रह्या, चारिउँ बेदां माहिं॥6॥ | उरझि-पुरझि करि मरि रह्या, चारिउँ बेदां माहिं॥6॥ | ||
Latest revision as of 14:02, 30 June 2017
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इहि उदर कै कारणे, जग जाच्यों निस जाम। |
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