जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल। पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥ पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद। सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद॥ मैं जाण्यूं पढिबौ भलो, पढ़बा थैं भलौ जोग। राम-नाम सूं प्रीति करि, भल भल नींदौ लोग॥ `कबीर' पढ़िबो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाई। बावन आखर सोधि करि, `ररै' `ममै' चित्त लाई॥ पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥ करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि-करि तुंड। जानें-बूझै कुछ नहीं, यौं हीं आंधा रूंड॥