जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य - पूर्ण औ सत्य - प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव - हित हो समान! जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटें भय, संशय, अंध - भक्ति; मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिज जावें जिसमें अखिल व्यक्ति! दिशि-दिशि में प्रेम - प्रभा प्रसार, हर भेद - भाव का अंधकार, मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्वर्ग-द्वार! पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान करने मानव का परित्राण, ला सकूँ विश्व में एक बार फिर से नव जीवन का विहान!