भवभूति: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(4 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''भवभूति''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Bhavabhuti'') [[संस्कृत]] के महान [[कवि]] एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके [[नाटक]] [[कालिदास]] के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में '[[महावीरचरित]]' की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी भट्टगोपाल के पोते थे। इनके [[पिता]] का नाम नीलकंठ और [[माता]] का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था।
*लगभग 700 ई. पहले भवभूति एक भारतीय नाटककार और कवि थे। जिनके [[संस्कृत]] में लिखे नाटक अपने रहस्य और सजीव चरित्र चित्रण के लिखे विख्यात हैं और वह नाटक [[कालिदास]] के श्रेष्ठ नाटकों की बराबरी करते हैं।  
*लगभग 700 ई. पहले भवभूति एक भारतीय नाटककार और कवि थे। जिनके [[संस्कृत]] में लिखे नाटक अपने रहस्य और सजीव चरित्र चित्रण के लिखे विख्यात हैं और वह नाटक [[कालिदास]] के श्रेष्ठ नाटकों की बराबरी करते हैं।  
*भवभूति [[विदर्भ]] ([[महाराष्ट्र]] राज्य) के ब्राह्राण [[कन्नौज]] ([[उत्तर प्रदेश]] राज्य) के राजा यशोवर्मन के दरबार में थे।  
*भवभूति [[विदर्भ]] ([[महाराष्ट्र]] राज्य) के ब्राह्राण [[कन्नौज]] ([[उत्तर प्रदेश]] राज्य) के राजा यशोवर्मन के दरबार में थे।  
Line 4: Line 6:
#'''महावीरचरित-''' (महानायक के पराक्रम), जिसमें [[रामायण]] के [[रावण]]–वध से लेकर [[राम]] के राजतिलक तक की मुख्य घटनाएँ सात अंको में वर्णित हैं।<br />
#'''महावीरचरित-''' (महानायक के पराक्रम), जिसमें [[रामायण]] के [[रावण]]–वध से लेकर [[राम]] के राजतिलक तक की मुख्य घटनाएँ सात अंको में वर्णित हैं।<br />
#'''मालती माधव-''' दस अंकों का पारिवारिक नाटक है, जिसमें भावोत्तेजक, किंतु कहीं–कहीं असंभव सी घटनाएँ हैं।  
#'''मालती माधव-''' दस अंकों का पारिवारिक नाटक है, जिसमें भावोत्तेजक, किंतु कहीं–कहीं असंभव सी घटनाएँ हैं।  
#'''उत्तररामचरित-''' (राम के बाद के कार्य) में राम कथा, उनके राजतिलक से लेकर [[सीता]] वनवास और अंत में दोनों के अंतिम मिलन तक की कथा हैं। इस अंतिम नाटक में हालांकि शेष दो नाटकों की अपेक्षा घटनाक्रम काफ़ी कम है। पर इसमें भवभूति की चरित्र चित्रण की प्रतिभा और रहस्य व नाटकीय उत्कर्ष की क्षमता अपने चरम सीमा पर है।
#'''उत्तररामचरित-''' [[उत्तर रामचरित]] <ref>राम के बाद के कार्य</ref> में राम कथा, उनके राजतिलक से लेकर [[सीता]] वनवास और अंत में दोनों के अंतिम मिलन तक की कथा हैं। इस अंतिम नाटक में हालांकि शेष दो नाटकों की अपेक्षा घटनाक्रम काफ़ी कम है। पर इसमें भवभूति की चरित्र चित्रण की प्रतिभा और रहस्य व नाटकीय उत्कर्ष की क्षमता अपने चरम सीमा पर है।


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}  
{{भारत के कवि}}{{संस्कृत साहित्यकार}}
[[Category:कवि]] [[Category:साहित्य कोश]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]] [[Category:साहित्यकार]]  
[[Category:कवि]] [[Category:साहित्य कोश]][[Category:संस्कृत साहित्यकार]] [[Category:साहित्यकार]][[Category:नाटककार]]  
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 05:11, 19 February 2020

भवभूति (अंग्रेज़ी: Bhavabhuti) संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। उनके नाटक कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति ने अपने संबंध में 'महावीरचरित' की प्रस्तावना में लिखा है। ये विदर्भ देश के 'पद्मपुर' नामक स्थान के निवासी भट्टगोपाल के पोते थे। इनके पिता का नाम नीलकंठ और माता का नाम जतुकर्णी था। इन्होंने अपना उल्लेख 'भट्टश्रीकंठ पछलांछनी भवभूतिर्नाम' से किया है। इनके गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' था।

  • लगभग 700 ई. पहले भवभूति एक भारतीय नाटककार और कवि थे। जिनके संस्कृत में लिखे नाटक अपने रहस्य और सजीव चरित्र चित्रण के लिखे विख्यात हैं और वह नाटक कालिदास के श्रेष्ठ नाटकों की बराबरी करते हैं।
  • भवभूति विदर्भ (महाराष्ट्र राज्य) के ब्राह्राण कन्नौज (उत्तर प्रदेश राज्य) के राजा यशोवर्मन के दरबार में थे।
  • भवभूति अपने तीन नाटकों के लिए विशेष रुप से प्रसिद्ध थे–
  1. महावीरचरित- (महानायक के पराक्रम), जिसमें रामायण के रावण–वध से लेकर राम के राजतिलक तक की मुख्य घटनाएँ सात अंको में वर्णित हैं।
  2. मालती माधव- दस अंकों का पारिवारिक नाटक है, जिसमें भावोत्तेजक, किंतु कहीं–कहीं असंभव सी घटनाएँ हैं।
  3. उत्तररामचरित- उत्तर रामचरित [1] में राम कथा, उनके राजतिलक से लेकर सीता वनवास और अंत में दोनों के अंतिम मिलन तक की कथा हैं। इस अंतिम नाटक में हालांकि शेष दो नाटकों की अपेक्षा घटनाक्रम काफ़ी कम है। पर इसमें भवभूति की चरित्र चित्रण की प्रतिभा और रहस्य व नाटकीय उत्कर्ष की क्षमता अपने चरम सीमा पर है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राम के बाद के कार्य

संबंधित लेख