नरोत्तमदास: Difference between revisions
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* ‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है। इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस | * ‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है। इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस महान् कवि के जन्मस्थल पर [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के समय से चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहाँ प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये [[कान्यकुब्ज ब्राह्मण]] थे। | ||
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नरोत्तमदास हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है।
जीवन परिचय
नरोत्तमदास सीतापुर ज़िले के वाड़ी नामक कस्बे के रहने वाले थे। इनकी जाति का उल्लेख कहीं नहीं मिलता। इनका 'सुदामाचरित्र' ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इसमें नरोत्तमदास ने सुदामा के घर की दरिद्रता का बहुत ही सुंदर वर्णन है। यद्यपि यह छोटा है, तथापि इसकी रचना बहुत ही सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। भाषा भी बहुत ही परिमार्जित और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों के समान भरती के शब्द और वाक्य इसमें नहीं हैं। कुछ लोगों के अनुसार इन्होंने इसी प्रकार का एक और खंडकाव्य 'ध्रुवचरित' भी लिखा है। पर वह कहीं देखने में नहीं आया।
जन्म मतभेद
thumb|left|महाकवि नरोत्तमदास का दुर्लभ चित्र
- ‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है। इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस महान् कवि के जन्मस्थल पर अंग्रेज़ों के समय से चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहाँ प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे।
- इसके अतिरिक्त इनके संबंध में अन्य प्रमाणिक अभिलेखों में ‘जार्ज ग्रियर्सन’ का अध्ययन है, जिसमें उन्होंने महाकवि का जन्मकाल सम्वत् 1610 माना है। वस्तुतः इनके जन्मकाल के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने -अपने मत प्रगट किए हैं परन्तु ‘शिव सिंह सेंगर’ व ‘जार्ज ग्रियर्सन’ के मत अधिक समीचीन व प्रमाणित प्रतीत होते है जिसके आधार पर ‘सुदामा चरित’ का रचना काल सम्वत् 1582 में न होकर सन् 1582 अर्थात सम्वत् 1636 होता है।
thumb|left|महाकवि नरोत्तमदास परिसर की दुर्दशा पर आलेख 1991
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘हिन्दी साहित्य’ में नरोत्तमदास के जन्म का उल्लेख सम्वत् 1545 में होना स्वीकार किया है। इस प्रकार अनेक विद्वानों के मतों के आधार पर इनके जीवनकाल का निर्धारण उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में 1493 ई. से 1582 ई. किया गया है।
रचना परिचय
पं. गणेश बिहारी मिश्र की ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार 1900 की खोज में इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के संबंध में भी जानकारियाँ मिलती हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है। नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम-संकीर्तन’ की अनुपलब्धता का वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए। सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने नरोत्तमदास की हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफ़ी समय तक प्रामाणिकता की परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका। thumb|right|महाकवि नरोत्तमदास जन्मस्थली परिसर 2011 ‘सुदामा चरित’ के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैः-
‘यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है।’
thumb|right|नरोत्तमदास जन्मस्थली परिसर में स्थापित महाकवि की मूर्तिं
डॉ. नगेन्द्र ने अपने ग्रथ ‘रीतिकालीन कवियों की की सामान्य विशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सबसे पहले ‘सवैयों’ का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नरोत्तमदास को रखा हें
‘कवित्त’ (घनाक्षरी) का प्रयोग भी सर्वप्रथम नरोत्तमदास ने ही किया था। यह विधा अकबर के समकालीन अन्य कवियों ने अपनायी थी ।
डॉ. रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काव्य के संदर्भ में लिखा हैः-
‘कथा संगठन,’ ‘नाटकीयता’, ‘विधा=न, भाव, भाषा, द्वन्द्व’ आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है।’
नरोत्तमदास की रचनाएँ
- सुदामा चरित, खण्ड काब्य (ब्रजभाषा में संपादित संकलन)
- ‘ध्रुव-चरित’, 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित
- ‘नाम-संकीर्तन’, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)
- 'विचारमाला’, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)
कितने सुदामा चरित?
हिंदी में सुदामा चरितों की परंपरा मिलती है। नंददास के सुदामाचरित के बाद नरोत्तमदास का ही लेखन इस विषय पर मिलता है। नन्द दास का सुदामाचरित वह लोकप्रियता नहीं पा सका जो पन्द्रवहवीं सदी में 1582 संवत में नरोत्तमदास का काव्यमय सुदामाचरित पाने में सफल रहा। सुदामा चरित लिखने का सिलसिला इसके उपरांत भी जारी रहा और सुदामा चरित के यशस्वी लेखकों के रूप में आलम का नाम भी आता है जिसने संवत 1623 में सुदामा चरित लिखा। इसी कडी में राजस्थान निवासी शिवदीन राम जोशी का नाम भी लिया जाता है। संक्षेप में अब तक सुदामा चरितों की संख्या निम्न प्रकार है
- पन्द्रहवी सदी 1582 नरोत्तमदास रचित सुदामा चरित
- सोलहवीं सदी 1623 आलम रचित सुदामा चरित
- 17 वी शती कालीराम 1731
- माखन कवि रचित 18 वी शती विक्रम
- बालकादास 1890
- महाराजदास 1919
- शिवदीन राम जोशी 1957 (लगभग)
पंजाबी में डॉ. मनमोहन सहगल ने उल्लेख किया है कि सुदामा चरित परंपरा से भिन्न अन्य कवियों ने भी सुदामा चरित्र शब्द का ही उपयोग किया है।
विप्र सुदामा बसत हैं, सदा आपने धाम। |
ताकी घरनी पतिव्रता, गहै वेद की रीति। |
कह्यौ सुदामा एक दिन, कृस्न हमारे मित्र। |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
(सुदामा की पत्नी) |
(सुदामा) |
यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास। |
दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई, |
देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय, |
(श्रीकृष्ण का द्वारपाल) |
बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनि, छाँड़े राज-काज ऐसे जी की गति जानै को? |
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पग, कंटक-जाल लगे पुनि जोये। |
(श्री कृष्ण) |
आगे चना गुरु-मातु दिये त, लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने। |
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वह पुलकनि वह उठ मिलनि, वह आदर की भाँति। |
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक दही के काज। |
हौं कब इत आवत हुतौ, वाही पठ्यौ ठेलि। |
वैसेइ राज-समाज बने, गज-बाजि घने, मन संभ्रम छायौ। |
टूटी सी मड़ैया मेरी परी हुती याही ठौर, |
कै वह टूटि-सि छानि हती कहाँ, कंचन के सब धाम सुहावत। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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