तुलसी साहिब: Difference between revisions

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तुलसी साहब ने मनोमय जगत से सूक्ष्मतर आध्यात्मिक भूमियों की कल्पना भी की है और सूक्ष्मतम भूमि को 'महाशून्य', 'सत्तलोक' या 'अगमपुर' कहा है। इस प्रकार की कल्पनाएँ अन्य परवर्ती संतों में भी पायी जाती हैं। इन्होंने संतमत को साम्प्रदायिक भावना से मुक्त करने की चेष्टा की है, किन्तु ऐसा लगता है कि इनमें आत्म-महत्त्व-स्थापना की प्रवृत्ति अत्यधिक सबल थी, इसीलिए कहीं-कहीं परस्पर-विरोधी, असंगत और दुरूह कल्पनाएँ करने में भी इन्हें संकोच नहीं हुआ। इनमें कौशल, चतुरता और आडम्बर अधिक है, संतों की सहजता कम। काव्य-दृष्टि से इनकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं हैं। आध्यामिक विषयों की आग्रहपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण इनकी वाणी सरस नहीं हो सकी।
तुलसी साहब ने मनोमय जगत् से सूक्ष्मतर आध्यात्मिक भूमियों की कल्पना भी की है और सूक्ष्मतम भूमि को 'महाशून्य', 'सत्तलोक' या 'अगमपुर' कहा है। इस प्रकार की कल्पनाएँ अन्य परवर्ती संतों में भी पायी जाती हैं। इन्होंने संतमत को साम्प्रदायिक भावना से मुक्त करने की चेष्टा की है, किन्तु ऐसा लगता है कि इनमें आत्म-महत्त्व-स्थापना की प्रवृत्ति अत्यधिक सबल थी, इसीलिए कहीं-कहीं परस्पर-विरोधी, असंगत और दुरूह कल्पनाएँ करने में भी इन्हें संकोच नहीं हुआ। इनमें कौशल, चतुरता और आडम्बर अधिक है, संतों की सहजता कम। काव्य-दृष्टि से इनकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं हैं। आध्यामिक विषयों की आग्रहपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण इनकी वाणी सरस नहीं हो सकी।
==वाद-विवाद==
==वाद-विवाद==
'घट रामायन' के अनुसार [[काशी]] में रहते हुए इन्हें [[मुसलमान]], जैनी, गुसाईं, पण्डित, संन्यायी, [[कबीरपंथ|कबीरपंथी]] और नानकपंथी साधुओं से आध्यात्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करना पड़ा था। इन्होंने अपने को पूर्व जन्म में [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] बताया है और अपना जीवन-वृत्तांत भी दिया है, जो तर्क-सम्मत नहीं है। बड़थ्वाल साहब इस वृत्तांत को क्षेपक मानते हैं।<ref>सहायक ग्रंथ- हिन्दी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय : पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल; उत्तरी भारत की संत परम्परा: परशुराम चतुर्वेदी; संतबानी संग्रह, पहिला भाग, वेलवेडियर प्रेस, [[प्रयाग]]; घटरामायन, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग।</ref><ref name="aa"/>
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Latest revision as of 13:46, 30 June 2017

तुलसी साहिब
पूरा नाम तुलसी साहिब
जन्म 1763 ई.
मृत्यु 1843 ई.
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'घटरामायन', 'शब्दावली', 'रत्नासागर', 'पद्यसागर' (अपूर्ण) आदि।
प्रसिद्धि 'साहिब पंथ' के प्रवर्तक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी यह माना जाता है कि तुलसी साहिब 12 वर्ष की अवस्था में ही घर से विरक्त होकर निकल पड़े थे और हाथरस, उत्तर प्रदेश में आकर रहने लगे थे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

तुलसी साहिब 'साहिब पंथ' के प्रवर्तक थे। कहा जाता है कि ये मराठा सरदार रघुनाथ राव के ज्येष्ठ पुत्र और बाजीराव द्वितीय के बड़े भाई थे। काफ़ी कम आयु में ही इन्होंने घर त्याग दिया था। तुलसी साहब ने हृदयस्थ 'कंज गुरु' या 'पद्मगुरु' को ही अपना पथ-निर्देशक माना है। 'घटरामायन', 'शब्दावली', 'रत्नासागर' और 'पद्यसागर' (अपूर्ण) इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

परिचय

'शब्दावली' के (भाग 1), सम्पादक ने तुलसी साहिब का जन्म सन 1763 ई. और मृत्यु सन 1843 ई. में माना है। यह भी माना गया है कि ये रघुनाथराव के ज्येष्ठ पुत्र थे और बाजीराव द्वितीय इनके छोटे भ्राता थे। इनका घर का नाम 'श्याम राव' था। किन्तु इतिहास इस अनुश्रुति का समर्थन नहीं करता। इतिहास ग्रंथों के अनुसार रघुनाथराव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम अमृतराव था।[1]

गृह त्याग

ऐसा प्रसिद्ध है कि 12 वर्ष की अवस्था में ही तुलसी साहिब घर से विरक्त होकर निकल पड़े थे और हाथरस, उत्तर प्रदेश में आकर रहने लगे थे। क्षिति बाबू के अनुसार पहले ये ' आवापंथ' में दीक्षित हुए थे और बाद को संतमत में आये; किंतु ऐसा मानने को कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।

पथ निर्देशक

तुलसी साहब ने हृदयस्थ 'कंज गुरु' या 'पद्मगुरु' को ही अपना पथ-निर्देशक माना है। इसे ही कहीं-कहीं इन्होंने 'मूल संत' भी कहा है। इस प्रकार ये किसी लोक-पुरुष को अपने गुरु रूप में स्वीकार नहीं करते।

कृतियाँ

तुलसी साहब की प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं-

  1. 'घटरामायन'
  2. 'शब्दावली'
  3. 'रत्नासागर'
  4. 'पद्यसागर' (अपूर्ण)

उपरोक्त सभी रचनाएँ 'वेलवेडियर प्रेस', प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) से प्रकाशित हो चुकी हैं। पिण्ड-ब्रह्माण्ड की एकता, सृष्टि-रहस्य, ज्ञान, योग, भक्ति, वैराग्य, कर्मवाद और सत्संग-महिमा इनकी रचनाओं के प्रमुख विषय हैं।[1]

तुलसी साहब ने मनोमय जगत् से सूक्ष्मतर आध्यात्मिक भूमियों की कल्पना भी की है और सूक्ष्मतम भूमि को 'महाशून्य', 'सत्तलोक' या 'अगमपुर' कहा है। इस प्रकार की कल्पनाएँ अन्य परवर्ती संतों में भी पायी जाती हैं। इन्होंने संतमत को साम्प्रदायिक भावना से मुक्त करने की चेष्टा की है, किन्तु ऐसा लगता है कि इनमें आत्म-महत्त्व-स्थापना की प्रवृत्ति अत्यधिक सबल थी, इसीलिए कहीं-कहीं परस्पर-विरोधी, असंगत और दुरूह कल्पनाएँ करने में भी इन्हें संकोच नहीं हुआ। इनमें कौशल, चतुरता और आडम्बर अधिक है, संतों की सहजता कम। काव्य-दृष्टि से इनकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं हैं। आध्यामिक विषयों की आग्रहपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण इनकी वाणी सरस नहीं हो सकी।

वाद-विवाद

'घट रामायन' के अनुसार काशी में रहते हुए इन्हें मुसलमान, जैनी, गुसाईं, पण्डित, संन्यायी, कबीरपंथी और नानकपंथी साधुओं से आध्यात्मिक प्रश्नों पर वाद-विवाद करना पड़ा था। इन्होंने अपने को पूर्व जन्म में गोस्वामी तुलसीदास बताया है और अपना जीवन-वृत्तांत भी दिया है, जो तर्क-सम्मत नहीं है। बड़थ्वाल साहब इस वृत्तांत को क्षेपक मानते हैं।[2][1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 236 |
  2. सहायक ग्रंथ- हिन्दी काव्य में निर्गुण सम्प्रदाय : पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल; उत्तरी भारत की संत परम्परा: परशुराम चतुर्वेदी; संतबानी संग्रह, पहिला भाग, वेलवेडियर प्रेस, प्रयाग; घटरामायन, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग।

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