विद्यावती 'कोकिल': Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - " महान " to " महान् ") |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 32: | Line 32: | ||
|अद्यतन= | |अद्यतन= | ||
}} | }} | ||
'''विद्यावती 'कोकिल'''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vidyavati Kokil'', जन्म- [[26 जुलाई]], [[1914]], [[मुरादाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]) को [[भारत]] की प्रसिद्ध कवयित्रियों में स्थान प्राप्त है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। कोकिल जी मूलत: एक गीतकार थीं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी [[कविता|कविताओं]] की आंतरिक विशेषता है। | '''विद्यावती 'कोकिल'''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Vidyavati Kokil'', जन्म- [[26 जुलाई]], [[1914]], [[मुरादाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]) को [[भारत]] की प्रसिद्ध कवयित्रियों में स्थान प्राप्त है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। कोकिल जी मूलत: एक गीतकार थीं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी [[कविता|कविताओं]] की आंतरिक विशेषता है। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
Line 39: | Line 38: | ||
सन [[1940]] ई. में विद्यावती 'कोकिल' की प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। सन [[1942]] ई. में 'माँ' नाम से इनका द्वितीय काव्य-संग्रह सामने आया। सम्पूर्ण विश्व को प्रजनन की एक महाक्रिया मानकर मातृत्व की विकासोन्मुख अभिव्यक्ति एवं लोरियों के माध्यम द्वारा 'माँ' में जीव के एक सतत विकास की [[कथा]] का द्योतन इस रचना का लक्ष्य है। | सन [[1940]] ई. में विद्यावती 'कोकिल' की प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। सन [[1942]] ई. में 'माँ' नाम से इनका द्वितीय काव्य-संग्रह सामने आया। सम्पूर्ण विश्व को प्रजनन की एक महाक्रिया मानकर मातृत्व की विकासोन्मुख अभिव्यक्ति एवं लोरियों के माध्यम द्वारा 'माँ' में जीव के एक सतत विकास की [[कथा]] का द्योतन इस रचना का लक्ष्य है। | ||
सन [[1952]] में इनकी 'सुहागिन' नाम की तृतीय कृति प्रकाश में आयी। इस संकलन के 'अब घर नहीं रहा, मन्दिर है' और 'तुझे देश-परदेश भला क्या?' आदि गीत जहाँ एक ओर सुहाग का एक विशद एवं | सन [[1952]] में इनकी 'सुहागिन' नाम की तृतीय कृति प्रकाश में आयी। इस संकलन के 'अब घर नहीं रहा, मन्दिर है' और 'तुझे देश-परदेश भला क्या?' आदि गीत जहाँ एक ओर सुहाग का एक विशद एवं महान् रूप उपस्थित करते हैं, वहीं स्वर के आलोक में परम-तत्त्व के साथ तादात्म्य और अंतर्मिलन का मर्मस्पर्शी स्वरूप भी उद्धाटित करते हैं। इस कृति ने विद्यावती 'कोकिल' जी के गीतकार को महिमान्वित किया है। गीतों की विभोरता, तन्मयता एवं सहज अनुभूतिशीलता आज के नारी-मनोविज्ञान, सामाजिक यथार्थ एवं मानवीय आकांक्षा को भजनों की पावनता प्रदान करती दिखाई देती हैं। शब्द, स्वर एवं प्रभाव [[जल]] और लहरी की तरह अभिन्न हो चुके हैं। [[भाषा]] अत्यंत सरल, सहज देशज प्रभावों से मधुर और प्रवाहपूर्ण होती है। इन गीतों में धरती के यथार्थ और आकाश के आदर्श का मणि-कांचन संयोग उपस्थित हुआ है, इसलिए विद्वानों ने 'सुहागिन' में जीवन के तत्त्वों की गहन परीक्षा, सत्य की खोज, साम्य की अंवेषणा एवं वेदना की मधुरता के साथ विकास की स्वस्थ आकांक्षा और जीवन जागरूकता का भी दर्शन किया है। | ||
====अन्य रचनाएँ==== | ====अन्य रचनाएँ==== | ||
'सुहाग गीत' (लोकगीत संग्रह) सन [[1953]] में प्रकाशित हुआ। 'पुनर्मिलन' सन [[1956]] में सामने आया। इन गीतों में रचयित्रि ने उस प्रियतम के साक्षात मिलन का स्पर्श प्राप्त किया है, जिसकी छाया के पीछे वह जीवन भर भागी है। [[नवम्बर]], सन [[1957]] में प्रकाशित 'फ्रेम बिना तस्वीर' नामक [[नाटक]] एक सत्यान्वेषी इंगलिश कुमारी का नाट्याख्यान है, जिसका घटनास्थल [[इंग्लैंड]] है। इसका नायक मंच पर सामने न आने वाला एक भारतीय मनीषी है। नाटक का उद्देश्य पश्चिम पर पूर्व के प्रभाव का संकेत एवं पूर्व-पश्चिम-सम्मिलन के परिणामस्वरूप सम्भाव्य विचार, श्रद्धा, ज्ञान तथा अध्यात्म्य का सामंजस्य है। 'सप्तक' एक विस्तृत भूमिका के साथ अरविन्द की सात कविताओं का मूल युक्त [[हिन्दी]] अनुवाद है, जो सन [[1959]] में सामने आया। 'अमर ज्योति' नामक [[महाकाव्य]] अभी अप्रकाशित है। इस [[ग्रंथ]] में 'श्री' और 'ओम्' इन दो चरित्रों द्वारा ज्योति-स्वरूप-ज्ञान एवं उसे छूकर ज्योति-रूप-परिणत जीव का काव्यात्मक निरूपण हुआ है। 'कोकिल' जी ने [[महर्षि अरविन्द]] के 'सावित्री' महाकाव्य का हिन्दी-काव्य-रूपांतर भी किया। | 'सुहाग गीत' (लोकगीत संग्रह) सन [[1953]] में प्रकाशित हुआ। 'पुनर्मिलन' सन [[1956]] में सामने आया। इन गीतों में रचयित्रि ने उस प्रियतम के साक्षात मिलन का स्पर्श प्राप्त किया है, जिसकी छाया के पीछे वह जीवन भर भागी है। [[नवम्बर]], सन [[1957]] में प्रकाशित 'फ्रेम बिना तस्वीर' नामक [[नाटक]] एक सत्यान्वेषी इंगलिश कुमारी का नाट्याख्यान है, जिसका घटनास्थल [[इंग्लैंड]] है। इसका नायक मंच पर सामने न आने वाला एक भारतीय मनीषी है। नाटक का उद्देश्य पश्चिम पर पूर्व के प्रभाव का संकेत एवं पूर्व-पश्चिम-सम्मिलन के परिणामस्वरूप सम्भाव्य विचार, श्रद्धा, ज्ञान तथा अध्यात्म्य का सामंजस्य है। 'सप्तक' एक विस्तृत भूमिका के साथ अरविन्द की सात [[कविता|कविताओं]] का मूल युक्त [[हिन्दी]] अनुवाद है, जो सन [[1959]] में सामने आया। 'अमर ज्योति' नामक [[महाकाव्य]] अभी अप्रकाशित है। इस [[ग्रंथ]] में 'श्री' और 'ओम्' इन दो चरित्रों द्वारा ज्योति-स्वरूप-ज्ञान एवं उसे छूकर ज्योति-रूप-परिणत जीव का काव्यात्मक निरूपण हुआ है। 'कोकिल' जी ने [[महर्षि अरविन्द]] के 'सावित्री' महाकाव्य का हिन्दी-काव्य-रूपांतर भी किया। | ||
==गीतकार== | ==गीतकार== | ||
विद्यावती 'कोकिल' मूलत: एक गीतकार हैं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी [[कविता|कविताओं]] की आंतरिक विशेषता है। उनके स्वर में अंतर के बोल की झंकार एवं वेदना की एक कोमल लहर होती है, जो पाठक श्रोता के मन को सिक्त कर अंतर्लोक के द्वार की झाँकी कराने लगती है। अरविन्द के लोक-परलोक एवं भूत-अध्यात्म के समन्वयवादी अद्वैत से वे विशेष प्रभावित हैं। इनके काव्य में अरविन्द दर्शन को नारी-हृदय की अनुभूति का कोमल परिधान मिला है। | विद्यावती 'कोकिल' मूलत: एक गीतकार हैं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी [[कविता|कविताओं]] की आंतरिक विशेषता है। उनके स्वर में अंतर के बोल की झंकार एवं वेदना की एक कोमल लहर होती है, जो पाठक श्रोता के मन को सिक्त कर अंतर्लोक के द्वार की झाँकी कराने लगती है। अरविन्द के लोक-परलोक एवं भूत-अध्यात्म के समन्वयवादी अद्वैत से वे विशेष प्रभावित हैं। इनके काव्य में अरविन्द दर्शन को नारी-हृदय की अनुभूति का कोमल परिधान मिला है। |
Latest revision as of 11:26, 1 August 2017
विद्यावती 'कोकिल'
| |
पूरा नाम | विद्यावती 'कोकिल' |
जन्म | 26 जुलाई, 1914 |
जन्म भूमि | हसनपुर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | काव्य लेखन |
मुख्य रचनाएँ | 'सुहागिन', 'माँ', 'सुहाग गीत', 'पुनर्मिलन', 'फ्रेम बिना तस्वीर', 'अमर ज्योति' तथा 'सप्तक' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
प्रसिद्धि | कवियित्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विद्यावती 'कोकिल' की 'सप्तक' नामक रचना एक विस्तृत भूमिका के साथ अरविन्द की सात कविताओं का मूल युक्त हिन्दी अनुवाद है, जो 1959 में सामने आया। इनका 'अमर ज्योति' नामक महाकाव्य अभी अप्रकाशित है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
विद्यावती 'कोकिल' (अंग्रेज़ी: Vidyavati Kokil, जन्म- 26 जुलाई, 1914, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश) को भारत की प्रसिद्ध कवयित्रियों में स्थान प्राप्त है। उनकी प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। कोकिल जी मूलत: एक गीतकार थीं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी कविताओं की आंतरिक विशेषता है।
जीवन परिचय
विद्यावती 'कोकिल' का जन्म 26 जुलाई, सन 1914 ई. में हसनपुर, मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनके जीवन का अधिकांश समय प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) में बीता। इनका परिवार पुराना आर्य समाजी तथा देश-भक्त रहा है। स्कूल-कॉलेज काल से ही इनकी काव्य-साधना प्रारम्भ हो गई थी। अखिल भारत के काव्य-मंचों एवं आकाशवाणी केन्द्रों से फैलती हुई इनकी सहज-मधुर काव्य-स्वरलहरी इनके 'कोकिल' उपनाम को सार्थक करती रही है। 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम' में इन्होंने कारावास यात्रा भी की। अनेक सेवा-संस्थाएँ तथा जनायोजन इनके सहयोग से सम्पन्न होते रहे। इन्होंने पाण्डीचेरी के 'अरविन्द आश्रम' में भी समय व्यतीत किया और अरविन्द दर्शन को कवि-सहज अनुभूतियों प्रदान कीं।
काव्य रचना
सन 1940 ई. में विद्यावती 'कोकिल' की प्रारम्भिक रचनाओं का प्रथम काव्य-संकलन प्रणय, प्रगति एवं जीवनानुभूति के हृदयग्राही गीतों के संग्रह-रूप में प्रकाशित हुआ था। सन 1942 ई. में 'माँ' नाम से इनका द्वितीय काव्य-संग्रह सामने आया। सम्पूर्ण विश्व को प्रजनन की एक महाक्रिया मानकर मातृत्व की विकासोन्मुख अभिव्यक्ति एवं लोरियों के माध्यम द्वारा 'माँ' में जीव के एक सतत विकास की कथा का द्योतन इस रचना का लक्ष्य है।
सन 1952 में इनकी 'सुहागिन' नाम की तृतीय कृति प्रकाश में आयी। इस संकलन के 'अब घर नहीं रहा, मन्दिर है' और 'तुझे देश-परदेश भला क्या?' आदि गीत जहाँ एक ओर सुहाग का एक विशद एवं महान् रूप उपस्थित करते हैं, वहीं स्वर के आलोक में परम-तत्त्व के साथ तादात्म्य और अंतर्मिलन का मर्मस्पर्शी स्वरूप भी उद्धाटित करते हैं। इस कृति ने विद्यावती 'कोकिल' जी के गीतकार को महिमान्वित किया है। गीतों की विभोरता, तन्मयता एवं सहज अनुभूतिशीलता आज के नारी-मनोविज्ञान, सामाजिक यथार्थ एवं मानवीय आकांक्षा को भजनों की पावनता प्रदान करती दिखाई देती हैं। शब्द, स्वर एवं प्रभाव जल और लहरी की तरह अभिन्न हो चुके हैं। भाषा अत्यंत सरल, सहज देशज प्रभावों से मधुर और प्रवाहपूर्ण होती है। इन गीतों में धरती के यथार्थ और आकाश के आदर्श का मणि-कांचन संयोग उपस्थित हुआ है, इसलिए विद्वानों ने 'सुहागिन' में जीवन के तत्त्वों की गहन परीक्षा, सत्य की खोज, साम्य की अंवेषणा एवं वेदना की मधुरता के साथ विकास की स्वस्थ आकांक्षा और जीवन जागरूकता का भी दर्शन किया है।
अन्य रचनाएँ
'सुहाग गीत' (लोकगीत संग्रह) सन 1953 में प्रकाशित हुआ। 'पुनर्मिलन' सन 1956 में सामने आया। इन गीतों में रचयित्रि ने उस प्रियतम के साक्षात मिलन का स्पर्श प्राप्त किया है, जिसकी छाया के पीछे वह जीवन भर भागी है। नवम्बर, सन 1957 में प्रकाशित 'फ्रेम बिना तस्वीर' नामक नाटक एक सत्यान्वेषी इंगलिश कुमारी का नाट्याख्यान है, जिसका घटनास्थल इंग्लैंड है। इसका नायक मंच पर सामने न आने वाला एक भारतीय मनीषी है। नाटक का उद्देश्य पश्चिम पर पूर्व के प्रभाव का संकेत एवं पूर्व-पश्चिम-सम्मिलन के परिणामस्वरूप सम्भाव्य विचार, श्रद्धा, ज्ञान तथा अध्यात्म्य का सामंजस्य है। 'सप्तक' एक विस्तृत भूमिका के साथ अरविन्द की सात कविताओं का मूल युक्त हिन्दी अनुवाद है, जो सन 1959 में सामने आया। 'अमर ज्योति' नामक महाकाव्य अभी अप्रकाशित है। इस ग्रंथ में 'श्री' और 'ओम्' इन दो चरित्रों द्वारा ज्योति-स्वरूप-ज्ञान एवं उसे छूकर ज्योति-रूप-परिणत जीव का काव्यात्मक निरूपण हुआ है। 'कोकिल' जी ने महर्षि अरविन्द के 'सावित्री' महाकाव्य का हिन्दी-काव्य-रूपांतर भी किया।
गीतकार
विद्यावती 'कोकिल' मूलत: एक गीतकार हैं। गीति-तत्त्व की सहज तरलता उनकी कविताओं की आंतरिक विशेषता है। उनके स्वर में अंतर के बोल की झंकार एवं वेदना की एक कोमल लहर होती है, जो पाठक श्रोता के मन को सिक्त कर अंतर्लोक के द्वार की झाँकी कराने लगती है। अरविन्द के लोक-परलोक एवं भूत-अध्यात्म के समन्वयवादी अद्वैत से वे विशेष प्रभावित हैं। इनके काव्य में अरविन्द दर्शन को नारी-हृदय की अनुभूति का कोमल परिधान मिला है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख