दुष्यंत कुमार: Difference between revisions

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<blockquote>दुष्यन्त अपने जीवनकाल में ही एक किंवदंती बन गए थे। उनकी लोकप्रियता का अनुमान केवल इतनी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनावों में आमने -सामने दो विरोधी पार्टियां एक ही तख्ती लगाये चल रही थी; ''सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए'' हम फख्र से कह सकते हैं कि [[हिंदी]] ने [[मीर]], [[ग़ालिब]] भले न पैदा किये हों मगर दुष्यन्त कुमार को पैदा किया है और यही हमारी हिंदी की जातीय अस्मिता की एक बहुत बड़ी विजय है।</blockquote>
<blockquote>दुष्यन्त अपने जीवनकाल में ही एक किंवदंती बन गए थे। उनकी लोकप्रियता का अनुमान केवल इतनी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनावों में आमने -सामने दो विरोधी पार्टियां एक ही तख्ती लगाये चल रही थी; ''सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए'' हम फख्र से कह सकते हैं कि [[हिंदी]] ने [[मीर]], [[ग़ालिब]] भले न पैदा किये हों मगर दुष्यन्त कुमार को पैदा किया है और यही हमारी हिंदी की जातीय अस्मिता की एक बहुत बड़ी विजय है।</blockquote>
;लोकप्रिय कवि यश मालवीय 
;लोकप्रिय कवि यश मालवीय 
<blockquote>दुष्यन्त की कविता ज़िन्दगी का बयान है। ज़िन्दगी के सुख- दुःख में उनकी कविता अनायास याद आ जाती है। विडम्बनायें उनकी कविता में इस तरह व्यक्त होती हैं कि आम आदमी को वे अपनी आवाज़ लगने लगती हैं। समय को समझने और उससे लड़ने की ताकत देती ये कवितायें हमारे समाज में हर संघर्ष में सर्वाधिक उद्धरणीय कविताएँ हैं। ''सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए'' यह मात्र एक शेर नहीं ज़िन्दगी का एक दर्शन है फलसफा है। चूँकि दुष्यन्त की कविताएँ जनता के जुबान पर चढ़ी हुई हैं इसलिए मीडिया के लोग भी विशेष मौकों पर अपनी बात जन तक पहुँचाने के लिए, उनके दिलों में उतार देने के लिए दुष्यन्त की शायरी का इस्तेमाल करते हैं। दुष्यन्त की ग़ज़लें कठिन समय को समझने के लिए शास्त्र और उनसे जूझने के लिए शस्त्र की तरह हैं।<ref>{{cite web |url=http://sunaharikalamse.blogspot.in/2011/08/blog-post_28.html |title=‘लोकप्रिय कवि दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लें |accessmonthday=26 अगस्त |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सुनहरी कलम से |language=हिंदी }}</ref>
<blockquote>दुष्यन्त की कविता ज़िन्दगी का बयान है। ज़िन्दगी के सुख- दुःख में उनकी कविता अनायास याद आ जाती है। विडम्बनायें उनकी कविता में इस तरह व्यक्त होती हैं कि आम आदमी को वे अपनी आवाज़ लगने लगती हैं। समय को समझने और उससे लड़ने की ताकत देती ये कवितायें हमारे समाज में हर संघर्ष में सर्वाधिक उद्धरणीय कविताएँ हैं। ''सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए'' यह मात्र एक शेर नहीं ज़िन्दगी का एक दर्शन है फलसफा है। चूँकि दुष्यन्त की कविताएँ जनता के जुबान पर चढ़ी हुई हैं इसलिए मीडिया के लोग भी विशेष मौकों पर अपनी बात जन तक पहुँचाने के लिए, उनके दिलों में उतार देने के लिए दुष्यन्त की शायरी का इस्तेमाल करते हैं। दुष्यन्त की ग़ज़लें कठिन समय को समझने के लिए शास्त्र और उनसे जूझने के लिए शस्त्र की तरह हैं।<ref>{{cite web |url=http://sunaharikalamse.blogspot.in/2011/08/blog-post_28.html |title=‘लोकप्रिय कवि दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लें |accessmonthday=26 अगस्त |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=सुनहरी कलम से |language=हिंदी }}</ref></blockquote>
==प्रकाशित रचनाएं==
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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
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इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।  
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।  
 
        आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
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शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
 
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
 
        सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,  
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,  
        मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।  
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।  
 
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,  
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,  
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। -दुष्यंत कुमार
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। -दुष्यंत कुमार


2.
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मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ ,
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ ,
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।
एक जंगल है तेरी आँखों में 
एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।

Revision as of 12:25, 26 August 2013

दुष्यंत कुमार
पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी
जन्म 1 सितम्बर, 1933
जन्म भूमि बिजनौर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 30 दिसम्बर, 1975
कर्म-क्षेत्र कवि, ग़ज़लकार
मुख्य रचनाएँ सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, एक कण्ठ विषपायी आदि
विषय सामाजिक
भाषा हिन्दी, उर्दू
विद्यालय इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (हिन्दी)
नागरिकता भारतीय
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
दुष्यंत कुमार की रचनाएँ

दुष्यंत कुमार (अंग्रेज़ी: Dushyant Kumar, जन्म:1 सितम्बर, 1933 - मृत्यु: 30 दिसम्बर, 1975) एक हिंदी कवि और ग़ज़लकार थे। समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है। दुष्यंत एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं। दुष्यंत का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है। इस कवि ने कविता, गीत, ग़ज़ल, काव्य, नाटक, कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया।

जीवन परिचय

दुष्यंत कुमार का जन्म बिजनौर जनपद (उत्तर प्रदेश) के ग्राम राजपुर नवादा में 1 सितम्बर, 1933 को हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे। इलाहाबाद में कमलेश्वर, मार्कण्डेय और दुष्यंत की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी। वास्तविक जीवन में दुष्यंत बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे। कथाकार कमलेश्वर बाद में दुष्यंत के समधी भी हुए। दुष्यंत का पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था। प्रारम्भ में दुष्यंत कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे। left|दुष्यंत कुमार अपने परिवार के साथ|thumb

कृतियाँ

इन्होंने 'एक कंठ विषपायी', 'सूर्य का स्वागत', 'आवाज़ों के घेरे', 'जलते हुए वन का बसंत', 'छोटे-छोटे सवाल' और दूसरी गद्य तथा कविता की किताबों का सृजन किया। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ 42 वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।

अमिताभ बच्चन के प्रशंसक

दुष्यंत कुमार ने बॉलीवुड महानायक अमिताभ बच्चन को उनकी फिल्म ‘दीवार’ के बाद पत्र लिखकर उनके अभिनय की तारीफ की और कहा कि वह उनके ‘फैन’ हो गए हैं। दुष्यंत कुमार का वर्ष 1975 में निधन हो गया था और उसी साल उन्होंने यह पत्र अमिताभ को लिखा था। यह दुर्लभ पत्र हाल ही में उनकी पत्नी राजेश्वरी त्यागी ने उन्हीं के नाम से स्थापित संग्रहालय को हाल ही में सौंपा है। दुष्यंत कुमार और अमिताभ के पिता डॉ. हरिवंशराय बच्चन में गहरा प्रेम था। ‘दीवार’ फिल्म में उन्होंने अमिताभ की तुलना तब के सुपर स्टार्स शशि कपूर और शत्रुघ्न सिन्हा से भी की थी। हिन्दी के इस महान साहित्यकार की धरोहरें ‘दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय’ में सहेजी जा रही हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि साहित्य का एक युग यहां पर जीवित है।
दुष्यंत कुमार ने अमिताभ को लिखे इस पत्र में कहा, ‘किसी फिल्म आर्टिस्ट को पहली बार खत लिख रहा हूं। वह भी ‘दीवार’ जैसी फिल्म देखकर, जो मानवीय करुणा और मनुष्य की सहज भावुकता का अंधाधुंध शोषण करती है।’ कवि और शायर ने अमिताभ को याद दिलाया, ‘तुम्हें याद नहीं होगा। इस नाम (दुष्यंत कुमार) का एक नौजवान इलाहाबाद में अक्सर बच्चन साहब के पास आया करता था, तब तुम बहुत छोटे थे। उसके बाद दिल्ली के विलिंगटन क्रेसेंट वाले मकान में आना-जाना लगा रहा। लेकिन तुम लोगों से संपर्क नहीं रहा। दरअसल, कभी जरूरत भी महसूस नहीं हुई। मैं तो बच्चनजी की रचनाओं को ही उनकी संतान माने हुए था।’
दुष्यंत कुमार ने लिखा, ‘मुझे क्या पता था कि उनकी एक संतान का कद इतना बड़ा हो जाएगा कि मैं उसे खत लिखूंगा और उसका प्रशंसक हो जाउंगा।’[1]

वर्तमान कवियों की नज़र में दुष्यंत कुमार

निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं-

"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है। यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है।"

दिनेश ग्रोवर, प्रकाशक लोकभारती इलाहबाद 

दुष्यन्त अपने जीवनकाल में ही एक किंवदंती बन गए थे। उनकी लोकप्रियता का अनुमान केवल इतनी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनावों में आमने -सामने दो विरोधी पार्टियां एक ही तख्ती लगाये चल रही थी; सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए हम फख्र से कह सकते हैं कि हिंदी ने मीर, ग़ालिब भले न पैदा किये हों मगर दुष्यन्त कुमार को पैदा किया है और यही हमारी हिंदी की जातीय अस्मिता की एक बहुत बड़ी विजय है।

लोकप्रिय कवि यश मालवीय 

दुष्यन्त की कविता ज़िन्दगी का बयान है। ज़िन्दगी के सुख- दुःख में उनकी कविता अनायास याद आ जाती है। विडम्बनायें उनकी कविता में इस तरह व्यक्त होती हैं कि आम आदमी को वे अपनी आवाज़ लगने लगती हैं। समय को समझने और उससे लड़ने की ताकत देती ये कवितायें हमारे समाज में हर संघर्ष में सर्वाधिक उद्धरणीय कविताएँ हैं। सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं / मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए यह मात्र एक शेर नहीं ज़िन्दगी का एक दर्शन है फलसफा है। चूँकि दुष्यन्त की कविताएँ जनता के जुबान पर चढ़ी हुई हैं इसलिए मीडिया के लोग भी विशेष मौकों पर अपनी बात जन तक पहुँचाने के लिए, उनके दिलों में उतार देने के लिए दुष्यन्त की शायरी का इस्तेमाल करते हैं। दुष्यन्त की ग़ज़लें कठिन समय को समझने के लिए शास्त्र और उनसे जूझने के लिए शस्त्र की तरह हैं।[2]

प्रकाशित रचनाएं

दुष्यंत कुमार की कृतियाँ
काव्यसंग्रह
उपन्यास
  • छोटे-छोटे सवाल
  • आँगन में एक वृक्ष
  • दुहरी जिंदगी।
एकांकी
  • मन के कोण
नाटक
  • और मसीहा मर गया
गज़ल-संग्रह
  • साये में धूप
काव्य नाटक
  • एक कण्ठ विषपायी

कुछ आलोचनात्मक पुस्तकें तथा कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद।

निधन

[[चित्र:Dushyant-Kumar-postal-stamp.jpg|thumb|दुष्यंत कुमार के सम्मान में जारी डाक टिकट]] दुष्यंत कुमार का निधन 30 दिसम्बर सन 1975 में सिर्फ़ 42 वर्ष की अवस्था में हो गया। दुष्यंत ने केवल देश के आम आदमी से ही हाथ नहीं मिलाया उस आदमी की भाषा को भी अपनाया और उसी के द्वारा अपने दौर का दुख-दर्द गाया।

दुष्यंत कुमार की कुछ पंक्तियाँ

1.
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
        आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
        शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
        सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
        मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। -दुष्यंत कुमार

2.
मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ ,
वो गज़ल आपको सुनाता हूँ।
एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
तू किसी रेल सी गुजरती है,
मैं किसी पुल -सा थरथराता हूँ।
हर तरफ़ एतराज़ होता है,
मैं अगर रोशनी में आता हूँ।
एक बाजू उखड़ गया जब से,
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ।
मैं तुझे भूलने की कोशिश में,
आज कितने करीब पाता हूँ।
कौन ये फासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ। -दुष्यंत कुमार


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘दीवार’ देखकर अमिताभ के फैन हो गए थे दुष्यंत कुमार (हिंदी) आज तक। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2013।
  2. ‘लोकप्रिय कवि दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लें (हिंदी) सुनहरी कलम से। अभिगमन तिथि: 26 अगस्त, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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