श्यामलाल गुप्त 'पार्षद': Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
Line 41: Line 41:
'''श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’''' ([[अंग्रेज़ी]]: Shyamlal Gupta 'Parshad', जन्म: [[16 सितम्बर]] [[1893]]; मृत्य: [[10 अगस्त]], [[1977]]) [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद', भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत '[[विजयी विश्व तिरंगा प्यारा]]' के रचयिता थे।  
'''श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’''' ([[अंग्रेज़ी]]: Shyamlal Gupta 'Parshad', जन्म: [[16 सितम्बर]] [[1893]]; मृत्य: [[10 अगस्त]], [[1977]]) [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद', भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत '[[विजयी विश्व तिरंगा प्यारा]]' के रचयिता थे।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
श्यामलाल गुप्त का जन्म [[16 सितम्बर]], [[1893]] को [[कानपुर नगर ज़िला|कानपुर ज़िले]] के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर पर हुआ था। ये अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इन्होंने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। जिसके पश्चात ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल का बॉन्ड (अनुबंध) भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष [[1921]] में [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। आपने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। आपने वर्ष [[1924]] में झंडागान की रचना की जिसे [[1925]] में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया। यह झंडागीत इस प्रकार है-
श्यामलाल गुप्त का जन्म [[16 सितम्बर]], [[1893]] को [[कानपुर नगर ज़िला|कानपुर ज़िले]] के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर पर हुआ था। ये अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इन्होंने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। जिसके पश्चात् ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल का बॉन्ड (अनुबंध) भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष [[1921]] में [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। आपने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। आपने वर्ष [[1924]] में झंडागान की रचना की जिसे [[1925]] में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया। यह झंडागीत इस प्रकार है-
<poem>
<poem>
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा  
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा  

Revision as of 07:32, 7 November 2017

श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'
पूरा नाम श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद'
जन्म 16 सितम्बर, 1893
जन्म भूमि नरवल, कानपुर
मृत्यु 10 अगस्त, 1977
अभिभावक विश्वेश्वर गुप्त (पिता)
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक
मुख्य रचनाएँ 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा', 'स्वतन्त्र भारत', 'पंजाब केसरी'।
विषय देशभक्ति
भाषा हिंदी
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री
विशेष योगदान झंडागीत (विजयी विश्व तिरंगा प्यारा) की रचना
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पार्षद जी 1916 से 1947 तक पूर्णत: समर्पित कर्मठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे।

श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ (अंग्रेज़ी: Shyamlal Gupta 'Parshad', जन्म: 16 सितम्बर 1893; मृत्य: 10 अगस्त, 1977) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक सेनानी, पत्रकार, समाजसेवी एवं अध्यापक थे। श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद', भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान उत्प्रेरक झण्डा गीत 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा' के रचयिता थे।

जीवन परिचय

श्यामलाल गुप्त का जन्म 16 सितम्बर, 1893 को कानपुर ज़िले के नरवल कस्बे में साधारण व्यवसायी विश्वेश्वर गुप्त के घर पर हुआ था। ये अपने पांच भाइयों में सबसे छोटे थे। इन्होंने मिडिल की परीक्षा के बाद विशारद की उपाधि हासिल की। जिसके पश्चात् ज़िला परिषद तथा नगरपालिका में अध्यापक की नौकरी प्रारंभ की परन्तु दोनों जगहों पर तीन साल का बॉन्ड (अनुबंध) भरने की नौबत आने पर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1921 में गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में सहभागिता की। आपने एक व्यंग्य रचना लिखी जिसके लिये तत्कालीन अंग्रेज़ी सरकार ने आपके उपर 500 रुपये का जुर्माना लगाया। आपने वर्ष 1924 में झंडागान की रचना की जिसे 1925 में कानपुर में कांग्रेस के सम्मेलन में पहली बार झंडारोहण के समय इस गीत को सार्वजनिक रूप से सामूहिक रूप से गाया गया। यह झंडागीत इस प्रकार है-

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा उंचा रहे हमारा
सदा शक्ति बरसाने वाला
वीरों को हर्षाने वाला
शांति सुधा सरसाने वाला
मातृभूमि का तन मन सारा
झंडा उंचा रहे हमारा ...पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें

कार्यक्षेत्र

वे बचपन से ही प्रतिभासंपन्न थे। प्रकृति ने उन्हें कविता करने की क्षमता सहज रूप में प्रदान की थी। जब वे पाँचवी कक्षा में थे तब उन्होंने यह कविता लिखी:-

परोपकारी पुरुष मुहिम में पावन पद पाते देखे,
उनके सुंदर नाम स्वर्ण से सदा लिखे जाते देखे।

प्रथम श्रेणी में मिडिल पास होने के बाद उन्होंने पिता के कारोबार में सहयोग देना आरंभ कर दिया। साथ ही किसी प्रकार पढ़ाई भी जारी रखी और हिंदी साहित्य सम्मेलन की विशारद परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली। 15 वर्ष की अवस्था से ही वे हरिगीतिका, सवैया, घनाक्षरी आदि छंदों में सुंदर रचना करने लग गए थे। पार्षदजी की साहित्यिक प्रतिभा और देशभक्ति की भावना ने उन्हें पत्रकारिता की ओर उन्मुख कर दिया। उन्होंने 'सचिव' नामक मासिक पत्र का प्रकाशन संपादन आरंभ कर दिया। सचिव के प्रत्येक अंक के मुखपृष्ठ पर पार्षदजी की निम्न पंक्तियाँ प्रमुखता से प्रकाशित होती थीं -

राम राज्य की शक्ति शांति सुखमय स्वतंत्रता लाने को
लिया 'सचिव' ने जन्म देश की परतंत्रता मिटाने को[1]

झंडागीत की रचना

सन 1923 में फ़तेहपुर ज़िला काँग्रेस का अधिवेशन हुआ। सभापति के रूप में पधारे मोतीलाल नेहरू को अधिवेशन के दूसरे दिन ही आवश्यक कार्य से बंबई जाना पड़ा। उनके स्थान पर सभापतित्व संभालने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी को अंग्रेज़ सरकार के विरोध में भाषण देने के कारण जेल जाना पड़ा। काँग्रेस ने उस समय तक झंडा तो 'तिरंगा झंडा' तय कर लिया था पर जन-मन को प्रेरित कर सकने वाला कोई झंडागीत नहीं था। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी पार्षद जी की देशभक्ति और काव्य-प्रतिभा दोनों से ही प्रभावित थे, उन्होंने पार्षदजी से झंडागीत की रचना करने को कहा। काव्य-रचना ऐसी चीज़ तो है नहीं कि जब चाहा हो गई। पार्षदजी परेशान, समय सीमा में कैसे लिखा जाए? काग़़ज-कलम लेकर लिखने बैठ गए। रात को नौ बजे कुछ शब्द काग़ज़ पर उतरने शुरू हो गए। कुछ समय बाद एक गीत तैयार हो गया जो इस प्रकार था - राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति राष्ट्रीय पताका नमो नमो। रचना बन गई थी, अच्छी भी थी, पर पार्षदजी को लगा बात बनी नहीं। लगा, गीत सामान्य जन-समुदाय के लिए उपयुक्त नहीं था। थककर वह लेट गए। पर व्यग्रता के कारण नींद नहीं आई। जागते-सोते, करवटें बदलते-बदलते रात दो बजे लगा- जैसे रचना उमड़ रही है। वह उठकर लिखने बैठ गए। कलम चल पड़ी। स्वयं पार्षदजी के अनुसार, "गीत लिखते समय मुझे यही महसूस होता था कि भारत माता स्वयं बैठकर मुझे एक-एक शब्द लिखा रही है।"[1] इस तरह उनकी कलम से निकला ‘‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।’’ इस गीत को लेकर पार्षद जी अगले दिन सुबह ही विद्यार्थी जी के पास पहुंच गए। गणेश शंकर विद्यार्थी को यह गीत बहुत पसंद आया और उन्होंने पार्षद जी की जमकर तारीफ की। इसके बाद यह गीत महात्मा गांधी के पास भेजा गया जिन्होंने इसे छोटा करने की सलाह दी। सन 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के रूप में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसे झंडा गीत के रूप में स्वीकार किया और उनके साथ मौजूद पांच हजार से अधिक लोगों ने इसे पूरे जज्बे के साथ गाया।[2]पार्षद जी के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए नेहरू जी ने कहा था- 'भले ही लोग पार्षदजी को नहीं जानते होंगे परंतु समूचा देश राष्ट्रीय ध्वज पर लिखे उनके गीत से परिचित है।'

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी और साहित्यकार प्रताप नारायण मिश्र के सान्निध्य में आने पर श्यामलाल जी ने अध्यापन, पुस्तकालयाध्यक्ष और पत्रकारिता के विविध जनसेवा कार्य किए। पार्षद जी 1916 से 1947 तक पूर्णत: समर्पित कर्मठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे। गणेशजी की प्रेरणा से आपने फ़तेहपुर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और बाद में अपनी लगन और निष्ठा के आधार पर सन 1920 में वे फ़तेहपुर ज़िला काँग्रेस के अध्यक्ष बने। इस दौरान 'नमक आंदोलन' तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रमुख संचालन किया तथा ज़िला परिषद कानपुर में भी वे 13 वर्षों तक रहे। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण पार्षदजी को रानी यशोधर के महल से 21 अगस्त 1921 को गिरफ़्तार किया गया। ज़िला कलेक्टर द्वारा उन्हें दुर्दांत क्रांतिकारी घोषित करके केंद्रीय कारागार आगरा भेज दिया गया। 1930 में नमक आंदोलन के सिलसिले में पुन: गिरफ़्तार हुए और कानपुर जेल में रखे गए। पार्षदजी सतत स्वतंत्रता सेनानी रहे और 1932 में तथा 1942 में फरार रहे। 1944 में आप पुन: गिरफ़्तार हुए और जेल भेज दिए गए। इस तरह आठ बार में कुल छ: वर्षों तक राजनैतिक बंदी रहे। स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के दौरान वे चोटी के राष्ट्रीय नेताओं- मोतीलाल नेहरू, महादेव देसाई, रामनरेश त्रिपाठी और अन्य नेताओं के संपर्क में आए।[1]

समाज सेवा

राजनीतिक कार्यों के अलावा पार्षदजी सामाजिक कार्यों में भी अग्रणी रहे। उन्होंने दोसर वैश्य इंटर कालेज एवं अनाथालय, बालिका विद्यालय, गणेश सेवाश्रम, गणेश विद्यापीठ, दोसर वैश्य महासभा, वैश्य पत्र समिति आदि की स्थापना एवं संचालन किया। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा व दहेज विरोध में आपने सक्रिय योगदान किया। आपने विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता दिलाने में सक्रिय योगदान किया। पार्षदजी ने वैश्य पत्रिका का जीवन भर संपादन किया। रामचरितमानस उनका प्रिय ग्रंथ था। वे श्रेष्ठ 'मानस मर्मज्ञ' तथा प्रख्यात रामायणी भी थे। रामायण पर उनके प्रवचन की प्रसिद्ध दूर-दूर तक थी। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को उन्होंने संपूर्ण रामकथा राष्ट्रपति भवन में सुनाई थी। नरवल, कानपुर और फतेहपुर में उन्होंने रामलीला आयोजित की।[1]भारत भूमि से उनका प्रेम आज़ादी के बाद उत्पन्न हुयी परिस्थितियों में उन्होंने एक नये गीत की रचना 1972 में की जिसे 12 मार्च को लखनऊ के कात्यायिनी कार्यक्रम में सुनाया।

 देख गतिविधि देश की मैं
मौन मन से रो रहा हूं
आज चिंतित हो रहा हूं
बोलना जिनको न आता था,
वही अब बोलते है
रस नहीं वह देश के,
उत्थान में विष घोलते हैं

सम्मान और पुरस्कार

1973 में उन्हें 'पद्म श्री' से अलंकृत किया गया। उनकी मृत्यु के बाद कानपुर और नरवल में उनके अनेकों स्मारक बने। नरवल में उनके द्वारा स्थापित बालिका विद्यालय का नाम 'पद्मश्री श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' राजकीय बालिका इंटर कालेज किया गया। फूलबाग, कानपुर में 'पद्मश्री' श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' पुस्तकालय की स्थापना हुई। 10 अगस्त, 1994 को फूलबाग में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गई। इसका अनावरण उनके 99वें जन्मदिवस पर किया गया। झंडागीत के रचयिता, ऐसे राष्ट्रकवि को पाकर देश की जनता धन्य है।

निधन

10 अगस्त 1977 की रात को इस समाजसेवी, राष्ट्रकवि का निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे। स्वतंत्र भारत ने उन्हें सम्मान दिया और 1952 में लाल क़िले से उन्होंने अपना प्रसिद्ध 'झंडा गीत' गाया। 1972 में लाल क़िले में उनका अभिनंदन किया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 पार्षद और झंडागीत- 'झंडा ऊँचा रहे हमारा' (हिंदी) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 17 सितम्बर, 2013।
  2. इस तरह रचा गया ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा’ (हिंदी) वेबवार्ता। अभिगमन तिथि: 17 सितम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

  1. REDIRECTसाँचा:स्वतन्त्रता सेनानी