नरोत्तम दास ठाकुर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''नरोत्तमदास ठाकुर''' राजशाही जिला के अंतर्गत परगना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
'''नरोत्तमदास ठाकुर''' राजशाही जिला के अंतर्गत परगना गोपालपुरा के राजा कृष्णनंददत्त के पुत्र थे। माता का नाम नारायणीदेवी था। ये कायस्थ जाति के थे तथा [[पद्मा नदी]] के तटस्थ खेतुरी इनकी राजधानी थी। इनका जन्म संवत् 1585 की [[माघ पूर्णिमा]] को हुआ था।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0|title= नरोत्तमदास ठाकुर|accessmonthday= 21 मई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bharatkhoj.org|language=हिन्दी}}</ref>
'''नरोत्तमदास ठाकुर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Narottamdas Thakur जन्म: [[संवत्]] 1585 (1528 ई.), मृत्यु: संवत् 1668 (1611 ई.), बंगाल के प्रसिद्ध भक्त थे, जिनके प्रयत्न से उत्तरी बंगाल में [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय मत]] का विशेष प्रचार हुआ था।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%A0%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0|title= नरोत्तमदास ठाकुर|accessmonthday= 21 मई|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bharatkhoj.org|language=हिन्दी}}</ref>
===जीवन-परिचय===
===जीवन-परिचय===
यह जन्म से ही विरक्त स्वभाव के थे। 12 वर्ष की अवस्था ही में इन्हें स्वप्न में श्री नित्यानंद के दर्शन हुए और उसी प्रेरणानुसार यह पद्मा नदी में स्नानार्थ गए। यहीं इन्हें भगवतप्रेम की प्राप्ति हुई। पिता की मृत्यु पर यह अपने चचेरे भाई संतोषदत्त को सब राज्य सौंप कर [[कार्तिक पूर्णिमा]] को [[वृंदावन]] चल दिए। यह वृंदावन में श्री जीव गोस्वामी के यहाँ बहुत वर्षों तक भक्तिशास्त्र का अध्ययन करते रहे। यहीं इन्होंने श्रीलोकनाथ गोस्वामी से [[श्रावणी पूर्णिमा]] को दीक्षा ली और उनके एकमात्र शिष्य हुए। संवत् 1639 में श्रीनिवासाचार्य तथा श्यामानंद जी के साथ ग्रंथराशि लेकर यह भी बंगाल लौटे। [[विष्णुपुर]] में ग्रंथों के चोरी जाने पर यह खेतुरी चले आए। यहाँ से एक कोस पर इन्होंने एक आश्रम खोला, जिसका नाम 'भजनटूली' था। इसमें श्रीगौरांग तथा [[श्रीकृष्ण]] के छह श्रीविग्रह प्रतिष्ठापित कर संवत् 1640 में महामहोत्सव किया। इन्होंने संकीर्तन की नई प्रणाली निकाली तथा गरानहाटी नामक सुर का प्रवर्तन किय। यह भक्त सुकवि तथा संगीतज्ञ थे। 'प्रार्थना', 'प्रेमभक्ति चंद्रिका' आदि इनकी रचनाएँ हैं।<ref name="aa"/>
राजशाही जिले के अंतर्गत परगना गोपालपुरा के राजा कृष्णनंददत्त के पुत्र थे। माता का नाम नारायणी देवी था। ये [[कायस्थ|कायस्थ जाति]] के थे तथा [[पद्मा नदी]] के तटस्थ खेतुरी इनकी राजधानी थी। इनका जन्म संवत् 1585 की [[माघ पूर्णिमा]] को हुआ था। यह जन्म से ही विरक्त स्वभाव के थे। 12 वर्ष की अवस्था ही में इन्हें स्वप्न में श्री नित्यानंद के दर्शन हुए और उसी प्रेरणानुसार यह पद्मा नदी में स्नानार्थ गए। यहीं इन्हें भगवतप्रेम की प्राप्ति हुई। पिता की मृत्यु पर यह अपने चचेरे भाई संतोषदत्त को सब राज्य सौंप कर [[कार्तिक पूर्णिमा]] को [[वृंदावन]] चल दिए। यह वृंदावन में [[जीव गोस्वामी|श्री जीव गोस्वामी]] के यहाँ बहुत वर्षों तक भक्तिशास्त्र का अध्ययन करते रहे। यहीं इन्होंने श्रीलोकनाथ गोस्वामी से [[श्रावणी पूर्णिमा]] को दीक्षा ली और उनके एकमात्र शिष्य हुए। संवत् 1639 में श्रीनिवासाचार्य तथा श्यामानंद जी के साथ ग्रंथराशि लेकर यह भी बंगाल लौटे। [[विष्णुपुर]] में ग्रंथों के चोरी जाने पर यह खेतुरी चले आए। यहाँ से एक कोस पर इन्होंने एक आश्रम खोला, जिसका नाम 'भजनटूली' था। इसमें श्रीगौरांग तथा [[श्रीकृष्ण]] के छह श्रीविग्रह प्रतिष्ठापित कर संवत् 1640 में महामहोत्सव किया। इन्होंने संकीर्तन की नई प्रणाली निकाली तथा गरानहाटी नामक सुर का प्रवर्तन किया। यह भक्त सुकवि तथा संगीतज्ञ थे। 'प्रार्थना', 'प्रेमभक्ति चंद्रिका' आदि इनकी रचनाएँ हैं।<ref name="aa"/>
===मृत्यु===
===मृत्यु===
इनका शरीरपात संवत् 1668 की कार्तिक कृष्ण 4 को हुआ और इनका भस्म [[वृंदावन]] लाया गया, जहाँ इनके गुरु लोकनाथ गोस्वामी की समाधि के पास इनकी भी समाधि बनी। इनके तथा इनके शिष्यों के प्रयत्न से उत्तर बंग में गौड़ीय मत का विशेष प्रचार हुआ।<ref name="aa"/>
इनका शरीरपात [[संवत्]] 1668 की [[कार्तिक]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[चतुर्थी]] को हुआ और इनका भस्म [[वृंदावन]] लाया गया, जहाँ इनके गुरु लोकनाथ गोस्वामी की समाधि के पास इनकी भी समाधि बनी। इनके तथा इनके शिष्यों के प्रयत्न से उत्तर बंग में [[गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय|गौड़ीय मत]] का विशेष प्रचार हुआ।<ref name="aa"/>




Line 11: Line 11:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
{{भारत के कवि}}
[[Category:भक्ति काल]][[Category:कवि]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:भक्ति काल]][[Category:कवि]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:चरित कोश]] [[Category:जीवनी साहित्य]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:01, 21 May 2017

नरोत्तमदास ठाकुर (अंग्रेज़ी: Narottamdas Thakur जन्म: संवत् 1585 (1528 ई.), मृत्यु: संवत् 1668 (1611 ई.), बंगाल के प्रसिद्ध भक्त थे, जिनके प्रयत्न से उत्तरी बंगाल में गौड़ीय मत का विशेष प्रचार हुआ था।[1]

जीवन-परिचय

राजशाही जिले के अंतर्गत परगना गोपालपुरा के राजा कृष्णनंददत्त के पुत्र थे। माता का नाम नारायणी देवी था। ये कायस्थ जाति के थे तथा पद्मा नदी के तटस्थ खेतुरी इनकी राजधानी थी। इनका जन्म संवत् 1585 की माघ पूर्णिमा को हुआ था। यह जन्म से ही विरक्त स्वभाव के थे। 12 वर्ष की अवस्था ही में इन्हें स्वप्न में श्री नित्यानंद के दर्शन हुए और उसी प्रेरणानुसार यह पद्मा नदी में स्नानार्थ गए। यहीं इन्हें भगवतप्रेम की प्राप्ति हुई। पिता की मृत्यु पर यह अपने चचेरे भाई संतोषदत्त को सब राज्य सौंप कर कार्तिक पूर्णिमा को वृंदावन चल दिए। यह वृंदावन में श्री जीव गोस्वामी के यहाँ बहुत वर्षों तक भक्तिशास्त्र का अध्ययन करते रहे। यहीं इन्होंने श्रीलोकनाथ गोस्वामी से श्रावणी पूर्णिमा को दीक्षा ली और उनके एकमात्र शिष्य हुए। संवत् 1639 में श्रीनिवासाचार्य तथा श्यामानंद जी के साथ ग्रंथराशि लेकर यह भी बंगाल लौटे। विष्णुपुर में ग्रंथों के चोरी जाने पर यह खेतुरी चले आए। यहाँ से एक कोस पर इन्होंने एक आश्रम खोला, जिसका नाम 'भजनटूली' था। इसमें श्रीगौरांग तथा श्रीकृष्ण के छह श्रीविग्रह प्रतिष्ठापित कर संवत् 1640 में महामहोत्सव किया। इन्होंने संकीर्तन की नई प्रणाली निकाली तथा गरानहाटी नामक सुर का प्रवर्तन किया। यह भक्त सुकवि तथा संगीतज्ञ थे। 'प्रार्थना', 'प्रेमभक्ति चंद्रिका' आदि इनकी रचनाएँ हैं।[1]

मृत्यु

इनका शरीरपात संवत् 1668 की कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को हुआ और इनका भस्म वृंदावन लाया गया, जहाँ इनके गुरु लोकनाथ गोस्वामी की समाधि के पास इनकी भी समाधि बनी। इनके तथा इनके शिष्यों के प्रयत्न से उत्तर बंग में गौड़ीय मत का विशेष प्रचार हुआ।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 नरोत्तमदास ठाकुर (हिन्दी) bharatkhoj.org। अभिगमन तिथि: 21 मई, 2017।

संबंधित लेख