नरोत्तमदास

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 03:03, 7 September 2012 by Dr, ashok shukla (talk | contribs)
Jump to navigation Jump to search

{{सूचना बक्सा साहित्यकार

चित्र= पूरा नाम= अन्य नाम= जन्म=सन 1493 (संवत- 1610) जन्म भूमि=वाड़ी, उत्तर प्रदेश अविभावक= पति/पत्नी= संतान= कर्म भूमि=सीतापुर कर्म-क्षेत्र=कवि मृत्यु=सन 1582 (संवत- 1689) मृत्यु स्थान= मुख्य रचनाएँ=सुदामा चरित], [[ध्रुव-चरित], कवितावली,तथा ‘विचार माला’ और ‘नाम-संकीर्तन’ विषय=सगुण भक्ति भाषा=अवधी, हिन्दी बोलचाल विद्यालय= शिक्षा= पुरस्कार-उपाधि= प्रसिद्धि= विशेष योगदान= नागरिकता= संबंधित लेख= शीर्षक 1= पाठ 1= शीर्षक 2= पाठ 2= अन्य जानकारी= बाहरी कड़ियाँ= अद्यतन=

}}

नरोत्तमदास की रचनाएँ

हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास , जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है । thumb|left|नरोत्तमदास

जीवन परिचय

शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है। इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस महान कवि के जन्मस्थल पर अंग्रेज़ों के समय से चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहाँ प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये कान्यकुब्ज ब्राहमण थे। thumb|left|महाकवि नरोत्तमदास परिसर की दुर्दशा पर आलेख 1991 thumb|right|महाकवि नरोत्तमदास जन्मस्थली परिसर 2011 इसके अतिरिक्त इनके संबंध में अन्य प्रमाणिक अभिलेखों में ‘जार्ज ग्रियर्सन’ का अध्ययन है, जिसमें उन्होंने महाकवि का जन्मकाल सम्वत् 1610 माना है। वस्तुतः इनके जन्मकाल के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने -अपने मत प्रगट किए हैं परन्तु ‘शिव सिंह सेंगर’ व ‘जार्ज ग्रियर्सन’ के मत अधिक समीचीन व प्रमाणित प्रतीत होते है जिसके आधार पर ‘सुदामा चरित’ का रचना काल सम्वत् 1582 में न होकर सन् 1582 अर्थात सम्वत् 1636 होता है।

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘हिन्दी साहित्य’ में नरोत्तमदास के जन्म का उल्लेख सम्वत् 1545 में होना स्वीकार किया है। इस प्रकार अनेक विद्वानों के मतों के आधार पर इनके जीवनकाल का निर्धारण उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में 1493 ई0 से 1582 ई0 किया गया है।

रचना परिचय

पं0 गणेश बिहारी मिश्र की ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार 1900 की खोज में इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के संबंध में भी जानकारियाँ मिलते हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है।

नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम-संकीर्तन’ की अनुपलब्धता का वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए।

सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने नरोत्तमदास की हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफी समय तक प्रामाणिकता की परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका।

सुदामा चरित’ के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैः- ‘यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है । बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है।’ thumb|right|नरोत्तमदास जन्मस्थली परिसर में स्थापित महाकवि की मूर्तिं डा0 नगेन्द्र ने अपने ग्रथ ‘रीतिकालीन कवियों की की सामान्य विशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सबसे पहले ‘सवैयों’ का प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नोत्तमदास को रखा हें

‘कवित्त’ (घनाक्षरी) का प्रयोग भी सर्वप्रथम नरोत्तमदास ने ही किया था। यह विधा अकबर के समकालीन अन्य कवियों ने अपनायी थी ।

डा0 रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काव्य के संदर्भ में लिखा हैः- ‘कथा संगठन,’ ‘नाटकीयता’, ‘विधान, भाव, भाषा, द्वन्द्व’ आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है ।’

कवि का कृतित्व इस प्रकार है।

1-सुदामा चरित, खण्ड काब्य (ब्रजभाषा में संपादित संकलन)

2-‘ध्रुव-चरित’, 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित

3-‘नाम-संकीर्तन’, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)

4-‘विचारमाला’, अब तक अप्राप्त, (प्रामाणिकता का अभाव)

  • नरोत्तमदास सीतापुर ज़िले के वाड़ी नामक कस्बे के रहनेवाले थे।
  • 'शिवसिंह सरोज' में इनका संवत 1602 में वर्तमान रहना लिखा है।
  • इनकी जाति का उल्लेख कहीं नहीं मिलता।
  • इनका 'सुदामाचरित्र' ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है। इसमें नरोत्तमदास ने सुदामा के घर की दरिद्रता का बहुत ही सुंदर वर्णन है। यद्यपि यह छोटा है, तथापि इसकी रचना बहुत ही सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है। भाषा भी बहुत ही परिमार्जित और व्यवस्थित है। बहुतेरे कवियों के समान भरती के शब्द और वाक्य इसमें नहीं हैं।
  • कुछ लोगों के अनुसार इन्होंने इसी प्रकार का एक और खंडकाव्य 'ध्रुवचरित' भी लिखा है। पर वह कहीं देखने में नहीं आया।
  • 'सुदामाचरित' का यह सवैया बहुत लोगों के मुँह से सुनाई पड़ता है -

सीस पगा न झगा तन पै, प्रभु! जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोती फटी सी, लटी दुपटी अरु पाँय उपानह को नहीं सामा
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकि सो बसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा

  • कृष्ण की दीनवत्सलता और करुणा का एक यह और सवैया इस प्रकार है -

कैसे बिहाल बिवाइन सों भए, कंटक जाल गड़े पग जोए।
हाय महादुख पाए सखा! तुम आए इतै न, कितै दिन खोए
देखि सुदामा की दीन दसा करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


सम्बंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः