दूलनदास: Difference between revisions

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'''दूलनदास''' (जन्म- 1660 ई., [[लखनऊ]]; मृत्यु- 1778 ई.) एक प्रसिद्ध रीतिकालीन कवि और सतनामी सम्प्रदाय के [[संत]]-महात्मा थे। जाति से दूलनदास [[क्षत्रिय]] तथा गृहस्थ थे। ये जगजीवन साहब के शिष्य थे। इन्होंने 'धर्मो' नाम का एक ग्राम भी बसाया था। इनका सारा समय [[साधु]]-संगत, भजन-कीर्तन और उपदेश देने में व्यतीत होता था। इन्होंने [[साखी]] और [[पद]] आदि की भी रचनाएँ की हैं।
'''दूलनदास''' (जन्म- 1660 ई., [[लखनऊ]]; मृत्यु- 1778 ई.) [[रीति काल]] के प्रसिद्ध [[कवि]] और सतनामी सम्प्रदाय के [[संत]]-महात्मा थे। वे जाति से [[क्षत्रिय]] तथा गृहस्थ थे। ये जगजीवन साहब के शिष्य थे। इन्होंने 'धर्मो' नाम का एक ग्राम भी बसाया था। इनका सारा समय [[साधु]]-संगत, भजन-कीर्तन और उपदेश देने में व्यतीत होता था। इन्होंने [[साखी]] और [[पद]] आदि की भी रचनाएँ की हैं।
==भाषा तथा उपदेश==
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==सतनामी संत==
====पद====
सतनामी सम्प्रदाय का आरम्भ कब और किसके द्वारा हुआ, यह तो ठीक से ज्ञात नहीं है, किंतु सतनामियों और [[मुग़ल]] बादशाह [[औरंगज़ेब]] के बीच की लड़ाई में हज़ारों सतनामी मारे गये थे। इससे प्रतीत होता है कि यह मत यथेष्ट प्रचलित था और स्थानविशेष में इसने सैनिक रूप धारण कर लिया था। [[संवत]] 1800 के लगभग जगजीवन साहब ने इसका पुनरुद्धार किया। दूलनदास इन्हीं के शिष्य थे, जो एक अच्छे [[कवि]] थे। ये जीवनभर [[रायबरेली]] में ही निवास करते रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=325|url=}}</ref>
====भाषा तथा उपदेश====
दूलनदास की [[भाषा]] में [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]] का मिश्रण है। अन्य संतों की भाँति गुरुभक्ति, समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम तथा निर्गुण, निराकार परमात्मा की प्राप्ति यही इनके उपदेश हैं।
==पद==
दूलनदास ने असंख्य पदों की रचना की है। कुछ इस प्रकार हैं-
दूलनदास ने असंख्य पदों की रचना की है। कुछ इस प्रकार हैं-
<blockquote><poem>जोगी चेत नगर में रहो रे।
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जोगी चेत नगर में रहो रे।
प्रेम रंग रस ओढ चदरिया मन तसबीह महोरे॥
प्रेम रंग रस ओढ चदरिया मन तसबीह महोरे॥


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दै चित चरन भयूँ सत सन्मुख बहुरि न यहि गज ऐहौं॥
दै चित चरन भयूँ सत सन्मुख बहुरि न यहि गज ऐहौं॥
ह्वै रस मगन पियों भर प्याला माला नाम डोलैहौं।
ह्वै रस मगन पियों भर प्याला माला नाम डोलैहौं।
कह 'दूलन' सतसाईं जगजीवन पिउ मिलि प्यारी कहैहौं॥</poem></blockquote>
कह 'दूलन' सतसाईं जगजीवन पिउ मिलि प्यारी कहैहौं॥
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दूलनदास (जन्म- 1660 ई., लखनऊ; मृत्यु- 1778 ई.) रीति काल के प्रसिद्ध कवि और सतनामी सम्प्रदाय के संत-महात्मा थे। वे जाति से क्षत्रिय तथा गृहस्थ थे। ये जगजीवन साहब के शिष्य थे। इन्होंने 'धर्मो' नाम का एक ग्राम भी बसाया था। इनका सारा समय साधु-संगत, भजन-कीर्तन और उपदेश देने में व्यतीत होता था। इन्होंने साखी और पद आदि की भी रचनाएँ की हैं।

सतनामी संत

सतनामी सम्प्रदाय का आरम्भ कब और किसके द्वारा हुआ, यह तो ठीक से ज्ञात नहीं है, किंतु सतनामियों और मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के बीच की लड़ाई में हज़ारों सतनामी मारे गये थे। इससे प्रतीत होता है कि यह मत यथेष्ट प्रचलित था और स्थानविशेष में इसने सैनिक रूप धारण कर लिया था। संवत 1800 के लगभग जगजीवन साहब ने इसका पुनरुद्धार किया। दूलनदास इन्हीं के शिष्य थे, जो एक अच्छे कवि थे। ये जीवनभर रायबरेली में ही निवास करते रहे।[1]

भाषा तथा उपदेश

दूलनदास की भाषा में भोजपुरी का मिश्रण है। अन्य संतों की भाँति गुरुभक्ति, समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम तथा निर्गुण, निराकार परमात्मा की प्राप्ति यही इनके उपदेश हैं।

पद

दूलनदास ने असंख्य पदों की रचना की है। कुछ इस प्रकार हैं-

जोगी चेत नगर में रहो रे।
प्रेम रंग रस ओढ चदरिया मन तसबीह महोरे॥

अंतर लाओ नामाहिं की धुनि करम भरम सब घोरे॥
सूरत साधि गहो सत मारग भेद न प्रगट कहो रे॥
'दूलनदास' के साँई जगजीवन भवजल पार करो रे॥
ऐसो रंग रँगैहौं मैं तो मतवालिन होइहौं॥
भट्टी अधर लगाइ नाम की सोज जगैहौं।

पौन सँभारि उलटि दै झोंका करवट कुमति जलैहौं॥
गुरुमति लहन सुरति भरि गागरि नरिया नेह लगैहौं।
प्रेम नीर दै प्रीति पुजारी यही बिधि मदबा चुबैहौ॥
अमल ऍंगारी नाम खुमारी नैनन छबि निरतैहौं।
दै चित चरन भयूँ सत सन्मुख बहुरि न यहि गज ऐहौं॥
ह्वै रस मगन पियों भर प्याला माला नाम डोलैहौं।
कह 'दूलन' सतसाईं जगजीवन पिउ मिलि प्यारी कहैहौं॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 325 |

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