मलूकदास: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक") |
||
(10 intermediate revisions by 3 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
{| style="background:transparent; float:right; margin:5px;" | |||
|- | |||
| | |||
{{सूचना बक्सा साहित्यकार | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
|चित्र=Blankimage. | |चित्र=Blankimage.png | ||
|चित्र का नाम= | |चित्र का नाम= | ||
|पूरा नाम=मलूकदास | |पूरा नाम=मलूकदास खत्री | ||
|अन्य नाम= | |अन्य नाम= | ||
|जन्म=1574 | |जन्म=1574 सन् (1631 [[संवत]]) | ||
|जन्म भूमि= | |जन्म भूमि=[[कड़ा]], [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
|मृत्यु=1682 | |मृत्यु=1682 सन् (1739 [[संवत]]) | ||
|मृत्यु स्थान= | |मृत्यु स्थान= | ||
| | |अभिभावक=लाला सुंदरदास खत्री | ||
|पति/पत्नी= | |पति/पत्नी= | ||
|संतान= | |संतान= | ||
|कर्म भूमि= | |कर्म भूमि= | ||
|कर्म-क्षेत्र=[[कवि]] | |कर्म-क्षेत्र=[[कवि]], लेखक | ||
|मुख्य रचनाएँ=रत्नखान, ज्ञानबोध, भक्ति विवेक आदि अनेक [[ग्रंथ]] | |मुख्य रचनाएँ=रत्नखान, ज्ञानबोध, भक्ति विवेक आदि अनेक [[ग्रंथ]] | ||
|विषय= | |विषय= | ||
|भाषा=[[अवधी भाषा|अवधी]] | |भाषा=[[फ़ारसी भाषा|फारसी]], [[अवधी भाषा|अवधी]], [[अरबी भाषा|अरबी]], [[खड़ी बोली]] आदि | ||
|विद्यालय= | |विद्यालय= | ||
|शिक्षा= | |शिक्षा= | ||
Line 31: | Line 34: | ||
|अद्यतन={{अद्यतन|13:35, 3 नवम्बर 2011 (IST)}} | |अद्यतन={{अद्यतन|13:35, 3 नवम्बर 2011 (IST)}} | ||
}} | }} | ||
मलूकदास का जन्म 'लाला सुंदरदास खत्री' के घर [[वैशाख]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] 5, संवत् 1631 में कड़ा, [[इलाहबाद|जिला इलाहाबाद]] में हुआ। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में [[संवत्]] 1739 में हुई। ये [[औरंगजेब]] के समय में दिल के अंदर खोजने वाले 'निर्गुण मत' के नामी संतों में हुए हैं और इनकी गद्दियाँ कड़ा, [[जयपुर]], [[गुजरात]], मुलतान, [[पटना]], [[नेपाल]] और [[काबुल]] तक में | |- | ||
| style="width:18em; float:right;"| | |||
<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:5px"> | |||
{| align="center" | |||
! मलूकदास की रचनाएँ | |||
|} | |||
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | |||
{{मलूकदास की रचनाएँ}} | |||
</div></div> | |||
|} | |||
'''मलूकदास''' का जन्म 'लाला सुंदरदास खत्री' के घर [[वैशाख]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] 5, संवत् 1631 में कड़ा, [[इलाहबाद|जिला इलाहाबाद]] में हुआ। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में [[संवत्]] 1739 में हुई। ये [[औरंगजेब]] के समय में दिल के अंदर खोजने वाले 'निर्गुण मत' के नामी संतों में हुए हैं और इनकी गद्दियाँ कड़ा, [[जयपुर]], [[गुजरात]], मुलतान, [[पटना]], [[नेपाल]] और [[काबुल]] तक में क़ायम हुईं। इनके संबंध में बहुत से चमत्कार या करामातें प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि एक बार इन्होंने एक डूबते हुए शाही जहाज़ को पानी के ऊपर उठाकर बचा लिया था और रुपयों का तोड़ा [[गंगा नदी|गंगा जी]] में तैरा कर कड़े से [[इलाहाबाद]] भेजा था। आलसियों का यह मूल मंत्र - | |||
<poem>अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। | <poem>अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम। | ||
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम। इन्हीं का है।</poem> | दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम। इन्हीं का है।</poem> | ||
==रचनाएँ== | |||
इनकी दो पुस्तकें प्रसिद्ध हैं 'रत्नखान' और 'ज्ञानबोध'। | इनकी दो पुस्तकें प्रसिद्ध हैं 'रत्नखान' और 'ज्ञानबोध'। | ||
====भाषा==== | |||
हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को उपदेश देने में प्रवृत्त होने के कारण दूसरे निर्गुणमार्गी संतों के समान इनकी [[भाषा]] में भी [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] और [[अरबी भाषा|अरबी]] शब्दों का बहुत प्रयोग है। इसी दृष्टि से बोलचाल की 'खड़ी बोली' का पुट इन सब संतों की बानी में एक सा पाया जाता है। इन सब लक्षणों के होते हुए भी इनकी भाषा सुव्यवस्थित और सुंदर है। कहीं-कहीं अच्छे कवियों का सा पदविन्यास और कवित्त आदि [[छंद]] भी पाए जाते हैं। कुछ पद्य बिल्कुल खड़ी बोली में हैं। आत्मबोध, वैराग्य, प्रेम आदि पर इनकी बानी बड़ी मनोहर है। दिग्दर्शन मात्र के लिए कुछ पद्य नीचे दिए जाते हैं | हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को उपदेश देने में प्रवृत्त होने के कारण दूसरे निर्गुणमार्गी संतों के समान इनकी [[भाषा]] में भी [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] और [[अरबी भाषा|अरबी]] शब्दों का बहुत प्रयोग है। इसी दृष्टि से बोलचाल की '[[खड़ी बोली]]' का पुट इन सब संतों की बानी में एक सा पाया जाता है। इन सब लक्षणों के होते हुए भी इनकी भाषा सुव्यवस्थित और सुंदर है। कहीं-कहीं अच्छे कवियों का सा पदविन्यास और कवित्त आदि [[छंद]] भी पाए जाते हैं। कुछ पद्य बिल्कुल खड़ी बोली में हैं। आत्मबोध, वैराग्य, प्रेम आदि पर इनकी बानी बड़ी मनोहर है। दिग्दर्शन मात्र के लिए कुछ पद्य नीचे दिए जाते हैं | ||
<poem>अब तो अजपा जपु मन मेरे। | <poem>अब तो अजपा जपु मन मेरे। | ||
सुर नर असुर टहलुआ जाके मुनि गंधर्व हैं जाके चेरे। | सुर नर असुर टहलुआ जाके मुनि गंधर्व हैं जाके चेरे। | ||
Line 52: | Line 65: | ||
छत्तिस पवन हमारी जाति । हमहीं दिन औ हमहीं राति | छत्तिस पवन हमारी जाति । हमहीं दिन औ हमहीं राति | ||
हमहीं तरवरकीट पतंगा । हमहीं दुर्गा हमहीं गंगा | हमहीं तरवरकीट पतंगा । हमहीं दुर्गा हमहीं गंगा | ||
हमहीं मुल्ला हमहीं | हमहीं मुल्ला हमहीं क़ाज़ी। तीरथ बरत हमारी बाजी | ||
हमहीं दसरथ हमहीं राम । हमरै क्रोध औ हमरै काम | हमहीं दसरथ हमहीं राम । हमरै क्रोध औ हमरै काम | ||
हमहीं रावन हमहीं कंस । हमहीं मारा अपना बंस</poem> | हमहीं रावन हमहीं कंस । हमहीं मारा अपना बंस</poem> | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 72| chapter =प्रकरण 2}} | {{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 72| chapter =प्रकरण 2}} | ||
Line 66: | Line 79: | ||
[[Category:कवि]] | [[Category:कवि]] | ||
[[Category:निर्गुण भक्ति]] | [[Category:निर्गुण भक्ति]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:भक्ति काल]] | [[Category:भक्ति काल]] | ||
[[Category:मलूकदास]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 05:03, 29 May 2015
| ||||||||||||||||||||||||||
|
मलूकदास का जन्म 'लाला सुंदरदास खत्री' के घर वैशाख कृष्ण 5, संवत् 1631 में कड़ा, जिला इलाहाबाद में हुआ। इनकी मृत्यु 108 वर्ष की अवस्था में संवत् 1739 में हुई। ये औरंगजेब के समय में दिल के अंदर खोजने वाले 'निर्गुण मत' के नामी संतों में हुए हैं और इनकी गद्दियाँ कड़ा, जयपुर, गुजरात, मुलतान, पटना, नेपाल और काबुल तक में क़ायम हुईं। इनके संबंध में बहुत से चमत्कार या करामातें प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि एक बार इन्होंने एक डूबते हुए शाही जहाज़ को पानी के ऊपर उठाकर बचा लिया था और रुपयों का तोड़ा गंगा जी में तैरा कर कड़े से इलाहाबाद भेजा था। आलसियों का यह मूल मंत्र -
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास मलूका कहि गए, सबके दाता राम। इन्हीं का है।
रचनाएँ
इनकी दो पुस्तकें प्रसिद्ध हैं 'रत्नखान' और 'ज्ञानबोध'।
भाषा
हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को उपदेश देने में प्रवृत्त होने के कारण दूसरे निर्गुणमार्गी संतों के समान इनकी भाषा में भी फारसी और अरबी शब्दों का बहुत प्रयोग है। इसी दृष्टि से बोलचाल की 'खड़ी बोली' का पुट इन सब संतों की बानी में एक सा पाया जाता है। इन सब लक्षणों के होते हुए भी इनकी भाषा सुव्यवस्थित और सुंदर है। कहीं-कहीं अच्छे कवियों का सा पदविन्यास और कवित्त आदि छंद भी पाए जाते हैं। कुछ पद्य बिल्कुल खड़ी बोली में हैं। आत्मबोध, वैराग्य, प्रेम आदि पर इनकी बानी बड़ी मनोहर है। दिग्दर्शन मात्र के लिए कुछ पद्य नीचे दिए जाते हैं
अब तो अजपा जपु मन मेरे।
सुर नर असुर टहलुआ जाके मुनि गंधर्व हैं जाके चेरे।
दस औतारि देखि मत भूलौ ऐसे रूप घनेरे
अलख पुरुष के हाथ बिकाने जब तैं नैननि हेरे।
कह मलूक तू चेत अचेता काल न आवै नेरे
नाम हमारा खाक है, हम खाकी बंदे।
खाकहि से पैदा किए अति गाफिल गंदे
कबहुँ न करते बंदगी, दुनिया में भूले।
आसमान को ताकते, घोड़े चढ़ फूले
सबहिन के हम सबै हमारे । जीव जंतु मोहि लगैं पियारे
तीनों लोक हमारी माया । अंत कतहुँ से कोइ नहिं पाया
छत्तिस पवन हमारी जाति । हमहीं दिन औ हमहीं राति
हमहीं तरवरकीट पतंगा । हमहीं दुर्गा हमहीं गंगा
हमहीं मुल्ला हमहीं क़ाज़ी। तीरथ बरत हमारी बाजी
हमहीं दसरथ हमहीं राम । हमरै क्रोध औ हमरै काम
हमहीं रावन हमहीं कंस । हमहीं मारा अपना बंस
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 2”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 72।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख