मार्कण्डेय: Difference between revisions
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Revision as of 12:17, 21 March 2014
मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त और ऋषि थे। इनके पिता का नाम मृकंड था।[1] भगवान शिव की कृपा से ही मार्कण्डेय का जन्म हुआ था। शिव ने मार्कण्डेय को सोलह वर्ष की आयु प्रदान की थी। मार्कण्डेय बाल्यकाल से ही तीव्र बुद्धि वाले बालक थे। सोलह वर्ष की आयु पूर्ण करने पर जब यमराज ने मार्कण्डेय को यमफांश में पकड़ लिया, तब भगवान शिव ने ही मार्कण्डेय को छुड़ाया और उन्हें लम्बी आयु का वरदान दिया।
जन्म
शिव को 'महामृत्युजंय' जाप द्वारा प्रसन्न करके अपनी आयु पूर्ण करने वाले बालक मार्कण्डेय शिवजी के परम भक्त थे। गढ़चिरौली, महाराष्ट्र से 20 किलोमीटर दूर चंद्रपुर मार्ग पर मार्कण्डेय नामक जगह पर आज भी हज़ारों वर्ष पुराना एक मंदिर बना हुआ है। यहाँ चारों ओर बिखरे छोटे-बड़े शिवलिंग और प्राचीन नक़्क़ाशीदार मंदिर आज भी पुराना इतिहास जीवीत रखे हुए हैं। मृकंड मुनि के कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वर माँगने को कहा था। इस पर मुनि बोले- "प्रभु! मुझे पुत्र चाहिए।" तब शिव बोले- "तुम्हें अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह वर्ष की आयु वाला एक गुणवान पुत्र।" मुनि ने कहा कि- "प्रभु! मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।" समय आने पर मुनि के यहाँ मार्कण्डेय नामक पुत्र का जन्म हुआ। मुनि सपत्नीक उसके लालन-पालन में लग गए और उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी।
लम्बी आयु का वरदान
जब मार्कण्डेय की आयु मात्र सोलह वर्ष थी, तब आयु पूर्ण हो जाने पर यमराज ने उन्हें यमफांश में फंशा लिया। मृत्यु के देवता को सामने आया देख कर मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गये। भगवान शिव ने वहाँ प्रकट होकर यमराज को खाली हाथ वापस लौटने के लिए विवश कर दिया और मार्कण्डेय को लम्बी आयु का वरदान दिया। मार्कण्डेय अमर होकर तपस्या करने पहाड़ों में चले गए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भागवत. 4-1.45
बाहरी कड़ियाँ
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