कबीर के दोहे: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
No edit summary |
||
Line 42: | Line 42: | ||
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब । | काल करै सो आज कर, आज करै सो अब । | ||
पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब ॥ | पल में प्रलय होयगी, बहुरि करेगौ कब ॥ | ||
कामी लज्जा ना करै, न माहें अहिलाद । | |||
नींद न माँगै साँथरा, भूख न माँगे स्वाद ॥ | |||
कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। | कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। | ||
Line 66: | Line 69: | ||
कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर। | कबीरा सोई पीर हैं, जो जाने पर पीर। | ||
जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर ॥ | जो पर पीर न जानई, सो काफिर बेपीर ॥ | ||
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । | |||
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ | |||
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । | |||
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ | |||
कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | ||
Line 76: | Line 85: | ||
ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार॥ | ग्यान षड्ग गहि, काल सिरि, भली मचाई मार॥ | ||
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया न जाइ । | |||
नैनूं रमैया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाइ ॥ | |||
कबीर नवै सब आपको, पर को नवै न कोय । | |||
घालि तराजू तौलिये, नवै सो भारी होय ॥ | |||
सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम । | सूरा के मैदान में, कायर का क्या काम । | ||
Line 147: | Line 156: | ||
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय। | पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंड़ित भया न कोय। | ||
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय॥ | ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंड़ित होय॥ | ||
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। | |||
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। | |||
पतिबरता मैली भली, गले काँच को पोत । | |||
सब सखियन में यों दिपै , ज्यों रवि ससि की जोत ॥ | |||
पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा। | पूरब दिसा हरि को बासा, पश्चिम अलह मुकामा। | ||
Line 156: | Line 171: | ||
पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | ||
ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार ॥ | ताते यह चाकी भली, पीस खाए संसार ॥ | ||
परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि । | |||
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि ॥ | |||
परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं । | |||
दिवस चारि सरसा रहै, अति समूला जाहिं ॥ | |||
चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय। | चलती चक्की देखि कै, दिया कबीरा रोय। | ||
Line 168: | Line 189: | ||
माली आवत देख कै कलियन करी पुकार। | माली आवत देख कै कलियन करी पुकार। | ||
फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार॥ | फूली फूली चुन लिए, काल्हि हमारी बार॥ | ||
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । | |||
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ | |||
माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर। | माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर। | ||
Line 177: | Line 201: | ||
मन माया तो एक हैं, माया नहीं समाय। | मन माया तो एक हैं, माया नहीं समाय। | ||
तीन लोक संसय परा, काहि कहूं समझाय। | तीन लोक संसय परा, काहि कहूं समझाय। | ||
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । | माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । | ||
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ | एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ | ||
मूरख संग ना कीजिए, लोहा जल ना तिराइ । | |||
कदली, सीप, भुजंग-मुख, एक बूंद तिहँ भाइ ॥ | |||
एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा। | एक राम दशरथ का प्यारा, एक राम का सकल पसारा। | ||
Line 219: | Line 243: | ||
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय। | गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय। | ||
बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय॥ | बलिहारी गुरु आपनै, गोबिंद दियो मिलाय॥ | ||
गाँठि न थामहिं बाँध ही, नहिं नारी सो नेह । | |||
कह कबीर वा साधु की, हम चरनन की खेह ॥ | |||
हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय। | हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय। | ||
Line 231: | Line 258: | ||
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। | बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। | ||
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ | पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥ | ||
बोली एक अमोल है, जो कोइ बोलै जानि । | |||
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि ॥ | |||
दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत । | दोष पराए देख कर चल्या हंसत हंसत । | ||
अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत ॥ | अपनै चीति न आबई जाको आदि न अंत ॥ | ||
दर्शन करना है तो, दर्पण माँजत रहिये । | |||
दर्पण में लगी कई, तो दर्श कहाँ से पाई ॥ | |||
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। | दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। |
Revision as of 16:10, 22 September 2012
कबीर के दोहे
| |
पूरा नाम | संत कबीरदास |
अन्य नाम | कबीरा, कबीर साहब |
जन्म | सन 1398 (लगभग) |
जन्म भूमि | लहरतारा ताल, काशी |
मृत्यु | सन 1518 (लगभग) |
मृत्यु स्थान | मगहर, उत्तर प्रदेश |
पालक माता-पिता | नीरु और नीमा |
पति/पत्नी | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
कर्म भूमि | काशी, बनारस |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक कवि |
मुख्य रचनाएँ | साखी, सबद और रमैनी |
विषय | सामाजिक |
भाषा | अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
शिक्षा | निरक्षर |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | कबीर ग्रंथावली, कबीरपंथ, बीजक, कबीर के दोहे आदि |
अन्य जानकारी | कबीर का कोई प्रामाणिक जीवनवृत्त आज तक नहीं मिल सका, जिस कारण इस विषय में निर्णय करते समय, अधिकतर जनश्रुतियों, सांप्रदायिक ग्रंथों और विविध उल्लेखों तथा इनकी अभी तक उपलब्ध कतिपय फुटकल रचनाओं के अंत:साध्य का ही सहारा लिया जाता रहा है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कस्तूरी कुंजल बसे, मृग ढूढै बन माहि । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख