आदित्य देवता: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==")
No edit summary
Line 15: Line 15:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}}
{{हिन्दू देवी देवता और अवतार}}{{पौराणिक चरित्र}}
[[Category:पौराणिक चरित्र]]
[[Category:पौराणिक_कोश]]
[[Category:पौराणिक_कोश]]
[[Category:हिन्दू_देवी-देवता]]
[[Category:हिन्दू_देवी-देवता]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 07:43, 28 December 2010

  • ब्रह्मा के मरीचि नामक पुत्र थे। उनके पुत्र का नाम कश्यप हुआ। कश्यप का विवाह दक्ष की तेरह कन्याओं से हुआ था। प्रत्येक कन्या का संतति विशिष्ट वर्ग की हुई। उदाहरणत:
  • अदिति ने देवताओं को जन्म दिया तथा दिति ने दैत्यों को।
  • इसी प्रकार दनु से दानव,
  • विनता से गरुड़ और अरुण,
  • कद्रू से नाग मुनि तथा गंधर्व,
  • रवसा से यक्ष और राक्षस,
  • क्रोध से कुल्याएं,
  • अरिष्टा से अप्सराएं,
  • इरा से ऐरावत हाथी,
  • श्येनी से श्येन तथा भास, शुक आदि पक्षी उत्पन्न हुए।
  • दैत्य दानव और राक्षस विमाता-पुत्र देवताओं से ईर्ष्या को अनुभव करते थे; अत: उन लोगों का परस्पर संघर्ष होता रहता था। एक बार वर्षों तक पारस्परिक युद्ध के उपरांत देवता पराजित हो गये। अदिति ने दुखी होकर सूर्य की आराधना की। सूर्य ने सहस्त्र अंशों सहित अदिति के गर्भ से जन्म लेकर असुरों को परास्त कर देवताओं को त्रिलोक का राज्य पुन: दिलाने का आश्वासन दिया। अदिति गर्भकाल में भी पूजापाठ, व्रत में लगी रहती थी। एक बार कश्यप ने रुष्ट होकर कहा-'यह व्रत रखकर तुम गर्भस्थ अंडे को मार डालना चाहती हो क्या?'
  • इस कारण से सूर्य 'मार्तंड' कहलाया। कालांतर में सूर्य ने अदिति की कोख से जन्म लिया, इस कारण से आदित्य कहलाया। सूर्य की क्रूर दृष्टि के तेज से दग्ध होकर असुर भस्म हो गये। देवताओं को उनका खोया हुआ राज्य पुन: प्राप्त हो गया। विश्वकर्मा ने प्रसन्न होकर अपनी पुत्री संज्ञा] का विवाह सूर्य (विवस्वान) से कर दिया। [1]
  • सूर्य की बारह मूर्तियां हैं: इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान विष्णु, अंश, वरुण और मित्र। ये मूर्तियां क्रमश: देवराजत्व, विविध प्रजा सृष्टि, बादलों, औषधि, वनस्पतियों, अन्न, वायु संचालन, देहधारी शरीरों, अग्नि, अवतरण, वायु-आनंद, जल तथा चंद्र सरोवर के तट पर स्थित हैं एक बार मित्र तथा वरुण को तपस्या करता देख नारद बहुत विस्मित हुए। उन्होंने मित्र से पूछा-'आप दोनों तो स्वयं पूजनीय हैं, फिर किसकी पूजा कर रहे हैं?' मित्र ने उत्तर दिया-सर्वोपरि स्थान सत-असत रूप देवपितृकर्म में पूजित ब्रह्मा का है, उसी की हम पूजा कर रहे हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वैवस्वत मनु मा0 पु0, 99-102

संबंधित लेख