Difference between revisions of "कबीर के दोहे"
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करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। | करता था सो क्यों किया, अब करि क्यों पछताय। | ||
बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥ | बोवे पेड बबूल का, आम कहां से खाय॥ | ||
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+ | काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । | ||
+ | पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥ | ||
कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस। | कर बहियां बल आपनी, छोड़ बीरानी आस। | ||
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कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । | कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान । | ||
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ | जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ | ||
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+ | कबीर सुता क्या करे, करे काज निवार| | ||
+ | जिस पंथ तू चलना, तो पंथ संवार|| | ||
कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | कबीर माला काठ की, कहि समझावै तोहि। | ||
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जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप। | जहां दया तहं धर्म है, जहां लोभ तहं पाप। | ||
जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥ | जहां क्रोध तहं काल है, जहां क्षमा आप॥ | ||
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+ | जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग| | ||
+ | तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग|| | ||
जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। | जब में था हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। | ||
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जब तूं आया जगत में, लोग हसें तू रोए। | जब तूं आया जगत में, लोग हसें तू रोए। | ||
एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए ॥ | एसी करनी ना करी, पाछे हसें सब कोए ॥ | ||
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+ | जीवत समझे जीवत बुझे, जीवत ही करो आस| | ||
+ | जीवत करम की फाँस न काटी, मुए मुक्ति की आस|| | ||
ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं। | ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं। | ||
Line 171: | Line 183: | ||
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । | पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय । | ||
एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ | एक पहर हरि नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ | ||
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+ | पहले अगन बिरहा की, पाछे प्रेम की प्यास| | ||
+ | कहे कबीर तब जानिए, नाम मिलन की आस| | ||
पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | पाहन पूजै हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार। | ||
Line 196: | Line 211: | ||
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ | कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ | ||
− | माया | + | माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । |
− | आशा | + | आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ |
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत। | माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत। | ||
Line 213: | Line 228: | ||
मांगण मरण समान है, बिरता बंचै कोई । | मांगण मरण समान है, बिरता बंचै कोई । | ||
कहै कबीर रघुनाथ सूं, मति रे मंगावे मोहि ॥ | कहै कबीर रघुनाथ सूं, मति रे मंगावे मोहि ॥ | ||
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+ | मुंड मुंडावत दिन गए, अजहूँ न मिलिया राम| | ||
+ | राम नाम कहू क्या करे, जे मन के औरे काम|| | ||
मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव । | मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव । | ||
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ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ। | ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोइ। | ||
आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ॥ | आपन को सीतल करे, और हु सीतल होइ॥ | ||
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+ | एक कहूँ तो है नहीं, दो कहूँ तो गारी| | ||
+ | है जैसा तैसा रहे, कहे कबीर बिचारी| | ||
धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। | धरती सब कागद करूं, लेखनी सब बनराय। | ||
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नये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय । | नये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय । | ||
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ॥ | मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय ॥ | ||
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+ | आय हैं सो जाएँगे, राजा रंक फकीर । | ||
+ | एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बँधे जात जंजीर ॥ | ||
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+ | अकथ कहानी प्रेम की, कुछ कही न जाये| | ||
+ | गूंगे केरी सर्करा, बैठे मुस्काए|| | ||
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Revision as of 17:25, 22 September 2012
kabir ke dohe
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poora nam | sant kabiradas |
any nam | kabira, kabir sahab |
janm | san 1398 (lagabhag) |
janm bhoomi | laharatara tal, kashi |
mrityu | san 1518 (lagabhag) |
mrityu sthan | magahar, uttar pradesh |
palak mata-pita | niru aur nima |
pati/patni | loee |
santan | kamal (putr), kamali (putri) |
karm bhoomi | kashi, banaras |
karm-kshetr | samaj sudharak kavi |
mukhy rachanaean | sakhi, sabad aur ramaini |
vishay | samajik |
bhasha | avadhi, sadhukk di, panchamel khich di |
shiksha | nirakshar |
nagarikata | bharatiy |
sanbandhit lekh | kabir granthavali, kabirapanth, bijak, kabir ke dohe adi |
any janakari | kabir ka koee pramanik jivanavritt aj tak nahian mil saka, jis karan is vishay mean nirnay karate samay, adhikatar janashrutiyoan, saanpradayik granthoan aur vividh ullekhoan tatha inaki abhi tak upalabdh katipay phutakal rachanaoan ke aant:sadhy ka hi sahara liya jata raha hai. |
inhean bhi dekhean | kavi soochi, sahityakar soochi |
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tika tippani aur sandarbh
bahari k diyaan
sanbandhit lekh
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