गिरिजाकुमार माथुर: Difference between revisions
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'''गिरिजाकुमार माथुर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Girija Kumar Mathur'', | |||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म [[मध्य प्रदेश]] के [[गुना ज़िला|गुना ज़िले]] में [[22 अगस्त]], [[1919]] को हुआ। शिक्षा [[झांसी]] और [[लखनऊ]] में हुई। इनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे [[कविता]] भी लिखा करते थे। [[सितार]] बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी [[मालवा]] की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढ़ाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद [[1936]] में स्नातक उपाधि के लिए [[ग्वालियर]] चले गये। [[1938]] में उन्होंने बी.ए. किया, [[1941]] में उन्होंने [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। इस बीच सन [[1940]] में उनका [[विवाह]] [[दिल्ली]] में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ। | गिरिजाकुमार माथुर का जन्म [[मध्य प्रदेश]] के [[गुना ज़िला|गुना ज़िले]] में [[22 अगस्त]], [[1919]] को हुआ। शिक्षा [[झांसी]] और [[लखनऊ]] में हुई। इनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे [[कविता]] भी लिखा करते थे। [[सितार]] बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी [[मालवा]] की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढ़ाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद [[1936]] में स्नातक उपाधि के लिए [[ग्वालियर]] चले गये। [[1938]] में उन्होंने बी.ए. किया, [[1941]] में उन्होंने [[लखनऊ विश्वविद्यालय]] में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। इस बीच सन [[1940]] में उनका [[विवाह]] [[दिल्ली]] में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ। | ||
==साहित्यिक परिचय== | ==साहित्यिक परिचय== | ||
गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत [[1934]] में [[ब्रजभाषा]] के परम्परागत [[कवित्त]]-[[सवैया]] लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार [[माखनलाल चतुर्वेदी]], [[बालकृष्ण शर्मा 'नवीन']] आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और 1941 में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']] से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा [[भारत]] में चल रहे [[स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन|राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन]] से प्रभावित है। सन 1943 में [[अज्ञेय]] द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। उनके द्वारा रचित मंदार, मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले आदि काव्य-संग्रह तथा खंड काव्य पृथ्वीकल्प प्रकाशित हुए हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा इन्होंने [[कहानी]], [[नाटक]] तथा [[आलोचना (साहित्य)|आलोचनाएँ]] भी लिखी हैं। इनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "[[हम होंगे कामयाब -गिरिजाकुमार माथुर|हम होंगे कामयाब]]" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य-यात्रा से परिचित होने के लिए इनकी पुस्तक "मुझे और अभी कहना है" अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। | गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत [[1934]] में [[ब्रजभाषा]] के परम्परागत [[कवित्त]]-[[सवैया]] लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार [[माखनलाल चतुर्वेदी]], [[बालकृष्ण शर्मा 'नवीन']] आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और 1941 में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला']] से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा [[भारत]] में चल रहे [[स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन|राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन]] से प्रभावित है। सन [[1943]] में [[अज्ञेय]] द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। उनके द्वारा रचित मंदार, मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले आदि काव्य-संग्रह तथा खंड काव्य पृथ्वीकल्प प्रकाशित हुए हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा इन्होंने [[कहानी]], [[नाटक]] तथा [[आलोचना (साहित्य)|आलोचनाएँ]] भी लिखी हैं। इनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "[[हम होंगे कामयाब -गिरिजाकुमार माथुर|हम होंगे कामयाब]]" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य-यात्रा से परिचित होने के लिए इनकी पुस्तक "मुझे और अभी कहना है" अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। | ||
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Latest revision as of 07:30, 11 September 2021
गिरिजाकुमार माथुर
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पूरा नाम | गिरिजाकुमार माथुर |
जन्म | 22 अगस्त, 1919 |
जन्म भूमि | गुना ज़िला, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 10 जनवरी, 1994 |
मृत्यु स्थान | नई दिल्ली |
अभिभावक | श्री देवीचरण माथुर और श्रीमती लक्ष्मीदेवी |
पति/पत्नी | शकुन्त माथुर |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | 'नाश और निर्माण', 'मंजीर', 'शिलापंख चमकीले', 'जो बंध नहीं सका', 'साक्षी रहे वर्तमान', 'मैं वक्त के हूँ सामने' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | व्यास सम्मान (1993), शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
संबंधित लेख | हम होंगे कामयाब |
अन्य जानकारी | भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा इन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। |
अद्यतन | 13:00, 11 सितम्बर 2021 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गिरिजाकुमार माथुर (अंग्रेज़ी: Girija Kumar Mathur, जन्म: 22 अगस्त, 1919; मृत्यु: 10 जनवरी, 1994) एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं। लम्बे अरसे तक इन्होंने आकाशवाणी की सेवा की। इनकी कविता में रंग, रूप, रस, भाव तथा शिल्प के नए-नए प्रयोग हैं। मुख्य काव्य संग्रह हैं, 'नाश और निर्माण', 'मंजीर', 'धूप के धान', 'शिलापंख चमकीले, 'जो बंध नहीं सका', 'साक्षी रहे वर्तमान', 'भीतर नदी की यात्रा', 'मैं वक्त के हूँ सामने' तथा 'छाया मत छूना मन' आदि। इन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएं भी लिखी हैं। गिरिजाकुमार माथुर की 'मैं वक़्त के हूँ सामने' नामक काव्य संग्रह साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है।
जीवन परिचय
गिरिजाकुमार माथुर का जन्म मध्य प्रदेश के गुना ज़िले में 22 अगस्त, 1919 को हुआ। शिक्षा झांसी और लखनऊ में हुई। इनके पिता देवीचरण माथुर स्कूल अध्यापक थे तथा साहित्य एवं संगीत के शौकीन थे। वे कविता भी लिखा करते थे। सितार बजाने में प्रवीण थे। माता लक्ष्मीदेवी मालवा की रहने वाली थीं और शिक्षित थीं। गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। उनके पिता ने घर ही अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढ़ाया। स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद 1936 में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियर चले गये। 1938 में उन्होंने बी.ए. किया, 1941 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की। इस बीच सन 1940 में उनका विवाह दिल्ली में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ।
साहित्यिक परिचय
गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। वे विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए और 1941 में प्रकाशित अपने प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका उन्होंने सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' से लिखवायी। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। सन 1943 में अज्ञेय द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित 'तारसप्तक' के सात कवियों में से एक कवि गिरिजाकुमार भी हैं। यहाँ उनकी रचनाओं में प्रयोगशीलता देखी जा सकती है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। उनके द्वारा रचित मंदार, मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले आदि काव्य-संग्रह तथा खंड काव्य पृथ्वीकल्प प्रकाशित हुए हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा इन्होंने कहानी, नाटक तथा आलोचनाएँ भी लिखी हैं। इनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य-यात्रा से परिचित होने के लिए इनकी पुस्तक "मुझे और अभी कहना है" अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
सम्मान और पुरस्कार
- 1991 में कविता-संग्रह "मै वक्त के सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1993 में के. के. बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित व्यास सम्मान
- शलाका सम्मान
निधन
10 जनवरी, 1994 को नई दिल्ली में गिरिजाकुमार माथुर का निधन हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- गिरिजाकुमार माथुर
- गिरिजाकुमार माथुर की रचनाएँ
- नई कविता:गिरिजाकुमार माथुर
- नया बनने का दर्द : गिरिजा कुमार माथुर
- गिरिजा कुमार माथुर स्मृति व्याख्यानमाला-2011
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