भाई वीर सिंह: Difference between revisions

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==जन्म एंव परिचय==
==जन्म एवं परिचय==
भाई वीर सिंह का जन्म दिसंबर,1872 ई. में अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता [[सिक्ख]] नेता डॉ. चरनसिंह भी साहित्य में रुचि रखते थे। वीर सिंह का बचपन अपने [[नाना]] के यहां बीता। वे भी साहित्यकार थे। इस प्रकार सहित्य के [[संस्कार]] वीर सिंह को विरासत में मिले। उन्होंने नाटककार, [[उपन्यासकार]], निबंध-लेखक, जीवनी-लेखक और [[कवि]] के रूप में साहित्य की सेवा की है। [[सिक्ख धर्म]] में वीर सिंह की अटल आस्था थी और राजनीतिक गतिविधियों से वे सदा दूर रहे।  
भाई वीर सिंह का जन्म दिसंबर,1872 ई. में अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता [[सिक्ख]] नेता डॉ. चरनसिंह भी साहित्य में रुचि रखते थे। वीर सिंह का बचपन अपने [[नाना]] के यहां बीता। वे भी साहित्यकार थे। इस प्रकार सहित्य के [[संस्कार]] वीर सिंह को विरासत में मिले। उन्होंने नाटककार, [[उपन्यासकार]], निबंध-लेखक, जीवनी-लेखक और [[कवि]] के रूप में साहित्य की सेवा की है। [[सिक्ख धर्म]] में वीर सिंह की अटल आस्था थी और राजनीतिक गतिविधियों से वे सदा दूर रहे।  
==लेखन कार्य==
==लेखन कार्य==

Revision as of 13:17, 7 May 2017

भाई वीर सिंह
पूरा नाम भाई वीर सिंह
जन्म 5 दिसंबर, 1872
जन्म भूमि अमृतसर, पंजाब
मृत्यु 10 जून, 1957
मृत्यु स्थान अमृतसर, पंजाब
अभिभावक पिता- डॉ. चरनसिंह
कर्म भूमि अमृतसर, पंजाब
कर्म-क्षेत्र साहित्य, कवि
मुख्य रचनाएँ मुख्य काव्य ग्रन्थ- राणा सूरत सिंघ, लहरां दे हार, प्रीत वीणा, कंब की कलाई आदि।
भाषा हिन्दी भाषा
पुरस्कार-उपाधि 'पद्म भूषण'
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी भाई वीरसिंह के लेखन में गद्य की मात्रा अधिक होते हुए भी उनकी प्रसिद्ध कवि के रूप में अधिक है।
अद्यतन‎ 03:31, 11 जनवरी-2017 (IST)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

भाई वीर सिंह (अंग्रेज़ी: Vir Singh, जन्म- 5 दिसंबर, 1872 , अमृतसर, पंजाब; मृत्यु- 10 जून, 1957) आधुनिक पंजाबी काव्य और गद्य के निर्माता के रूप में प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने 1894 ई. में 'खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी' की नींव डाली। फिर साप्ताहिक 'खालसा समाचार' निकाला। भाई वीर सिंह को भारत सरकार द्वारा 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया।[1]

जन्म एवं परिचय

भाई वीर सिंह का जन्म दिसंबर,1872 ई. में अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता सिक्ख नेता डॉ. चरनसिंह भी साहित्य में रुचि रखते थे। वीर सिंह का बचपन अपने नाना के यहां बीता। वे भी साहित्यकार थे। इस प्रकार सहित्य के संस्कार वीर सिंह को विरासत में मिले। उन्होंने नाटककार, उपन्यासकार, निबंध-लेखक, जीवनी-लेखक और कवि के रूप में साहित्य की सेवा की है। सिक्ख धर्म में वीर सिंह की अटल आस्था थी और राजनीतिक गतिविधियों से वे सदा दूर रहे।

लेखन कार्य

आरंभ में भाई वीर सिंह ने सिक्ख मत की एकता और श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अनेक 'ट्रैक्ट' लिखे और 1894 ई. में 'खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी' की नींव डाली। फिर साप्ताहिक 'खालसा समाचार' निकाला। उनके चार उपन्यास 'सुंदरी', 'बिजैसिंघ', 'सतवंत कौर' और 'बाबा नौध सिंघ' प्रसिद्ध हैं। 'राजा लखनदारा सिंघ' नाटक है। 'कलगीधार चमत्कार' नामक गुरु गोविंद सिंह की जीवनी और 'गुरु नानक चमत्कार' नामक गुरु नानक की जीवनी लोकप्रिय है। इसके अतिरिक्त आपने अनेक कहानियां भी लिखी है।

मुख्य काव्य ग्रन्थ

भाई वीर सिंह के लेखन में गद्य की मात्रा अधिक होते हुए भी उनकी प्रसिद्ध कवि के रूप में अधिक है। 'राणा सूरत सिंघ', 'लहरां दे हार', 'प्रीत वीणा', 'कंब की कलाई', 'कंत महेली' और 'साइयां जीओ' मुख्य काव्य ग्रन्थ हैं। वे मनुष्यता के उद्बोधन के कवि थे। उनका कहना था कि "ए प्यारे मनुष्य तू धरती से ऊंचा उठकर देख। परमात्मा ने तुझे पंख दिए हैं। जिसके पास ऊँची दृष्टि है, ऊंचा साहस है, वह नीचे क्यों गिरेगा।"

उपाधि

भाई वीर सिंह के योगदान के लिए पंजाब विश्वविद्यालय ने उन्होंने डी.लिट. की मानक उपाधि दी, साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत किया और भारत सरकार ने 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया।

जन्म

10 जून, 1957 में भाई वीर सिंह का देहांत हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 569 |

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