जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन: Difference between revisions

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*[http://www.rachanakar.org/2009/09/blog-post_176.html महावीर सरन जैन का आलेख: विदेशी विद्वानों द्वारा हिंदी का अध्ययन]
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*[http://www.thegriersonfamily.com/griersondirectory/2011/07/george-abraham-grierson-linguist/ George Abraham Grierson – linguist]


==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==

Revision as of 12:18, 5 October 2011

  • जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन[1] सन 1868 में राबर्ट एटकिंसन से संस्कृत वर्णमाला का ज्ञान प्राप्त किया।
  • इन्होंने भारत की पौराणिक गाथाओं में इतिहास का दर्शन किया और ग्रामीणों की कहावतों में ज्ञान प्राप्त किया। ये वेद, दर्शन और संस्कृत से भी बहुत प्रभावित थे। इनके सहायकों में गौरीकांत, स्टेनकोनों, ई. एच. हाल आदि रहे हैं। एक भाषा - वैज्ञानिक एवं इतिहासकार के रूप में ये प्रसिद्ध हैं।
  • इन्होंने बिहार में काम करना प्रारम्भ किया था। वहीं इन्होंने बिहारी भाषाओं का अध्ययन किया और 'बिहारी भाषाओं के सात व्याकरण 1883 से 1887 ई. तक प्रकाशित किये।

चित्र:Blockquote-open.gif इसका विवरणात्मक भाग दो हिस्सों में विभक्त है। पहले का शीर्षक 'भूमिका' है और इसमें उन सभी पूर्व प्रयत्नों का विवरण प्रस्तुत है, जो भारत की भाषाओं के अध्ययन के सम्बन्ध में किये गये थे। दूसरे भाग में सर्वेक्षण के परिणामों तथा उन प्राप्त शिक्षाओं पर दृष्टिपात करने का प्रयत्न किया गया है। इन दो खण्डों के अतिरिक्त इस सर्वेक्षण में दो अन्य संग्रह भी है जिनमें समस्त सर्वेक्षण के लिए बृहत योग एवं लघु योग तथा शोधनीय सामग्री है। अंत में तीन परिशिष्ट भी जोड़े गये है। इनमें भारत की सभी भाषाओं की वर्गीकृत सूची, उन भाषाओं की सूची, जिनके ग्रामोफोन रेकार्ड इस देश में तथा पेरिस में उपलब्ध हैं तथा सभी भारतीय भाषाओं के नाम हैं। इसमें विभिन्न भाषाओं के नमूने भी हैं चित्र:Blockquote-close.gif

- ग्रियर्सन
  • ग्रियर्सन को हिन्दी से अतिशय प्रेम था। इसीलिए इन्होंने 33 वर्ष तक पर्याप्त परिश्रम कर असंख्य व्यक्तियों से पत्राचार एवं सम्पर्क स्थापित करके भारतीय भाषाओं एवं बोलियों के विषय में भरसक प्रामाणिक आँकड़े और विवरण एकत्र किये।[2] भाषाओं और बोलियों के सम्बन्ध में खोज तथा छानबीन का इतना विशाल एवं विस्तृत प्रयत्न किसी भी देश में नहीं किया गया। अंग्रेज़ी में यह 11 जिल्दों में प्रकाशित हुआ था।
  • ग्रियर्सन के ही शब्दों में "इसका विवरणात्मक भाग दो हिस्सों में विभक्त है। पहले का शीर्षक 'भूमिका' है और इसमें उन सभी पूर्व प्रयत्नों का विवरण प्रस्तुत है, जो भारत की भाषाओं के अध्ययन के सम्बन्ध में किये गये थे। दूसरे भाग में सर्वेक्षण के परिणामों तथा उन प्राप्त शिक्षाओं पर दृष्टिपात करने का प्रयत्न किया गया है। इन दो खण्डों के अतिरिक्त इस सर्वेक्षण में दो अन्य संग्रह भी है जिनमें समस्त सर्वेक्षण के लिए बृहत योग एवं लघु योग तथा शोधनीय सामग्री है। अंत में तीन परिशिष्ट भी जोड़े गये है। इनमें भारत की सभी भाषाओं की वर्गीकृत सूची, उन भाषाओं की सूची, जिनके ग्रामोफोन रेकार्ड इस देश में तथा पेरिस में उपलब्ध हैं तथा सभी भारतीय भाषाओं के नाम हैं। इसमें विभिन्न भाषाओं के नमूने भी हैं।"
  • भाषा- सर्वेक्षण नामक यह ग्रंथ साहित्य, भाषा तथा उसके इतिहास के लिए एक अनुपम सन्दर्भ ग्रंथ है। वे इसे 1894 से प्रारम्भ कर 1927 ई. में समाप्त कर सके। इसी से उसकी विशालता का अन्दाजा लगेगा।
  • इसके अतिरिक्त इनकी एक पुस्तक माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ़ नादर्न हिन्दुस्तान भी है, जिसका प्रकाशन सन 1889 ई. में हुआ। *1906 ई. में पिशाच भाषा तथा 1911 में कश्मीरी[3] पर भी इनके प्रामाणिक ग्रंथ निकले। 1924 में 4 भागों में इनका कश्मीरी कोश प्रकाशित हुआ।
  • ग्रियर्सन का भाषा सम्बन्धी वर्गीकरण भले ही उचित न हो पर महत्त्वपूर्ण अवश्य है। उनकी दृष्टि में हिन्दी, हिन्दुस्तानी का ही एक रूप है। *हिन्दुस्तानी को उन्होंने मूल भाषा माना है। इसकी परिणति वे उर्दू में मानते हैं।
  • ग्रियर्सन के भाषा-सर्वेक्षण में विभिन्न बोलियों के उदाहरण तो है किंतु अरबी - फारसी शब्दों की संख्या नगण्य है। वे ठेठ हिन्दुस्तानी को साहित्यिक उर्दू तथा हिन्दी की जननी मानते हैं। 11 जिल्दों[4] में सभी भारतीय भाषाओं एवं बोलियों का उदाहरण एवं उनका व्याकरण दे देना ग्रियर्सन के अमरत्व के लिए पर्याप्त है।
  • ग्रियर्सन की सुविस्तृत भूमिका उनके श्रेष्ठ पाण्डित्य का उत्कृष्ट प्रमाण है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1851-1941
  2. लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ़ इण्डिया
  3. 2 भागों में
  4. जिनमें से कुछ भागों में विभक्त हैं

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 165।

बाहरी कड़ियाँ

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