कान्ह भये बस बाँसुरी के -रसखान: Difference between revisions
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|मुख्य रचनाएँ= | |मुख्य रचनाएँ= 'सुजान रसखान' और 'प्रेमवाटिका' | ||
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कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै। | कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै। | ||
निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै। | निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै। | ||
जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै। | जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै। | ||
मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै। | मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै। |
Latest revision as of 10:09, 14 December 2013
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कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै। |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |