Difference between revisions of "विष्णु पुराण"

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[[चित्र:Cover-Vishnu-Purana.jpg|thumb|विष्णु पुराण, [[गीताप्रेस गोरखपुर]] का आवरण पृष्ठ]]
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अठारह महापुराणों में 'विष्णु पुराण' का आकार सबसे छोटा है। किन्तु इसका महत्त्व प्राचीन समय से ही बहुत अधिक माना गया है। [[संस्कृत]] विद्वानों की दृष्टि में इसकी भाषा ऊंचे दर्जे की, साहित्यिक, काव्यमय गुणों से सम्पन्न और प्रसादमयी मानी गई है। इस [[पुराण]] में भूमण्डल का स्वरूप, ज्योतिष, राजवंशों का इतिहास, [[कृष्ण]] चरित्र आदि विषयों को बड़े तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति से यह पुराण मुक्त है। धार्मिक तत्त्वों का सरल और सुबोध शैली में वर्णन किया गया है।
==विष्णु पुराण / [[:en:Vishnu Purana|Vishnu Purana]]==
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[[चित्र:God-Vishnu.jpg|thumb|200px|[[विष्णु|भगवान विष्णु]]<br /> God Vishnu]]
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==सात हज़ार श्लोक==  
[[चित्र:God-Vishnu.jpg|thumb|250px|भगवान विष्णु<br /> God Vishnu|left]]
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इस पुराण में इस समय सात हज़ार [[श्लोक]] उपलब्ध हैं। वैसे कई ग्रन्थों में इसकी श्लोक संख्या तेईस हज़ार बताई जाती है। यह पुराण छह भागों में विभक्त है। [[चित्र:Holika-Prahlad-1.jpg|thumb|[[प्रह्लाद]] को गोद में बिठाकर बैठी होलिका|left]] पहले भाग में सर्ग अथवा सृष्टि की उत्पत्ति, काल का स्वरूप और [[ध्रुव]], [[पृथु]] तथा [[प्रह्लाद]] की कथाएं दी गई हैं। दूसरे भाग में लोकों के स्वरूप, [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] के नौ खण्डों, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष आदि का वर्णन है। तीसरे भाग में [[मन्वन्तर]], [[वेद|वेदों]] की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ धर्म और [[श्राद्ध]]-विधि आदि का उल्लेख है। चौथे भाग में [[सूर्य वंश]] और [[चन्द्र वंश]] के राजागण तथा उनकी वंशावलियों का वर्णन है। पांचवें भाग में श्रीकृष्ण चरित्र और उनकी लीलाओं का वर्णन है जबकि छठे भाग में प्रलय तथा मोक्ष का उल्लेख है।
अठारह महापुराणों में 'विष्णु पुराण' का आकार सबसे छोटा है। किन्तु इसका महत्व प्राचीन समय से ही बहुत अधिक माना गया है। [[संस्कृत]] विद्वानों की दृष्टि में इसकी भाषा ऊंचे दर्जे की, साहित्यिक, काव्यमय गुणों से सम्पन्न और प्रसादमयी मानी गई है। इस [[पुराण]] में भूमण्डल का स्वरूप, ज्योतिष, राजवंशों का इतिहास, [[कृष्ण]] चरित्र आदि विषयों को बड़े तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति से यह पुराण मुक्त है। धार्मिक तत्त्वों का सरल और सुबोध शैली में वर्णन किया गया है।
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{{Seealso|सूर्यवंश वृक्ष|चन्द्र वंश वृक्ष}}
==सात हजार श्लोक==  
 
इस पुराण में इस समय सात हजार [[श्लोक]] उपलब्ध हैं। वैसे कई ग्रन्थों में इसकी श्लोक संख्या तेईस हजार बताई जाती है। यह पुराण छह भागों में विभक्त है। पहले भाग में सर्ग अथवा सृष्टि की उत्पत्ति, काल का स्वरूप और [[ध्रुव]], [[पृथु]] तथा [[प्रह्लाद]] की कथाएं दी गई हैं। दूसरे भाग में लोकों के स्वरूप, [[पृथ्वी]] के नौ खण्डों, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष आदि का वर्णन है। तीसरे भाग में [[मन्वन्तर]], [[वेदों]] की शाखाओं का विस्तार, गृहस्थ धर्म और [[श्राद्ध]]-विधि आदि का उल्लेख है। चौथे भाग में [[सूर्य वंश]] और [[चन्द्र वंश]] के राजागण तथा उनकी वंशावलियों का वर्णन है। पांचवें भाग में श्रीकृष्ण चरित्र और उनकी लीलाओं का वर्णन है जबकि छठे भाग में प्रलय तथा मोक्ष का उल्लेख है।
 
 
 
'विष्णु पुराण' में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म  और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।
 
'विष्णु पुराण' में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म  और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।
  
 
==रचनाकार पराशर ऋषि==
 
==रचनाकार पराशर ऋषि==
इस पुराण के रचनाकार [[पराशर]] ऋषि थे।  ये महर्षि [[वसिष्ठ]] के पौत्र थे। इस पुराण में पृथु, ध्रुव और प्रह्लाद के प्रसंग अत्यन्त रोचक हैं। 'पृथु' के वर्णन में धरती को समतल करके कृषि कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। कृषि-व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने पर जोर दिया गया है। घर-परिवार, ग्राम, नगर, दुर्ग आदि की नींव डालकर परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। इसी कारण धरती को 'पृथ्वी' नाम दिया गया । 'ध्रुव' के आख्यान में सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान समझकर आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी गई है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय भी सिद्धांतों और आदर्शों को न त्यागने की बात कही गई है।
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इस पुराण के रचनाकार [[पराशर]] ऋषि थे।  ये महर्षि [[वसिष्ठ]] के पौत्र थे। इस पुराण में पृथु, ध्रुव और प्रह्लाद के प्रसंग अत्यन्त रोचक हैं। 'पृथु' के वर्णन में धरती को समतल करके कृषि कर्म करने की प्रेरणा दी गई है। कृषि-व्यवस्था को चुस्त-दुरूस्त करने पर ज़ोर दिया गया है। घर-परिवार, ग्राम, नगर, दुर्ग आदि की नींव डालकर परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई है। इसी कारण धरती को 'पृथ्वी' नाम दिया गया । 'ध्रुव' के आख्यान में सांसारिक सुख, ऐश्वर्य, धन-सम्पत्ति आदि को क्षण भंगुर अर्थात् नाशवान समझकर आत्मिक उत्कर्ष की प्रेरणा दी गई है। प्रह्लाद के प्रकरण में परोपकार तथा संकट के समय भी सिद्धांतों और आदर्शों को न त्यागने की बात कही गई है।
 
==कृष्ण चरित्र का वर्णन==  
 
==कृष्ण चरित्र का वर्णन==  
'विष्णु पुराण' में मुख्य रूप से [[कृष्ण]] चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में [[राम]] कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है। इस पुराण में कृष्ण के समाज सेवी, प्रजा प्रेमी, लोक रंजक तथा लोक हिताय स्वरूप को प्रकट करते हुए उन्हें महामानव की संज्ञा दी गई है। श्रीकृष्ण ने प्रजा को संगठन-शक्ति का महत्त्व समझाया और अन्याय का प्रतिकार करने की प्रेरणा दी। अधर्म के विरूद्ध धर्म-शक्ति का परचम लहराया।  '[[महाभारत]]' में [[कौरव|कौरवों]] का विनाश और '[[कालिय नाग|कालिया दहन]]' में [[नाग|नागों]] का संहार उनकी लोकोपकारी छवि को प्रस्तुत करता है।
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'विष्णु पुराण' में मुख्य रूप से [[कृष्ण]] चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में [[राम]] कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है। इस पुराण में कृष्ण के समाज सेवी, प्रजा प्रेमी, लोक [[रंजक]] तथा लोक हिताय स्वरूप को प्रकट करते हुए उन्हें महामानव की संज्ञा दी गई है। [[चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]], [[मथुरा]]<br /> Radha - Krishna, Krishna's Birth Place, Mathura|thumb|left]] श्रीकृष्ण ने प्रजा को संगठन-शक्ति का महत्त्व समझाया और अन्याय का प्रतिकार करने की प्रेरणा दी। अधर्म के विरुद्ध धर्म-शक्ति का परचम लहराया।  '[[महाभारत]]' में [[कौरव|कौरवों]] का विनाश और '[[कालिय नाग|कालिया दहन]]' में [[नाग|नागों]] का संहार उनकी लोकोपकारी छवि को प्रस्तुत करता है।
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[[चित्र:Ramayana.jpg|thumb|[[राम]],[[लक्ष्मण]] और [[सीता]]<br /> Ram, Laxman and Sita|thumb]]
कृष्ण के जीवन की लोकोपयोगी घटनाओं को अलौकिक रूप देना उस महामानव के प्रति भक्ति-भावना की प्रतीक है। इस पुराण में कृष्ण चरित्र के साथ-साथ भक्ति और [[वेदान्त]] के उत्तम सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन हुआ है। यहां 'आत्मा' को जन्म-मृत्यु से रहित, निर्गुण और अनन्त बताया गया है। समस्त प्राणियों में उसी आत्मा का निवास है। ईश्वर का भक्त वही होता है जिसका चित्त शत्रु और मित्र और मित्र में समभाव रखता है, दूसरों को कष्ट नहीं देता, कभी व्यर्थ का गर्व नहीं करता और सभी में ईश्वर का वास समझता है। वह सदैव सत्य का पालन करता है और कभी असत्य नहीं बोलता ।  
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कृष्ण के जीवन की लोकोपयोगी घटनाओं को अलौकिक रूप देना उस महामानव के प्रति भक्ति-भावना की प्रतीक है। इस पुराण में कृष्ण चरित्र के साथ-साथ भक्ति और [[वेदान्त]] के उत्तम सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन हुआ है। यहाँ 'आत्मा' को जन्म-मृत्यु से रहित, निर्गुण और अनन्त बताया गया है। समस्त प्राणियों में उसी आत्मा का निवास है। ईश्वर का भक्त वही होता है जिसका चित्त शत्रु और मित्र और मित्र में समभाव रखता है, दूसरों को कष्ट नहीं देता, कभी व्यर्थ का गर्व नहीं करता और सभी में ईश्वर का वास समझता है। वह सदैव सत्य का पालन करता है और कभी असत्य नहीं बोलता ।
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==राजवंशों का वृत्तान्त==
 
==राजवंशों का वृत्तान्त==
 
इस पुराण में प्राचीन काल के राजवंशों का वृत्तान्त लिखते हुए कलियुगी राजाओं को चेतावनी दी गई है कि सदाचार से ही प्रजा का मन जीता जा सकता है, पापमय आचरण से नहीं। जो सदा सत्य का पालन करता है, सबके प्रति मैत्री भाव रखता है और दुख-सुख में सहायक होता है; वही राजा श्रेष्ठ होता है। राजा का धर्म प्रजा का हित संधान और रक्षा करना होता है। जो राजा अपने स्वार्थ में डूबकर प्रजा की उपेक्षा करता है और सदा भोग-विलास में डूबा रहता है, उसका विनाश समय से पूर्व ही हो जाता है।  
 
इस पुराण में प्राचीन काल के राजवंशों का वृत्तान्त लिखते हुए कलियुगी राजाओं को चेतावनी दी गई है कि सदाचार से ही प्रजा का मन जीता जा सकता है, पापमय आचरण से नहीं। जो सदा सत्य का पालन करता है, सबके प्रति मैत्री भाव रखता है और दुख-सुख में सहायक होता है; वही राजा श्रेष्ठ होता है। राजा का धर्म प्रजा का हित संधान और रक्षा करना होता है। जो राजा अपने स्वार्थ में डूबकर प्रजा की उपेक्षा करता है और सदा भोग-विलास में डूबा रहता है, उसका विनाश समय से पूर्व ही हो जाता है।  
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इस पुराण में स्त्रियों, साधुओं और शूद्रों को श्रेष्ठ माना गया है। जो स्त्री अपने तन-मन से पति की सेवा तथा सुख की कामना करती है, उसे कोई अन्य कर्मकाण्ड किए बिना ही सद्गति प्राप्त हो जाती है। इसी प्रकार शूद्र भी अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए वह सब प्राप्त कर लेते हैं, जो ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड और तप आदि से प्राप्त होता है। कहा गया है-
 
इस पुराण में स्त्रियों, साधुओं और शूद्रों को श्रेष्ठ माना गया है। जो स्त्री अपने तन-मन से पति की सेवा तथा सुख की कामना करती है, उसे कोई अन्य कर्मकाण्ड किए बिना ही सद्गति प्राप्त हो जाती है। इसी प्रकार शूद्र भी अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हुए वह सब प्राप्त कर लेते हैं, जो ब्राह्मणों को विभिन्न प्रकार के कर्मकाण्ड और तप आदि से प्राप्त होता है। कहा गया है-
 
<poem>शूद्रोश्च द्विजशुश्रुषातत्परैद्विजसत्तमा: ।
 
<poem>शूद्रोश्च द्विजशुश्रुषातत्परैद्विजसत्तमा: ।
तथा द्भिस्त्रीभिरनायासात्पतिशुश्रुयैव हि॥<balloon title="विष्णु पुराण 6/35" style=color:blue>*</balloon></poem>  
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तथा द्भिस्त्रीभिरनायासात्पतिशुश्रुयैव हि॥<ref>विष्णु पुराण 6/35</ref></poem>  
 
अर्थात शूद्र ब्राह्मणों की सेवा से और स्त्रियां प्रति की सेवा से ही धर्म की प्राप्ति कर लेती हैं।
 
अर्थात शूद्र ब्राह्मणों की सेवा से और स्त्रियां प्रति की सेवा से ही धर्म की प्राप्ति कर लेती हैं।
 
==आध्यात्मिक चर्चा==  
 
==आध्यात्मिक चर्चा==  
 
'विष्णु पुराण' के अन्तिम तीन अध्यायों में आध्यात्मिक चर्चा करते हुए त्रिविध ताप, परमार्थ और ब्रह्मयोग का ज्ञान कराया गया है। मानव-जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके लिए [[देवता]] भी लालायित रहते हैं। जो मनुष्य माया-मोह के जाल से मुक्त होकर कर्त्तव्य पालन करता है, उसे ही इस जीवन का लाभ प्राप्त होता है। 'निष्काम कर्म' और 'ज्ञान मार्ग' का उपदेश भी इस पुराण में दिया गया है। लौकिक कर्म करते हुए भी धर्म पालन किया जा सकता है। 'कर्म मार्ग' और 'धर्म मार्ग'- दोनों का ही श्रेष्ठ माना गया है।  कर्त्तव्य करते हुए व्यक्ति चाहे घर में रहे या वन में, वह ईश्वर को अवश्य प्राप्त कर लेता है।
 
'विष्णु पुराण' के अन्तिम तीन अध्यायों में आध्यात्मिक चर्चा करते हुए त्रिविध ताप, परमार्थ और ब्रह्मयोग का ज्ञान कराया गया है। मानव-जीवन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके लिए [[देवता]] भी लालायित रहते हैं। जो मनुष्य माया-मोह के जाल से मुक्त होकर कर्त्तव्य पालन करता है, उसे ही इस जीवन का लाभ प्राप्त होता है। 'निष्काम कर्म' और 'ज्ञान मार्ग' का उपदेश भी इस पुराण में दिया गया है। लौकिक कर्म करते हुए भी धर्म पालन किया जा सकता है। 'कर्म मार्ग' और 'धर्म मार्ग'- दोनों का ही श्रेष्ठ माना गया है।  कर्त्तव्य करते हुए व्यक्ति चाहे घर में रहे या वन में, वह ईश्वर को अवश्य प्राप्त कर लेता है।
 
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[[चित्र:Mahabharat-Map.jpg|महाभारतकालीन [[भारत]] का मानचित्र|thumb]]
 
==भारत==  
 
==भारत==  
 
*भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-
 
*भारतवर्ष को कर्मभूमि कहकर उसकी महिमा का सुंदर बखान करते हुए पुराणकार कहता है-
 
<poem>इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
 
<poem>इत: स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यं चान्तश्च गम्यते।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥<balloon title="विष्णु पुराण 2/3/5" style=color:blue>*</balloon></poem>  
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न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्मभूमौ विधीयते ॥<ref>विष्णु पुराण 2/3/5</ref></poem>  
  
 
अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है।  इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।
 
अर्थात यहीं से स्वर्ग, मोक्ष, अन्तरिक्ष अथवा पाताल लोक पाया जा सकता है।  इस देश के अतिरिक्त किसी अन्य भूमि पर मनुष्यों पर मनुष्यों के लिए कर्म का कोई विधान नहीं है।
 
*इस कर्मभूमि की भौगोलिक रचना के विषय में कहा गया है-
 
*इस कर्मभूमि की भौगोलिक रचना के विषय में कहा गया है-
 
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
 
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥<balloon title="विष्णु पुराण 2/3/1" style=color:blue>*</balloon>  
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वर्ष तद्भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥<ref>विष्णु पुराण 2/3/1</ref>  
  
 
अर्थात समुद्र कें उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है।  उसकी संतति 'भारतीय' कहलाती है।  
 
अर्थात समुद्र कें उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो पवित्र भूभाग स्थित है, उसका नाम भारतवर्ष है।  उसकी संतति 'भारतीय' कहलाती है।  
*इस भारत भूमि की वन्दना के लिए विष्णु पुराण का यह पद विख्यात है-
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*इस [[भारत]] भूमि की वन्दना के लिए विष्णु पुराण का यह पद विख्यात है-
 
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गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमिभागे।
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गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते [[भारत]] भूमिभागे।
 
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।
 
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।
 
कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते।
 
कर्माण्ड संकल्पित तवत्फलानि संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति ॥<balloon title="विष्णु पुराण 2/3/24-25" style=color:blue>*</balloon>
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अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते तस्मिंल्लयं ये त्वमला: प्रयान्ति ॥<ref>विष्णु पुराण 2/3/24-25</ref>
 
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अर्थात देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग् पर चलने के लिए भारतभूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं। जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर समस्त आकांक्षाओं से मुक्त अपने कर्म परमात्मा स्वरूप श्री विष्णु को अर्पण कर देते हैं, वे पाप रहित होकर निर्मल हृदय से उस अनन्त परमात्म शक्ति में लीन हो जाते हैं। ऐसे लोग धन्य होते हैं।
 
अर्थात देवगण निरन्तर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग् पर चलने के लिए भारतभूमि में जन्म लिया है, वे मनुष्य हम देवताओं की अपेक्षा अधिक धन्य तथा भाग्यशाली हैं। जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर समस्त आकांक्षाओं से मुक्त अपने कर्म परमात्मा स्वरूप श्री विष्णु को अर्पण कर देते हैं, वे पाप रहित होकर निर्मल हृदय से उस अनन्त परमात्म शक्ति में लीन हो जाते हैं। ऐसे लोग धन्य होते हैं।
*'विष्णु पुराण' में [[कलि युग]] में भी सदाचरण पर बल दिया गया है। इसका आकार छोटा अवश्य है, परंतु मानवीय हित की दृष्टि से यह पुराण अत्यन्त लोकप्रिय और महत्वपूर्ण है।
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*'विष्णु पुराण' में [[कलि युग]] में भी सदाचरण पर बल दिया गया है। इसका आकार छोटा अवश्य है, परंतु मानवीय हित की दृष्टि से यह पुराण अत्यन्त लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण है।
 
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{{संदर्भ ग्रंथ}}
[[Category:कोश]]
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
[[Category:पौराणिक ग्रन्थ]]
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<references/>
[[Category:पुराण]]
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==संबंधित लेख==
[[en:Vishnu Purana]]
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{{पुराण2}}
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{{संस्कृत साहित्य}}
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{{पुराण}}
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[[Category:पौराणिक कोश]]
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[[Category:पुराण]] [[Category:साहित्य कोश]]
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[[Category:अठारह पुराण]]
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[[Category:विष्णु पुराण]]
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[[Category:हिन्दू धर्म ग्रंथ]]
 
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Latest revision as of 13:04, 20 April 2014

[[chitr:Cover-Vishnu-Purana.jpg|thumb|vishnu puran, gitapres gorakhapur ka avaran prishth]] atharah mahapuranoan mean 'vishnu puran' ka akar sabase chhota hai. kintu isaka mahattv prachin samay se hi bahut adhik mana gaya hai. sanskrit vidvanoan ki drishti mean isaki bhasha ooanche darje ki, sahityik, kavyamay gunoan se sampann aur prasadamayi mani gee hai. is puran mean bhoomandal ka svaroop, jyotish, rajavanshoan ka itihas, krishna charitr adi vishayoan ko b de tarkik dhang se prastut kiya gaya hai. khandan-mandan ki pravritti se yah puran mukt hai. dharmik tattvoan ka saral aur subodh shaili mean varnan kiya gaya hai. [[chitr:God-Vishnu.jpg|thumb|200px|bhagavan vishnu
God Vishnu]]

sat hazar shlok

is puran mean is samay sat hazar shlok upalabdh haian. vaise kee granthoan mean isaki shlok sankhya teees hazar bataee jati hai. yah puran chhah bhagoan mean vibhakt hai. [[chitr:Holika-Prahlad-1.jpg|thumb|prahlad ko god mean bithakar baithi holika|left]] pahale bhag mean sarg athava srishti ki utpatti, kal ka svaroop aur dhruv, prithu tatha prahlad ki kathaean di gee haian. doosare bhag mean lokoan ke svaroop, prithvi ke nau khandoan, grah-nakshatr, jyotish adi ka varnan hai. tisare bhag mean manvantar, vedoan ki shakhaoan ka vistar, grihasth dharm aur shraddh-vidhi adi ka ullekh hai. chauthe bhag mean soory vansh aur chandr vansh ke rajagan tatha unaki vanshavaliyoan ka varnan hai. paanchavean bhag mean shrikrishna charitr aur unaki lilaoan ka varnan hai jabaki chhathe bhag mean pralay tatha moksh ka ullekh hai.

  1. REDIRECTsaancha:inhean bhi dekhean

'vishnu puran' mean puranoan ke paanchoan lakshanoan athava varny-vishayoan-sarg, pratisarg, vansh, manvantar aur vanshanucharit ka varnan hai. sabhi vishayoan ka sanupatik ullekh kiya gaya hai. bich-bich mean adhyatm-vivechan, kalikarm aur sadachar adi par bhi prakash dala gaya hai.

rachanakar parashar rrishi

is puran ke rachanakar parashar rrishi the. ye maharshi vasishth ke pautr the. is puran mean prithu, dhruv aur prahlad ke prasang atyant rochak haian. 'prithu' ke varnan mean dharati ko samatal karake krishi karm karane ki prerana di gee hai. krishi-vyavastha ko chust-duroost karane par zor diya gaya hai. ghar-parivar, gram, nagar, durg adi ki nianv dalakar parivaroan ko suraksha pradan karane ki bat kahi gee hai. isi karan dharati ko 'prithvi' nam diya gaya . 'dhruv' ke akhyan mean saansarik sukh, aishvary, dhan-sampatti adi ko kshan bhangur arthath nashavan samajhakar atmik utkarsh ki prerana di gee hai. prahlad ke prakaran mean paropakar tatha sankat ke samay bhi siddhaantoan aur adarshoan ko n tyagane ki bat kahi gee hai.

krishna charitr ka varnan

'vishnu puran' mean mukhy roop se krishna charitr ka varnan hai, yadyapi sankshep mean ram katha ka ullekh bhi prapt hota hai. is puran mean krishna ke samaj sevi, praja premi, lok ranjak tatha lok hitay svaroop ko prakat karate hue unhean mahamanav ki sanjna di gee hai. [[chitr:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|radha-krishna, krishna janmabhoomi, mathura
Radha - Krishna, Krishna's Birth Place, Mathura|thumb|left]] shrikrishna ne praja ko sangathan-shakti ka mahattv samajhaya aur anyay ka pratikar karane ki prerana di. adharm ke viruddh dharm-shakti ka paracham laharaya. 'mahabharat' mean kauravoan ka vinash aur 'kaliya dahan' mean nagoan ka sanhar unaki lokopakari chhavi ko prastut karata hai. [[chitr:Ramayana.jpg|thumb|ram,lakshman aur sita
Ram, Laxman and Sita|thumb]] krishna ke jivan ki lokopayogi ghatanaoan ko alaukik roop dena us mahamanav ke prati bhakti-bhavana ki pratik hai. is puran mean krishna charitr ke sath-sath bhakti aur vedant ke uttam siddhantoan ka bhi pratipadan hua hai. yahaan 'atma' ko janm-mrityu se rahit, nirgun aur anant bataya gaya hai. samast praniyoan mean usi atma ka nivas hai. eeshvar ka bhakt vahi hota hai jisaka chitt shatru aur mitr aur mitr mean samabhav rakhata hai, doosaroan ko kasht nahian deta, kabhi vyarth ka garv nahian karata aur sabhi mean eeshvar ka vas samajhata hai. vah sadaiv saty ka palan karata hai aur kabhi asaty nahian bolata .

rajavanshoan ka vrittant

is puran mean prachin kal ke rajavanshoan ka vrittant likhate hue kaliyugi rajaoan ko chetavani di gee hai ki sadachar se hi praja ka man jita ja sakata hai, papamay acharan se nahian. jo sada saty ka palan karata hai, sabake prati maitri bhav rakhata hai aur dukh-sukh mean sahayak hota hai; vahi raja shreshth hota hai. raja ka dharm praja ka hit sandhan aur raksha karana hota hai. jo raja apane svarth mean doobakar praja ki upeksha karata hai aur sada bhog-vilas mean dooba rahata hai, usaka vinash samay se poorv hi ho jata hai.

karttavyoan ka palan

is puran mean striyoan, sadhuoan aur shoodroan ko shreshth mana gaya hai. jo stri apane tan-man se pati ki seva tatha sukh ki kamana karati hai, use koee any karmakand kie bina hi sadgati prapt ho jati hai. isi prakar shoodr bhi apane karttavyoan ka palan karate hue vah sab prapt kar lete haian, jo brahmanoan ko vibhinn prakar ke karmakand aur tap adi se prapt hota hai. kaha gaya hai-

shoodroshch dvijashushrushatatparaidvijasattama: .
tatha dbhistribhiranayasatpatishushruyaiv hi॥[1]

arthat shoodr brahmanoan ki seva se aur striyaan prati ki seva se hi dharm ki prapti kar leti haian.

adhyatmik charcha

'vishnu puran' ke antim tin adhyayoan mean adhyatmik charcha karate hue trividh tap, paramarth aur brahmayog ka jnan karaya gaya hai. manav-jivan ko sarvashreshth mana gaya hai. isake lie devata bhi lalayit rahate haian. jo manushy maya-moh ke jal se mukt hokar karttavy palan karata hai, use hi is jivan ka labh prapt hota hai. 'nishkam karm' aur 'jnan marg' ka upadesh bhi is puran mean diya gaya hai. laukik karm karate hue bhi dharm palan kiya ja sakata hai. 'karm marg' aur 'dharm marg'- donoan ka hi shreshth mana gaya hai. karttavy karate hue vyakti chahe ghar mean rahe ya van mean, vah eeshvar ko avashy prapt kar leta hai. [[chitr:Mahabharat-Map.jpg|mahabharatakalin bharat ka manachitr|thumb]]

bharat

  • bharatavarsh ko karmabhoomi kahakar usaki mahima ka suandar bakhan karate hue puranakar kahata hai-

it: svargashch mokshashch madhyan chantashch gamyate.
n khalvanyatr martyanaan karmabhoomau vidhiyate ॥[2]

arthat yahian se svarg, moksh, antariksh athava patal lok paya ja sakata hai. is desh ke atirikt kisi any bhoomi par manushyoan par manushyoan ke lie karm ka koee vidhan nahian hai.

  • is karmabhoomi ki bhaugolik rachana ke vishay mean kaha gaya hai-

uttaran yatsamudrasy himadreshchaiv dakshinamh . varsh tadbharatan nam bharati yatr santati ॥[3]

arthat samudr kean uttar mean aur himalay ke dakshin mean jo pavitr bhoobhag sthit hai, usaka nam bharatavarsh hai. usaki santati 'bharatiy' kahalati hai.

  • is bharat bhoomi ki vandana ke lie vishnu puran ka yah pad vikhyat hai-

gayanti deva: kil gitakani dhanyastu te bharat bhoomibhage.
svargapavargaspadamargabhoote bhavanti bhooy: purusha: suratvath.
karmand sankalpit tavatphalani sannyasy vishnau paramatmabhoote.
avapy taan karmamahimanante tasmianllayan ye tvamala: prayanti ॥[4]

arthat devagan nirantar yahi gan karate haian ki jinhoanne svarg aur moksh ke margh par chalane ke lie bharatabhoomi mean janm liya hai, ve manushy ham devataoan ki apeksha adhik dhany tatha bhagyashali haian. jo log is karmabhoomi mean janm lekar samast akaankshaoan se mukt apane karm paramatma svaroop shri vishnu ko arpan kar dete haian, ve pap rahit hokar nirmal hriday se us anant paramatm shakti mean lin ho jate haian. aise log dhany hote haian.

  • 'vishnu puran' mean kali yug mean bhi sadacharan par bal diya gaya hai. isaka akar chhota avashy hai, parantu manaviy hit ki drishti se yah puran atyant lokapriy aur mahattvapoorn hai.

tika tippani aur sandarbh

  1. vishnu puran 6/35
  2. vishnu puran 2/3/5
  3. vishnu puran 2/3/1
  4. vishnu puran 2/3/24-25

sanbandhit lekh

shrutiyaan