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*घोषा समस्त आश्रमवासियों की लाडली थी किंतु बाल्यावस्था में ही रोग से उसका शरीर विकृत हो गया था। | |||
*एक बार उदासी के क्षणों में अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पिता | *घोषा कक्षीवान की पुत्री बताई गई है। वह समस्त आश्रमवासियों की लाडली थी, किंतु बाल्यावस्था में ही रोग से उसका शरीर विकृत हो गया था। | ||
*घोषा ने तपस्या की। साठ वर्षीय वह मन्त्रद्रष्टा हुई। अश्विनीकुमारों का स्वतन किया। | *शरीर विकृति के कारण उससे किसी ने भी [[विवाह]] करना स्वीकार नहीं किया। वह साठ वर्ष की वृद्धा हो गयी, किंतु कुमारी ही थी। | ||
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घोषा ऋग्वेद के अनुसार एक महिला ऋषि थीं। वहाँ दो मंत्रों में घोषा को अश्विनीकुमारों द्वारा संरक्षित कहा गया है। सायण के मतानुसार उसका पुत्र सुहस्त्य ऋग्वेद के एक अस्पष्ट मंत्र में उद्धृत है।
- घोषा कक्षीवान की पुत्री बताई गई है। वह समस्त आश्रमवासियों की लाडली थी, किंतु बाल्यावस्था में ही रोग से उसका शरीर विकृत हो गया था।
- शरीर विकृति के कारण उससे किसी ने भी विवाह करना स्वीकार नहीं किया। वह साठ वर्ष की वृद्धा हो गयी, किंतु कुमारी ही थी।
- एक बार उदासी के क्षणों में अचानक उसे ध्यान आया कि उसके पिता कक्षीवान ने अश्विनीकुमारों की कृपा से आयु, शक्ति तथा स्वास्थ्य का लाभ प्राप्त किया था।
- घोषा ने तपस्या प्रारम्भ की। साठ वर्षीय वह मन्त्रद्रष्टा हुई। उसने अश्विनीकुमारों का स्वतन किया।
- अश्विनीकुमारों ने घोषा पर प्रसन्न होकर दर्शन दिये और उसकी उत्कट आकांक्षा जानकर उसे नीरोग कर रूप-यौवन प्रदान किया।
- तदनंतर उसका विवाह संपन्न हुआ। अश्विनीकुमारों की कृपा से ही उसने पुत्र धन आदि भी प्राप्त किये।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऋग्वेद 1।117, 120 से 123