महाराज रामसिंह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "विद्वान " to "विद्वान् ")
 
Line 1: Line 1:
'''महाराज रामसिंह''' [[मिर्ज़ा राजा जयसिंह]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम चौहान रानी आनंद कुंवर था। रामसिंह की माँ उनको [[पिता]] की तरह विद्वान और पराक्रमी बनाना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने रामसिंह को शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र [[वाराणसी]] में अध्ययन करने के लिए भेज दिया था।
'''महाराज रामसिंह''' [[मिर्ज़ा राजा जयसिंह]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम चौहान रानी आनंद कुंवर था। रामसिंह की माँ उनको [[पिता]] की तरह विद्वान् और पराक्रमी बनाना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने रामसिंह को शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र [[वाराणसी]] में अध्ययन करने के लिए भेज दिया था।


*राजा जयसिंह की मौत के बाद [[10 सितंबर]], 1667 को रामसिंह ने [[आमेर]] की गद्दी संभाली।
*राजा जयसिंह की मौत के बाद [[10 सितंबर]], 1667 को रामसिंह ने [[आमेर]] की गद्दी संभाली।

Latest revision as of 14:26, 6 July 2017

महाराज रामसिंह मिर्ज़ा राजा जयसिंह के पुत्र थे। इनकी माता का नाम चौहान रानी आनंद कुंवर था। रामसिंह की माँ उनको पिता की तरह विद्वान् और पराक्रमी बनाना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने रामसिंह को शिक्षा के उत्कृष्ट केंद्र वाराणसी में अध्ययन करने के लिए भेज दिया था।

  • राजा जयसिंह की मौत के बाद 10 सितंबर, 1667 को रामसिंह ने आमेर की गद्दी संभाली।
  • अपने पिता की तरह ही रामसिंह भी संस्कृत, फ़ारसी, और हिन्दी भाषाओं में निपुण थे।
  • रामसिंह ने मुग़ल बादशाह की सेवा में पूर्व में असम के रंगमती का मोर्चा संभाला। इसके बाद भारत की पश्चिमी सीमा पर कोहट के लिए भेजा गया।
  • राजा रामसिंह एक सक्षम व्यवस्थापक थे। उन्होंने अपने शौर्य से मुश्किल क्षेत्र असम में स्थिति को नियंत्रण में किया।
  • इतिहास में रामसिंह अपने सैन्य पराक्रम और दुर्लभ पुस्तकों व नक्शों के संग्रह के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने नक्शानवीस से असम का नक्शा तैयार कराया था।
  • अप्रैल, 1688 में महाराज रामसिंह का निधन हुआ।
  • महाराज रामसिंह ने रस और अलंकार पर तीन ग्रंथ लिखे थे-
  1. अलंकार दर्पण,
  2. रसनिवास [1] और
  3. रसविनोद [2]
  • 'अलंकार दर्पण' दोहों में है।
  • नायिका भेद भी अच्छा है।
  • यह एक अच्छे और प्रवीण कवि थे।

सोहत सुंदर स्याम सिर, मुकुट मनोहर जोर।
मनो नीलमनि सैल पर, नाचत राजत मोर
दमकन लागी दामिनी, करन लगे घन रोर।
बोलति माती कोइलै, बोलत माते मोर


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रसनिवास संवत 1839
  2. रसविनोद संवत 1860

सम्बंधित लेख