कुतबन: Difference between revisions

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'''कुतबन''' 'चिश्ती वंश' के 'शेख बुरहान' के शिष्य थे और [[जौनपुर]] के 'बादशाह हुसैनशाह' के आश्रित थे। अत: इनका समय विक्रम की सोलहवीं शताब्दी का मध्य भाग<ref> संवत् 1550</ref> था।
'''कुतबन''' हिन्दी के प्रसिद्ध [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] [[कवि]] थे, जिन्होंने मौलाना दाऊद के 'चंदायन' की परंपरा में सन 1503 ई. में 'मृगावती' नामक प्रेमाख्यानक [[काव्य]] की रचना की। 'मृगावती' किसी पूर्व प्रचलित कथा के आधार पर लिखा गया है। इसमें [[दोहा]], [[चौपाई]], [[सोरठा]], अरिल्ल आदि छंदों का प्रयोग किया गया है, किंतु इसकी [[शैली]] प्राकृत काव्यों का अनुकरण पर कड़वक वाली है।
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इन्होंने '''मृगावती''' नाम की एक कहानी 'चौपाई', 'दोहे' के क्रम से सन् 909 हिजरी (संवत् 1558) में लिखी जिसमें चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच बीच में सूफियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।
*अपनी रचना 'मृगावती' में कुतबन ने चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन किया है। इस [[कहानी]] के द्वारा [[कवि]] ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच-बीच में सूफ़ियों की [[शैली]] पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।
*कुतबन ने अपने [[काव्य]] में किसी प्रकार का वैयक्तिक परिचय नहीं दिया है। उससे इतना ही ज्ञात होता है कि हुसेनशाह शाहे-वक्त थे और [[सुहरावर्दी सम्प्रदाय]] के शेख़ बुढ़न उनके गुरु थे।
*ऐसा समझा जाता है कि हुसेनशाह से उनका तात्पर्य [[जौनपुर]] के [[शर्की वंश|शर्की]] सुल्तान से है।
*शेख़ बुढ़न के संबंध में अनुमान किया जाता है कि ये वे ही होंगे, जो जौनपुर के निकट जफ़राबाद कस्बे में रहते थे, जिनका वास्तविक नाम शम्सुद्दीन था, और जो सदरुद्दीन चिरागे हिंद के पौत्र थे।
*उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कुतबन को जौनपुर के आस-पास का निवासी अनुमान किया जा सकता है। वहीं उनका कार्यक्षेत्र भी रहा होगा।
*'काशी' (वर्तमान [[बनारस]]) में हरतीरथ मुहल्ले की चौमुहानी से पूरब की ओर लगभग एक फलाँग की दूरी पर 'कुतबन शहीद' नामक एक मुहल्ला है। वहीं एक मजार है, जो कुतबन की मजार के नाम से प्रसिद्ध है। कदाचित वह इन्हीं कुतबन की कब्र है।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%A4%E0%A4%AC%E0%A4%A8 |title=कुतबन |accessmonthday=13 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
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Revision as of 13:08, 13 February 2014

कुतबन हिन्दी के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि थे, जिन्होंने मौलाना दाऊद के 'चंदायन' की परंपरा में सन 1503 ई. में 'मृगावती' नामक प्रेमाख्यानक काव्य की रचना की। 'मृगावती' किसी पूर्व प्रचलित कथा के आधार पर लिखा गया है। इसमें दोहा, चौपाई, सोरठा, अरिल्ल आदि छंदों का प्रयोग किया गया है, किंतु इसकी शैली प्राकृत काव्यों का अनुकरण पर कड़वक वाली है।

  • अपनी रचना 'मृगावती' में कुतबन ने चंद्रनगर के राजा गणपतिदेव के राजकुमार और कंचनपुर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती की प्रेमकथा का वर्णन किया है। इस कहानी के द्वारा कवि ने प्रेममार्ग के त्याग और कष्ट का निरूपण करके साधक के भगवत्प्रेम का स्वरूप दिखाया है। बीच-बीच में सूफ़ियों की शैली पर बड़े सुंदर रहस्यमय आध्यात्मिक आभास हैं।
  • कुतबन ने अपने काव्य में किसी प्रकार का वैयक्तिक परिचय नहीं दिया है। उससे इतना ही ज्ञात होता है कि हुसेनशाह शाहे-वक्त थे और सुहरावर्दी सम्प्रदाय के शेख़ बुढ़न उनके गुरु थे।
  • ऐसा समझा जाता है कि हुसेनशाह से उनका तात्पर्य जौनपुर के शर्की सुल्तान से है।
  • शेख़ बुढ़न के संबंध में अनुमान किया जाता है कि ये वे ही होंगे, जो जौनपुर के निकट जफ़राबाद कस्बे में रहते थे, जिनका वास्तविक नाम शम्सुद्दीन था, और जो सदरुद्दीन चिरागे हिंद के पौत्र थे।
  • उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कुतबन को जौनपुर के आस-पास का निवासी अनुमान किया जा सकता है। वहीं उनका कार्यक्षेत्र भी रहा होगा।
  • 'काशी' (वर्तमान बनारस) में हरतीरथ मुहल्ले की चौमुहानी से पूरब की ओर लगभग एक फलाँग की दूरी पर 'कुतबन शहीद' नामक एक मुहल्ला है। वहीं एक मजार है, जो कुतबन की मजार के नाम से प्रसिद्ध है। कदाचित वह इन्हीं कुतबन की कब्र है।[1]
  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुतबन (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 फ़रवरी, 2014।

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