जयदेव: Difference between revisions
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'''जयदेव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jayadeva'' लगभग 1200 ईस्वी) [[संस्कृत]] के महाकवि थे। ये [[लक्ष्मण सेन]] शासक के दरबारी कवि थे। [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव भक्त]] और संत के रूप में जयदेव सम्मानित थे। जयदेव 'गीतगोविन्द' और 'रतिमंजरी' के रचयिता थे। [[श्रीमद्भागवत]] के बाद [[राधा]]-[[कृष्ण]] लीला की अद्भुत साहित्यिक रचना उनकी कृति ‘गीत गोविन्द’ को माना गया है। जयदेव संस्कृत कवियों में अंतिम कवि थे। इनकी सर्वोत्तम गीत रचना 'गीत गोविन्द' के नाम से [[संस्कृत भाषा]] में उपलब्ध हुई है। माना जाता है कि दिव्य रस के स्वरूप राधाकृष्ण की रमणलीला का स्तवन कर जयदेव ने आत्मशांति की सिद्धि की। संत महीपति जो भक्ति विजय के रचयिता है उन्होंने श्रीमद्भागवतकार व्यास का अवतार जयदेव को माना है। | '''जयदेव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Jayadeva'' लगभग 1200 ईस्वी) [[संस्कृत]] के महाकवि थे। ये [[लक्ष्मण सेन]] शासक के दरबारी कवि थे। [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव भक्त]] और संत के रूप में जयदेव सम्मानित थे। जयदेव 'गीतगोविन्द' और 'रतिमंजरी' के रचयिता थे। [[श्रीमद्भागवत]] के बाद [[राधा]]-[[कृष्ण]] लीला की अद्भुत साहित्यिक रचना उनकी कृति ‘गीत गोविन्द’ को माना गया है। जयदेव संस्कृत कवियों में अंतिम कवि थे। इनकी सर्वोत्तम गीत रचना 'गीत गोविन्द' के नाम से [[संस्कृत भाषा]] में उपलब्ध हुई है। माना जाता है कि दिव्य रस के स्वरूप राधाकृष्ण की रमणलीला का स्तवन कर जयदेव ने आत्मशांति की सिद्धि की। संत महीपति जो भक्ति विजय के रचयिता है उन्होंने श्रीमद्भागवतकार व्यास का अवतार जयदेव को माना है। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
जयदेव के पिता का नाम भोजदेव था, पर जब वे बहुत छोटे थे तभी [[माता]]-[[पिता]] की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वे [[पुरी]] आकर रहने लगे। जयदेव का विवाह पद्मावती नामक कन्या से हुआ था। कहते हैं, कन्या के पिता को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने इस [[विवाह]] का आदेश दिया और उसने पुरी में एक वृक्ष के नीचे अपनी कन्या का हाथ जयदेव को सौंप दिया। | जयदेव के पिता का नाम भोजदेव था, पर जब वे बहुत छोटे थे तभी [[माता]]-[[पिता]] की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वे [[पुरी]] आकर रहने लगे। जयदेव का विवाह पद्मावती नामक कन्या से हुआ था। कहते हैं, कन्या के पिता को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने इस [[विवाह]] का आदेश दिया और उसने पुरी में एक वृक्ष के नीचे अपनी कन्या का हाथ जयदेव को सौंप दिया। [[चित्र:Gita-Govinda.jpg|left|thumb|[[गीत गोविन्द]]]] | ||
==काव्य रचना== | ==काव्य रचना== | ||
कुछ समय बाद जयदेव ने [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]] की यात्रा की। कृष्ण की [[रासलीला]] के इस क्षेत्र को देखकर वे भाव-विभोर हो उठे। लौटने पर उन्होंने पुरी में अपने अमर ग्रंथ ‘गीत गोविन्द’ की रचना की। इसमें [[राधा]] और [[कृष्ण]] के प्रेम की कहानी काव्य के मनोहारी [[छंद|छंदों]] में वर्णित है। इसमें केवल तीन चरित्रों का चित्रण है- राधा, कृष्ण और राधा की एक सखी जो इन दोनों के पास एक-दूसरे का संदेश पहुंचाती है। कवि ने जिस प्रेम का वर्णन किया है, वह सांसारिक नहीं, अलौकिक है। इसलिए मंदिरों में बड़ी श्रद्धा से उन गीतों का गायन करते हैं। | कुछ समय बाद जयदेव ने [[मथुरा]]-[[वृन्दावन]] की यात्रा की। कृष्ण की [[रासलीला]] के इस क्षेत्र को देखकर वे भाव-विभोर हो उठे। लौटने पर उन्होंने पुरी में अपने अमर ग्रंथ ‘गीत गोविन्द’ की रचना की। इसमें [[राधा]] और [[कृष्ण]] के प्रेम की कहानी काव्य के मनोहारी [[छंद|छंदों]] में वर्णित है। इसमें केवल तीन चरित्रों का चित्रण है- राधा, कृष्ण और राधा की एक सखी जो इन दोनों के पास एक-दूसरे का संदेश पहुंचाती है। कवि ने जिस प्रेम का वर्णन किया है, वह सांसारिक नहीं, अलौकिक है। इसलिए मंदिरों में बड़ी श्रद्धा से उन गीतों का गायन करते हैं। | ||
जयदेव का बंगाल के राजदरबार में भी सम्मान था और दरबार के पाँच रत्नों में से एक थे। पर पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने दरबार त्याग दिया। जयदेव के ‘गीत गोविन्द’ से अनेक कवि, संत और चित्रकार प्रभावित हुए हैं। इस पर आधारित चित्र [[जम्मू]] और [[कांगड़ा]] में बसोहली शैली के चित्र कहलाते हैं। [[हिन्दी साहित्य|आधुनिक हिन्दी साहित्य]] के अग्रदूत [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] ने | जयदेव का बंगाल के राजदरबार में भी सम्मान था और दरबार के पाँच रत्नों में से एक थे। पर पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने दरबार त्याग दिया। जयदेव के ‘गीत गोविन्द’ से अनेक कवि, संत और चित्रकार प्रभावित हुए हैं। इस पर आधारित चित्र [[जम्मू]] और [[कांगड़ा]] में बसोहली शैली के चित्र कहलाते हैं। [[हिन्दी साहित्य|आधुनिक हिन्दी साहित्य]] के अग्रदूत [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] ने ‘[[गीत गोविन्द]]’ का हिन्दी पद्यानुवाद किया था। | ||
Revision as of 11:16, 19 May 2015
जयदेव
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पूरा नाम | जयदेव |
जन्म | 1200 ईस्वी लगभग |
पति/पत्नी | पद्मावती |
मुख्य रचनाएँ | 'गीत गोविन्द' और 'रतिमञ्जरी' |
भाषा | संस्कृत |
प्रसिद्धि | ये लक्ष्मण सेन शासक के दरबारी कवि थे। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संत महीपति जो भक्ति विजय के रचयिता है उन्होंने श्रीमद्भागवतकार व्यास का अवतार जयदेव को माना है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
जयदेव (अंग्रेज़ी: Jayadeva लगभग 1200 ईस्वी) संस्कृत के महाकवि थे। ये लक्ष्मण सेन शासक के दरबारी कवि थे। वैष्णव भक्त और संत के रूप में जयदेव सम्मानित थे। जयदेव 'गीतगोविन्द' और 'रतिमंजरी' के रचयिता थे। श्रीमद्भागवत के बाद राधा-कृष्ण लीला की अद्भुत साहित्यिक रचना उनकी कृति ‘गीत गोविन्द’ को माना गया है। जयदेव संस्कृत कवियों में अंतिम कवि थे। इनकी सर्वोत्तम गीत रचना 'गीत गोविन्द' के नाम से संस्कृत भाषा में उपलब्ध हुई है। माना जाता है कि दिव्य रस के स्वरूप राधाकृष्ण की रमणलीला का स्तवन कर जयदेव ने आत्मशांति की सिद्धि की। संत महीपति जो भक्ति विजय के रचयिता है उन्होंने श्रीमद्भागवतकार व्यास का अवतार जयदेव को माना है।
जीवन परिचय
जयदेव के पिता का नाम भोजदेव था, पर जब वे बहुत छोटे थे तभी माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वे पुरी आकर रहने लगे। जयदेव का विवाह पद्मावती नामक कन्या से हुआ था। कहते हैं, कन्या के पिता को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ ने इस विवाह का आदेश दिया और उसने पुरी में एक वृक्ष के नीचे अपनी कन्या का हाथ जयदेव को सौंप दिया। [[चित्र:Gita-Govinda.jpg|left|thumb|गीत गोविन्द]]
काव्य रचना
कुछ समय बाद जयदेव ने मथुरा-वृन्दावन की यात्रा की। कृष्ण की रासलीला के इस क्षेत्र को देखकर वे भाव-विभोर हो उठे। लौटने पर उन्होंने पुरी में अपने अमर ग्रंथ ‘गीत गोविन्द’ की रचना की। इसमें राधा और कृष्ण के प्रेम की कहानी काव्य के मनोहारी छंदों में वर्णित है। इसमें केवल तीन चरित्रों का चित्रण है- राधा, कृष्ण और राधा की एक सखी जो इन दोनों के पास एक-दूसरे का संदेश पहुंचाती है। कवि ने जिस प्रेम का वर्णन किया है, वह सांसारिक नहीं, अलौकिक है। इसलिए मंदिरों में बड़ी श्रद्धा से उन गीतों का गायन करते हैं।
जयदेव का बंगाल के राजदरबार में भी सम्मान था और दरबार के पाँच रत्नों में से एक थे। पर पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने दरबार त्याग दिया। जयदेव के ‘गीत गोविन्द’ से अनेक कवि, संत और चित्रकार प्रभावित हुए हैं। इस पर आधारित चित्र जम्मू और कांगड़ा में बसोहली शैली के चित्र कहलाते हैं। आधुनिक हिन्दी साहित्य के अग्रदूत भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने ‘गीत गोविन्द’ का हिन्दी पद्यानुवाद किया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 308।
बाहरी कड़ियाँ
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