घनश्याम दास बिड़ला: Difference between revisions
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==बिड़ला परिवार== | ==बिड़ला परिवार== |
Revision as of 13:49, 30 June 2017
घनश्याम दास बिड़ला
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पूरा नाम | घनश्याम दास बिड़ला |
जन्म | 10 अप्रैल, 1894 |
जन्म भूमि | पिलानी, राजस्थान |
मृत्यु | 11 जून, 1983 |
मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र |
अभिभावक | बी. डी. बिड़ला (पिता) |
संतान | कृष्णकुमार बिड़ला (पुत्र) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | उद्योगपति |
मुख्य रचनाएँ | रुपये की कहानी, बापू, जमनालाल बजाज, पाथ्स टू प्रोपर्टी[1], इन द शेडो ऑफ़ द महात्मा[2] |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म विभूषण |
विशेष योगदान | भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे। |
नागरिकता | भारतीय |
घनश्याम दास बिड़ला (अंग्रेज़ी: Ghanshyam Das Birla, जन्म-10 अप्रैल, 1894, पिलानी, राजस्थान; मृत्यु- 11 जून, 1983, मुंबई) भारत के अग्रणी औद्योगिक समूह बी. के. के. एम. बिड़ला समूह के संस्थापक थे, जिसकी परिसंपत्तियाँ 195 अरब रुपये से अधिक है। ये स्वाधीनता सेनानी भी थे। इस समूह का मुख्य व्यवसाय कपड़ा, विस्कट फ़िलामेंट यार्न, सीमेंट, रासायनिक पदार्थ, बिजली, उर्वरक, दूरसंचार, वित्तीय सेवा और एल्युमिनियम क्षेत्र में है, जबकि अग्रणी कंपनियाँ 'ग्रासिम इंडस्ट्रीज' और 'सेंचुरी टेक्सटाइल' हैं। ये गांधीजी के मित्र, सलाहकार, प्रशंसक एवं सहयोगी थे। भारत सरकार ने सन् 1957 में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया।
परिचय
एक स्थानीय गुरु से अंकगणित तथा हिन्दी की आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिता बी. डी. बिड़ला की प्रेरणा व सहयोग से घनश्याम दास बिड़ला ने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में व्यापार जगत् में प्रवेश किया। 1912 में किशोरावस्था में ही घनश्याम दास बिड़ला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से दलाली का व्यवसाय शुरू कर दिया। 1918 में घनश्याम दास बिड़ला ने ‘बिड़ला ब्रदर्स’ की स्थापना की। कुछ ही समय बाद घनश्याम दास बिड़ला ने दिल्ली की एक पुरानी कपड़ा मिल ख़रीद ली, उद्योगपति के रूप में यह घनश्याम दास बिड़ला का पहला अनुभव था। 1919 में घनश्याम दास बिड़ला ने जूट उद्योग में भी क़दम रखा। 1921 में ग्वालियर में कपड़ा मिल की स्थापना की और 1923 से 1924 में उन्होंने केसोराम कॉटन मिल्स ख़रीद ली। ये 1928 ई. में पूंजीपति संगठन ‘भारतीय वाणिज्य उद्योग महामण्डल’ के अध्यक्ष बने। बिड़ला परिवार का वंश वृक्ष|left|thumb
बिड़ला परिवार
बिड़ला परिवार भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक एवं औद्योगिक परिवारों में से एक है। इस परिवार के अधीन वस्त्र उद्योग, आटोमोबाइल्स, सूचना प्रौद्योगिकी आदि हैं। बिड़ला परिवार भारत के स्वतंत्रता संग्राम का नैतिक एवं आर्थिक रूप से समर्थन किया। इस परिवार की गांधीजी के साथ घनिष्ट मित्रता थी। बिड़ला समूह के संस्थापक बलदेवदास बिड़ला थे जो राजस्थान के सफल मारवाड़ी समुदाय के सदस्य थे। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में वे अपना पारिवारिक व्यवसाय आरम्भ करने के लिये कोलकाता चले आये और उस समय चल रहे भारत के स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के साथ निकट से जुड़ गये।
स्वतंत्रता आन्दोलन
घनश्याम दास बिड़ला एक सच्चे स्वदेशी और स्वतंत्रता आंदोलन के कट्टर समर्थक थे तथा महात्मा गांधी की गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के लिये तत्पर रहते थे। इन्होंने पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने एवं कांग्रेस के हाथ मज़बूत करने की अपील की। इन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का समर्थन किया। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन के लिए आर्थिक सहायता दी। इन्होंने सामाजिक कुरीतियों का भी विरोध किया तथा 1932 ई. में हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष बने।[3]
बिड़ला उद्योग समूह
[[चित्र:Birla-Mandir-Hyderabad.jpg|thumb|बिड़ला मंदिर, हैदराबाद]] 30 वर्ष की आयु तक पहुँचने तक घनश्याम दास बिड़ला का औद्योगिक साम्राज्य अपनी जड़ें जमा चुका था। बिड़ला एक स्व-निर्मित व्यक्ति थे और अपनी सच्चरित्रता तथा ईमानदारी के लिये विख्यात थे। ये बिड़ला समूह के प्रमुख तथा भारत के अग्रणी उद्योगपतियों में थे। बिड़ला उद्योग समूह जिसका नेतृत्व उनके बेटे कर रहे हैं, इसका व्यापार दक्षिण-पूर्वी एशिया और अफ्रीका में भी फैला हुआ है। इन्होंने अनेक वैज्ञानिक, धार्मिक, शैक्षणिक तथा औद्योगिक संस्थाओं की स्थापना की।
बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान
बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (BITS), भारतवर्ष के सबसे पुराने और अग्रणी प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है। पिलानी (राजस्थान) के अलावा बिट्स के कैम्पस गोआ, हैदराबाद और दुबई में भी हैं । यह संस्थान पूर्णतः स्ववित्तपोषित और आवासीय है। बिरला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी की स्थापना घनश्याम दास बिड़ला के द्वारा 1929 में एक इंटर कॉलेज के रूप में स्थापित किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के समय, भारत सरकार के रक्षा सेवाओं और उद्योग के लिए तकनीशियनों की आपूर्ति के लिए पिलानी में एक तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की। 1946 में, यह बिरला इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री कार्यक्रमों से परिवर्तित कर दिया गया। इसके अलावा हिन्दुस्तान टाइम्स एवं हिन्दुस्तान मोटर्स (सन् 1942) की नींव डाली। कुछ अन्य उद्योगपतियों के साथ मिलकर इन्होंने सन् 1927 में 'इण्डियन चैम्बर आफ कामर्स एंड इन्डस्ट्री' की स्थापना भी की थी।
कृतियाँ
thumb|मरूभूमि का वह मेघ (आत्मकथा लेखक- राम निवास जाजू) इन्होंने कुछ कृतियाँ भी लिखी जो निम्नलिखित हैं-
- रुपये की कहानी
- बापू
- जमनालाल बजाज
- पाथ्स टू प्रोपर्टी (Paths to Prosperity)
- इन द शेडो ऑफ़ द महात्मा (In the Shadow of the Mahatma)
आत्मकथा
मरू भूमि का वह मेघ नामक पुस्तक घनश्याम दास बिड़ला की आत्मकथा है जो राम निवास जाजू ने लिखी है। ‘मरुभूमि का वह मेघ’ एक कवि की गद्य-रचना है और इसमें कविजनोचित भाव-प्रवणता और लालित्य के सर्वत्र दर्शन होते हैं। यद्यपि लेखक ने पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, पुराने पत्राचारों और ताजा भेंटवार्ताओं से बिड़लाजी यानी जी. डी. बाबू के जीवन के विषय में उपलब्ध सारी सूचनाएं क्रमबद्ध ढंग और कथासुलभ रोचकता से प्रस्तुत कर दी हैं तथापि साधारण जीवन-चरित नहीं है यह तो। श्री घनश्यामदास बिड़ला के कई-कई आयामों वाले व्यक्तित्व पर कई-कई कोणों से नज़र टिकाते हुए उसकी समग्रता को अभिव्यक्ति देने की एक अद्भुद, असम्भवप्राय कोशिश है। लेखक पिछले पचपन साल से बिड़लाओं से समबद्ध रहा है तथापि ‘विष्णु सहस्रनाम नहीं श्रीमद्भागवत’ लिखने के संकल्प ने उसे अपने श्रद्धेय पात्र के प्रति वैसी ही तठस्थता प्रदान की है जैसी स्वयं घनश्यामदास बिड़ला ने कभी ‘बापू’ की छवि आँकते हुए प्रदर्शित की थी। हाँ, बिड़ला-परिवार से निकट का परिचय उसकी कृति को अन्तरंगता का प्रीतिकार स्पर्श दे पाया है।[4]
पुरस्कार
1967 ई. में इन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया।
निधन
घनश्याम दास बिड़ला का निधन 11 जून, 1983 ई. हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- Ghanshyam Das Birla
- प्रसिद्ध उद्योगपति के.के.बिड़ला का निधन
- AP CM Readies BITS Pilani Hyderabad Campus
- BITS Pilani Makes the Right Move at the Right Time
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